खेत में कच्ची खाद देने के नुकसान      Publish Date : 01/10/2024

                        खेत में कच्ची खाद देने के नुकसान

                                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

खाद अच्छी तरह से विघटित करने का सही तरीका

भारतीय किसान खेती कार्यों के साथ-साथ पशु-पालन का काम भी करते हैं, जिनका गोबर और गोबर के साथ-साथ कृषिगत फसलों से निकलने वाला बेकार कचरा सीधे नालों में ही बहा दिया जाता है, जिसमें डीकम्पोस्टिंग विधि का कोई उपयोग नहीं करता है। अतः इस कच्ची खाद का खेत में उपयोग करने से कुछ हानियां भी हो सकती हैं।

                                                            

इस कच्ची खाद का खेत में उपयोग करने से होने वाली हानियां इस प्रकार से है-

  1. खेत में यदि कच्ची खाद दी जाए तो मिट्टी में मौजूद नाइट्रोजन और फास्फोरस स्वयं सडने के लिए खर्च हो जाते हैं और यह पौधों को नहीं मिल पाते हैं।
  2. कच्ची खाद रोगाणु और हानिकारक कवकों का भोजन होता है। अतः इसे मिट्टी में डालने से रोगाणु और हानिकारक कवक आ जाते है और उनकी मात्रा भी बढ़ जाती है, जिसके फलस्वरूप फसलों में दवाइयों की लागत बढ़ जाती है।
  3. मिट्टी में कच्ची खाद डालने से खरपतवार के बीजों की वृद्धि भी हो जाती है, जिससे फसलों की लागत बढ़ जाती है।
  4. जब कच्ची खाद पीने योग्य पानी के संपर्क में आती है तो उसकी डीकंपोस्टिंग होती है. इसलिए खेत में मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और पीने योग्य पानी की अधिक आवश्यकत्ता होती है।
  5. प्रमुख एवं सूक्ष्म पोषक तत्व आगामी तीन माह तक अप्रभावी पड़े रहते हैं और मिट्टी में कार्बनिक कार्बन का स्तर बढ़ नही पाता है।
  6. कच्ची खाद को मिट्टी में नहीं मिलाया जाता तो 3 महीने में डीकम्पोस्टिंग हो पाती है. अतः अच्छी तरह सड़ी हुई खाद मिट्टी में देनी चाहिए।
  7. खीरा एक वर्ष के बाद भी कच्चा रहता है, कच्ची खाद को मिट्टी में डालने के बाद इसे विघटित करने में नाइट्रोजन का उपयोग होता है, जिससे फसल में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है।
  8. चूंकि कच्ची खाद में मौजूद कच्चा कार्बन मिट्टी जनित कीटों के संक्रमण को बढ़ाता है। जैसे मूंगफली और प्याज जैसी फसलों में सफेद फफूद और झुलसा रोग का प्रकोप कच्ची खाद के प्रयोग करने से बढ़ जाता है।
  9. कच्ची खाद के कारण फराल की लागत बढ़ जाती है और साथ ही फसल के उत्पादन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  10. विभिन्न प्रकार के कच्चे अवशेष भी खेती में बाधक बनते है, जैसे- पशु अपशिष्ट, फसल अवशेषों की कच्ची खाद, प्लास्टिक मल्चिंग और साधारण खेत उपयोग के रूप में उपयोग करने से फसल के विकास पर भी गम्भीर प्रभाव पड़ता है।
  11. जिस खेत में कच्ची खाद का प्रयोग किया जाता है, उस खेत में अल्प वर्षा में खरीफ के मौसम में बुआई करना संभव नहीं है।
  12. औसत कच्ची खाद से एक सीजन में खेती की लागत बढ़ जाती है, और उत्पादन कम हो जाता है। खाद बनाने की सही विधि खेत का कचरा और जानवरो का गोबर है जिसे उपयुक्त वातावरण में खराब तरीके से विघटित किया जाता है, इसे कांरिटन खाद कहा जाता है।

                                                     

2 टन गोबर की व्यवस्थित खाद बनाने के लिए 1 किलो ट्राइकोडरमा में 1 किलो बायोकंपोस्ट और 1 किलो देशी गुड़ को 200 लीटर पानी में मिलाएं और पर्याप्त नमी होने पर 10-10 दिन के अंतराल पर गोबर के ढेर पर छिडकाव करते रहें। नमी और पर्यावरण को अनुकूल बनाए रखने के लिए 45 से 50 दिनों के लिए मौसम के अनुसार अच्छी छाया प्रदान की जानी चाहिए।

इस प्रकार से बनी खाद का मुख्य घटक कार्बनिक अम्ल होता है और यह अम्ल धूप में वाष्पित हो जाता है। इसलिए देशी खाद को सुबह सवेरे जल्दी या फिर शाम 5 बजे के बाद किसी गड्ढे में भर दें, फिर उसे जमीन में भर दना चाहिए ंन कि उसका ढेर लगाएं या खुला नहीं छोडना चाहिए जमीन में भरने के लिए।

कच्ची खाद और कृषि के जैविक कचरे को विघटित करने के लिए खाद में पर्याप्त मात्रा में बायो- कंपोजर नामक जैविक बैक्टीरिया डालें और इसको पर्याप्त मात्रा में नमी भी प्रदान करें, इस प्रकार से यह खाद समृद्ध बन जाएगी।

साठी को खेत में सड़ाने के लिए प्रति एकड 2 किलोग्राम बायो-कंपोजर जेविक जीवाणु इसमें डाल देनें चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।