अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से मत्स्य पालन के क्षेत्र में क्राँति Publish Date : 09/09/2024
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से मत्स्य पालन के क्षेत्र में क्राँति
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
भारतीय समुद्री मत्स्य पालन के क्षेत्र पर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के परिवर्तनकारी प्रभावों को दर्शाने के लिए केन्द्रीय मत्स्य पालन, पशु पालन और डेयरी मंत्रालय के द्वारा तटीय राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में सेमिनार और प्रदर्शन का आयोजन किया जा रहा है। यह पहल 23 अगस्त को मनाए गए राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस से आरम्भ की गई है।
मंत्रालय के द्वारा जारी किए गए एक बयान में कहा गया कि अंतरिक्ष प्रोद्योगिकियां पहले से ही मत्स्य प्रबन्धन और उनके विकास में वृद्वि करने के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। ‘‘सेटेलाइट रिमोट सेंसिंग’’ अर्थात उपग्रहीय सुदूर संवेदी के जैसी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियां सम्भावित मछली पकड़ने वाले क्षेत्रों की पहचान करने और महासागर के स्वास्थ्य की निगरानी करने के लिए औशनसैट तथा इनसैट जैसी प्रणालियों का उपयोग कर रही हैं।
पृथ्वी अवलोकन तकनीक मछली पकड़ने के काम के महत्तम परिचालन के लिए समुद्री धाराओं, तरंगों और चरम मौसम घटनाओं की निगरानी करने के लिए ‘‘इन्सैट, ओशनसैट’’ और ‘‘सार’’ उपग्रहों को नियोजित करती हैं। सैटेलाइट संचार, जहाजों, तटीय स्टेशनों और अनुसंधान संस्थानों के मध्य वास्तविक समय के आंकड़ों के आदान-प्रदान को सुनिश्चित् करता है।
आकड़ों का विश्लेषण और कृत्रिम मेधा (एआई) मछली वितरण की भविष्यवाणी करने और मत्स्य प्रबन्धन को अनुकूलित करने में भी सहायता कर रहे हैं। मंत्रालय ने जाकारी प्रदान की कि उक्त उन्नत प्रणालियां समुद्र में दक्षता और सुरक्षा को बढ़ाती हैं, अवैध गतिविध्यिों का पता लगाती हैं, जल का मानचित्रण करती हैं और आपदाओं की चेतावनियां भी प्रदान करती हैं। इस तकनीकी प्रगति को और अधिक बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के अन्तर्गत एक राष्ट्रीय ‘रोलआउट’ योजना को भी स्वीकृति प्रदान की गई है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।