कहां पर है देश का पहला कार्बन तटस्थ कृषि फार्म      Publish Date : 09/10/2024

            कहां पर है देश का पहला कार्बन तटस्थ कृषि फार्म

                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

केरल के अलुवा में स्थित एक बीज फार्म को देश का पहला कार्बन तटस्थ कृषि फार्म घोषित किया गया है। इस कृषि फार्म की विशेषता यह है कि यहां उत्पादन की संपूर्ण प्रक्रिया के दौरान कम से कम मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। साथ ही, इसकी मिट्टी और फसलों के द्वारा वातावरण से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित कर लिया जाता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की 30 प्रतिशत और पशुपालन की 18 प्रतिशत हिस्सेदारी को देखते हुए इस पहल को क्रांतिकारी पहल कहा जा सकता है।

                                                            

खाद्य उत्पादन प्रणाली को कार्बन तटस्थ बनाना टिकाऊ विकास और खुशहाल भविष्य के लिए भी आवश्यक है। इससे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित कर धरती को विनाश के कगार पर जाने से रोका जा सकता है।

एक अरब से अधिक लोगों को रोजगार तथा सालाना सवा एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य का भोजन उत्पादन करने वाला कृषि क्षेत्र विभिन्न स्तरों पर और बड़े पैमाने पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। अबाध गति से बढ़ती जनसंख्या और कृषि क्षेत्र में विस्तार के साथ जलवायु परिवर्तन में कृषिगत गतिविधियों की बढ़ती हिस्सेदारी भी चिंतित करती है। अंधाधुंध कृषि विकास पारिस्थितिकीय विनाश जैसे भूमि का निम्नीकरण, भूजल के स्तर में गिरावट, वायु, जल एवं भूमि प्रदूषण के स्तर में वृद्धि तथा जैव विविधता के हृास के लिए अधिक उत्तरदायी है।

कृषि कार्य हेतु जंगलों का सफाया करने और लगातार कृषि कर्म करने से खेत बंजर हो जाते हैं और उनमें फसल उगाने की क्षमता क्षीण़ होती जाती है और इसके साथ ही मिट्टी को उर्वर बनाने में सहायक सूक्ष्मजीव भी नष्ट हो जाते हैं।

                                                           

दूसरी ओर खेतों में फसलों की वृद्धि और कीटों के बचाव के लिए उपयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक जल स्रोतों, सामुद्रिक पारिस्थितिकी तंत्र, वायू और मिट्टी आदि को दूषित करते हैं। साथ ही इनके अंश लंबे समय तक वातावरण में विद्यमान रहकर श्वसन के माध्यम से पशु, पक्षियों और मानव के फेफड़ों तक पहुंच कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार उपलब्ध ताजे पानी का 69 प्रतिशत हिस्सा केवल कृषि कार्यों में ही प्रयुक्त किया जाता है। वर्षा के अभाव में पानी की आपूर्ति के लिए भूजल का दोहन करना भी एक आम बात है।

                                                              

आश्चर्य की बात तो यह है कि खेतों में खड़ी फसल भी बड़े पैमाने पर मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती हैं। बरहाल कृषि कार्यों के तहत प्रबंधन से मृदा, जल, वायु और मानव के स्वास्थ्य को सुरक्षित किया जा सकता है। इसके लिए ठोस कृषि नीतियां बनाने के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक करना आवश्यक है। जैविक कीटनाशकों, जैविक उर्वरकों और सौर ऊर्जा तथा सिंचाई की स्पिंकलर एवं ड्रिप प्रणाली का इस्तेमाल कर कृषि क्षेत्र को ‘‘कार्बन न्यूट्रल’’ बनाया जा सकता है। इससे पर्यावरण और वर्तमान के साथ-साथ  भावी पीढी की सुरक्षा भी संभव हो सकती है। इसलिए हम सभी लोगों का दायित्व होना चाहिए कि इन सभी को कम से कम कृषि में इस्तेमाल किया जा सके, जिससे हमें कार्बन तटस्थ होने में सफलता मिल सके।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।