भविष्य में हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से बदलेगा परिदृश्य      Publish Date : 16/09/2024

           भविष्य में हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से बदलेगा परिदृश्य

                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं इंजी0 कोर्तिकेय

हमारे देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रवेश विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कई रूपों में हो रहा था। लेकिन वर्ष 2018 में इस तकनीक ने अपनी उपयोगिता को बहुत तेजी से पूरे विश्व में बढ़ाया है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने धीरे-धीरे दुनिया भर की भाषओं के साथ हिंदी को भी काफी आगे बढ़ा दिया है। दुनिया भर के देशों में प्रवासी भारतीयों के अलावा भी पूरा प्रवासी भारतीय मॉरीशस, फिजी, गयाना, सूरीनाम और त्रिनिदाद आदि में हिंदी प्रयोग के साथ-साथ नव प्रवासीय देश में भी इसका प्रयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। इस प्रकार से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए लिपियों के शब्द भंडार में देवनागरी का शब्द भंडार भी बढ़ रहा है। भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक गतिविधियों में भी हिंदी का उपयोग बढ़ेगा। वर्ष 2023-24 में चैट जी पी टी से लेकर गूगल हमउपदप और अब व्हाट्सएप में भी एआई का प्रयोग बढ़ रहा है।

                                                                    

धीरे-धीरे भारतीय भाषाओं और हिंदी के विकास में ही एआई का दखल नहीं बढ़ेगा बल्कि हिंदी साहित्य लेखन के साथ-साथ ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में चैट जी पी टी का प्रयोग भी बढ़ेगा। साथ ही हिंदी पुस्तक लेखन, रचनात्मक लेखन, टेलीविजन और फिल्म लेखन से लेकर विविध विधाओं में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है। इन दिनों आप शीर्षक देकर चैट जी पी टी और गूगल में कविता भी लिख सकते हैं, पुस्तक लिख सकते हैं, कहानी बना सकते हैं और कक्षा मध्यमिकों के लिए लेक्चर तैयार कर सकते हैं। यह एक बहुत ही सराहनीय तकनीक अब लोगों तक पहुंच चुकी है जिसका लाभ सभी लोग उठा सकते हैं।

भावना यह भी बनती है कि आगामी वर्षों में शैक्षणिक क्षेत्र में इसका दखल और प्रयोग न केवल बढ़ेगा बल्कि शिक्षा माध्यमिक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने से हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं का परंपरागत प्रयोग कर्ता भी बदलेगा और प्रयोग भी इसका बदला जाएगा।

                                                                 

विज्ञान के विषयों के लिए अंग्रेजी माध्यम में बहुत सारी सामग्री उपलब्ध है परन्तु अब यह सब हिंदी में भी संभव हो पा रहा है जो हिंदी के विकास में एक विशेष कदम माना जा सकता है। यद्यपि इसका उपयोग कितना होगा और इस प्रयोग को आम लोगों के विकास और भविष्य के लिए कितना उपयोगी समझ जाएगा, यह प्रश्न अभी विवेचना की मांग करता रहेगा। क्योंकि इसका प्रयोग बढ़ाने के साथ ही जब तक आम जनता तक यह नहीं पहुंच पाएगा तब तक हिंदी की उपयोगिता और अधिक नहीं बढ़ पाएगी।

यदि जागरूकता कार्यक्रम लोगों के बीच में चलाए जाएं तो हिंदी की उपयोगिता बढ़ती है। अभिव्यक्ति की भाषा भी सरल होनी चाहिए। कोई भी भाषा तब तक समृद्ध नहीं होती जब तक उसमें अन्य भाषाओं के शब्दों को शामिल नहीं किया जाता। इससे अभिव्यक्ति की व्यापकता का विस्तार होता है। हिंदी में बोलने वालों की संख्या अरबों की संख्या में पहुंच चुकी है लेकिन हिंदी भाषा में अभी तक कोई नोबेल पुरस्कार नहीं मिल पाया है। ऐसे उत्कृष्ट साहित्य लेखन की संभावना अभी भी हिंदी में बाकी है। हिंदी दुनिया की सबसे बड़ी भाषा है। हम सभी को हिंदी अपनी मातृभाषा की भांति अपनाना चाहिए।

                                                           

हिंदी दिवस, हिंदी के संवैधानिक अधिकार का स्मरण दिवस है। संविधान समिति में शामिल सदस्यों ने हिंदी को उसका उचित सम्मान प्रदान किया। अब हमारा और हमारी नवीन पीढ़ी का कर्तव्य है कि व्यवहार में भी हिंदी के प्रयोग को सुनिश्चित करें। भारतीय संस्कृति और साहित्य के विकास की परंपरा से खुद को जोड़ें। नई पीढ़ी के लिए विरासत में हिंदी को मजबूत भाषा की तरह आगे भेजें ताकि भारत की नवीन पीढ़ी हिंदी में अपना भविष्य देख सके।

हमें हिंदी को अपनाना चाहिए अपनी बोली को वैश्विक स्तर पर ले जाने का मनन करना है। हमें हिंदी बोलने में शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए, तभी हिंदी आगे बढ़ सकेगी। जिस प्रकार से जर्मन में जर्मनी चीन में चीनी भाषा को ही प्राथमिकता दी जाती है ठीक इसी तरह से हमारे देश में भी लोग हिंदी बोले अपने को और आगे बढ़ाएं का सिद्धांत लागू नहीं करेंगे तब तक शायद हिंदी को उतना सम्मान नहीं मिल सकेगा जितना वह सम्मान के काबिल है। इसके लिए अपनी कथनी और करनी में अंतर को समझना होगा और आगे बढ़ना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।