वर्तमान समय में संस्कार की आवश्यकता      Publish Date : 07/10/2024

                      वर्तमान समय में संस्कार की आवश्यकता

                                                                                                                                                                  प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

आज कल हम अपने बच्चों को घर पर कितनी निम्न शिक्षा देते हैं? वे फ़िल्में देखते हैं, लेकिन कैसी फिल्मे देखते हैं? इसका ध्यान रखने की जरूरत है क्योंकि इससे उनका पारंपरिक मूल्यों से भ्रष्ट होने की संभावना बनी रहती है क्या? जानते हुए भी अपनी पीढ़ियों को संस्कार प्रदान करने में यह भ्रष्टाचार चलता रहता है।

रोते बच्चे को चुप कराने का साधन अब मोबाईल में चलने वाला वीडियो हो गया है और वह भी कौन सा वीडियो, उसमे क्या परोसा जा रहा है? बच्चा रोना बंद कर उसमे आनंद लेने लगता है और हम चिंता मुक्त हो जाते हैं, लेकिन क्या हम यह विचार कर रहे हैं इस क्षणिक आनंद और चिंता से मुक्त होने के कारण उस बच्चे का भविष्य किन बातों से निर्मित होता जा रहा है? यदि बच्चे भी बड़े हो कर अपने माता पिता को ऐसा ही कोई साधन दे कर चिंता मुक्त हो जाएंगे तो हम उस समय कैसा अनुभव करेंगे।

यह विचार अवश्य करना है। बढ़ती आयु में माता पिता की अपने बच्चों के प्रेम की आवश्यकता अन्य किसी भी साधन से अधिक होती है। वैसे छोटी उम्र में बच्चों को अपने माता पिता के सान्निध्य में प्राप्त स्नेह युक्त संस्कार किसी प्रकार के अन्य कृत्रिम साधनों की तुलना में सर्वाधिक आवश्यक होते हैं। हमारे समाज में जीवन की दिशा कहीं इसके विपरीत तो नही है, यह एक चिन्तनीय विषय है क्योंकि ऐसे घरों में मूल्यों का पोषण किसी भी तरह से नहीं हो सकता।

जब हम छोटे थे, तो चीजें बहुत अलग थीं। दादा-दादी, माता-पिता के द्वारा सुनाई गई कहानियां, हमें शांत करने के लिए सुनाए गए गीत, हमारे मनों पर अपनी अमिट छाप संस्कार के रूप में छोड़ते चले गए और हमारे नैतिक मूल्यों का विकास होता चला गया। सभी लोग माँ के द्वारा गाए गई प्रार्थना और भजनों के साथ उठते थे। हालांकि, हमारी वह माँ अनपढ़ हुआ करती थीं, लेकिन जो भजन हमें सही मूल्य दे सकें, ऐसे कई भजन उन्हें कंठस्थ हुआ करते थे और इसलिए बच्चा भी उन्हें सहजता से याद कर लेता था।

रामायण, महाभारत की कहानियां अच्छे मनुष्य बनने और किसी भी परिस्थिति में धर्म पर डटे रहने का जो संस्कार प्रदान कर देती थीं, वह जीवन भर हमारे आचरण में दिखाई देती थी, क्योंकि इसी वातावरण में हमारे जीवन की प्राथमिक नींव विकसित हुई।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।