तितलियों की सिमटती दुनिया      Publish Date : 13/10/2024

                            तितलियों की सिमटती दुनिया

                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संकेतक के रूप में कार्य करती हैं तितलियां

यदि बाग बागीचों के अंदर तितलियां मंडराती हुई नजर आती हैं तो इसका अर्थ है कि हमारा पर्यावरण स्वस्थ्य और सेहतमंद है। तितलियों पर पिछले 11 वर्षों से अध्ययन कर रहे रतीन्द्र पांडेय बताते हैं कि परागण क्रिया को सम्पन्न करने वाली तितलियां अनाज, फल, फूल, सभी प्रकार की उपज एवं खाद्य श्रंखला का एक अभिन्न सूत्र होती हैं।

                                                                

एक व्यस्क तितली बनने से पूर्व की तीन स्टेज होती हैं। सबसे पहले तितलियां अंडे देती हैं, जिससे लार्वा बनता है। लार्वा से प्यूपा की स्टेज तक आने का समय लगभग 6 सप्ताह से एक वर्ष तक का होता है और यह प्यूपा ही तितली का रूप ग्रहण करता है। एक तितली की आयु एक सप्ताह से लेकर तीन सप्ताह तक की होती है।

प्रदेश की कृषि क्रियाओं के दौरान अविवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग किए जा रहे खेतों और बासगों में अंधाधुंध विषाक्त कीटनाशकों के चलते लार्वा के नष्ट हो जाने से तितलियों की प्रजाति कम होती गई हैं।

तितलियों के संदर्भ में कुछ तथ्य

                                                       

  • पूरी दुनिया में 15,000 से लेकर 17,000 तक तितलियों की प्रजातियां विद्यमान हैं।
  • लगभग तितलियों की 1,430 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।
  • पश्चिमी घाट के क्षेत्र (महाराष्ट्र से लेकर तमिलनाडु तक का क्षेत्र) में तितलियों की 550 से लेकर 600 तक प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • तितलियों की 500 प्रजातियां उत्तराखंड़ में हैं अब।

वन्य जीव विशेषज्ञों को 11 वर्ष के अध्ययन के बाद उत्तर प्रदेश में तितलियों की केवल 150 प्रजातियां ही मिल पाई है, जबकि उत्तर प्रदेश के पडोसी राज्य उत्तराखंढ में 500 और सिक्किम राज्य में 600 प्रकार तितलियां विचरण कर रही हैं। इस प्रकार से देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की नई पीढ़ियों को तितलियां केवल किताबों में ही देखने को मिल सकेंगी। प्रकृति की इंद्रधनुषी तस्वीर में सबसे अधिक सुन्दर रंग भरने वाली तितलियों की दुनिया दिन प्रतिदिन सिमटती ही जा रही है।

कीटों का ब्राँड एमेसडर है तितलीः तितली को कीटों का ब्राँड एंबेसडर कहते हैं, लेकिन रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अन्धधुध प्रयोग होने के चलते तितलियों की सैंकड़ों प्रजातियां लुप्तप्राय हो चुकी हैं। वर्ष 1902 से 1905 के मध्य एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी डी रेह फिलिप के द्वारा केवल लखनऊ में अपने प्रवास के दौरान तितलियों की 93 प्रजातियां रिकार्ड की गई थी।

                                                                

इसके बाद वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश के पर्यटन निगम के प्रबंधक रतीन्द्र पांडेय ने नवाबगंज पक्षी विहार में तितिलियों को न केवल आपने कैमरे में कैद किया बल्कि उनका प्रजाति के अनुसार सम्पूर्ण विवरण भी जुटाया। सेवानिवृत्त प्रधान मंख्य वन संरक्षक रूपक डे के द्वारा नेशनल पार्क में इसका आरम्भ किया गया था।

डे के साथ जुड़कर कीटविज्ञानी डॉ0 तस्लीमा शेख एवं अबु अरशद खान ने पूर्वी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश में गम्भीरता से अध्ययन कर तितलियों की केवल 150 प्रजातियों को ही रिकार्ड किया। वन्य जीव विशेषज्ञ रूपक डे ने बताया कि इनमें से 15 प्रजातियां नई हैं। यह प्रजातियां पिछले अध्ययनों में शामिल नही थी।

                                                              

पिछले महीने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के जनरल स्प्रिंगलर नेचर में इस टीम के द्वारा सर्च की गई लाइकेनिडाई प्रजाति की नीले, ऑरेंज रंग की पांच नई प्रजातियों पर एक लेख प्रकाशित किया गया था। उक्त लेख में जानकारी प्रदान की गई कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर और उसके आसपास आरंभिक र्वो पूर्ण हो चुका है, जबकि सहारनपुर की श्विालिक रेंज क्षेत्र में तितलियों की गणना अभी जारी है।  इसके चलते आने वाले समय में प्रदेश के अंदर तितलियों की संख्या बढ़ भी सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।