बरसाती सब्जी के बाजार में परवल की सब्जी मचा रही धूम Publish Date : 25/09/2024
बरसाती सब्जी के बाजार में परवल की सब्जी मचा रही धूम
प्रोफेसर आर एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
भारत में हरी सब्जियों का उत्पादन और उनकी खपत बड़े पैमाने पर होती है। इसके संबंध में यदि विशेषरूप से परवल की बात करें तो परवल आज के दौर की यह सबसे प्रचलित सब्जी बनती जा रही है। गांव और कस्बों में तो क्या अब शहरों में भी इसकी बिक्री हाथों हाथ ही हो जाती है।
अब गांव से लेकर शहर तक के बाजारों में परवल की सब्जी आनी शुरू हो चुकी है और लोग इसे बड़े चाव से खाना पसंद करते हैं और यह किचन की सबसे बेस्ट सब्जी भी मानी जाती है। परवल की खेती किसानों के लिए भी मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। सही समय और उचित तकनीकों का पालन कर परवल की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च और जून से अगस्त तक का होता है। हालांकि अब सितंबर तक भी इसकी खेती को किया जा सकता है।
यह तो हम सभी जानते ही हैं कि भारत में हरी सब्जियों का उत्पादन और खपत बड़े पैमाने पर होती है। खासतौर पर बात अगर परवल की करें तो यह वर्तमान की सबसे प्रचलित सब्जियों में एक बनती जा रही है। गांव और कस्बों में तो क्या अब शहरों में भी परवल की बिक्री हाथों हाथ होने लगी है। यदि किसान भाई चाहें तो इसकी खेती के माध्यम से कम समय में अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं।
सबसे अच्छी बात तो यह है कि परवल एक सदाबहार बेलदार सब्जी है, जिसकी खेती किसान हर सीजन में कर सकते हैं। विटामिन के गुणों से भरपूर परवल की सब्जी को खाली खेतों में, मचान पर या फिर इसकी सह-फसल खेती करके भी अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
परवल के पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति
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परवल की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है। खेत की तैयारी के लिए खेत की गहरी जुताई करके उसमें अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को मिलाना चाहिए क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और परवल के पौधों को आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।
परवल के बीजों की बुवाई करने के लिए पंक्तियों के बीच 1.5 से 2 मीटर और पौधों के बीच 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी रखना उचित रहता है। इसके बीजों को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। बुवाई के बाद, हल्की सिंचाई अवश्य करें जिससे कि मिट्टी में नमी बनी रहे और बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो सके।
परवल की खेती के लिए नियमित और नियंत्रित सिंचाई करना बहुत आवश्यक है। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद ही कर देनी चाहिए और उसके बाद नियमित अंतराल पर फसल को पानी देते रहना चाहिए। ध्यान रखें कि सिंचाई करते समय जलभराव की स्थिति उत्पन्न न होने पाए, क्योंकि ऐसा होने से जड़ सड़न और फफूंद जनित रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।