गन्ने की फसल में पीलापन और सूखने की समस्या है? इसके कारण और बचाव के उपाय Publish Date : 08/09/2024
गन्ने की फसल में पीलापन और सूखने की समस्या है? इसके कारण और बचाव के उपाय
प्रोफसर आर. एस. सेंगर
गन्ने की फसल में पीलापन और सूखने की समस्या है तो आईंए जानतें हैं इसके कारण और बचाव के उपाय, जो बता रहे हैं सरदार वल्लभभाईं पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय मेरठ के प्रोफेसर एवं कृषि विशेषज्ञ डॉ0 आर. एस. सेंगर-
इस समय गन्ने की फसल में गन्ने की पत्तियों का पीला पड़ना और उनका सूखना किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। इस स्थिति को देखकर किसान भाईं अक्सर घबरा जाते हैं, लेकिन उन्हें इससे घबराने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है। इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं और यदि सही समय पर इसका निदान और नियंत्रण किया जाए तो फसल को इससे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। ऐसे में प्रोफेसर आर. एस. सेंगर बता रहे हैं इस समस्या के कारणों और उनके बचाव के उपायों के बारे में विस्तार से-
गन्ने की फसल में पीलापन और सूखने की समस्या
उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन दिनों गन्ने की फसल में पत्तियों के पीले पड़ने और उनके सूखने की समस्या से बहत परेशान हैं।
बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी
गन्ने की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिये रासायनिक खादों के बजाए अगर किसान जीवामृत और देसी केंचुओं का इस्तेमाल करें तो कम खर्च में मिटटी की उपजाऊ शक्ति बढ़ने साथ साथ बहुत अच्छी फसल मिल सकती है।
बुवाई का समयः- 15 सितंबर से 15 अक्टूम्बर शरदकाल व 15 फरवरी से 15 मार्च बसन्त काल।
खेत की तैयारी- गन्ना बहुवर्षीय फसल है, इसके लिए खेत की गहरी जुताई के पश्चात् 2 बार कल्टीवेटर व आवश्यकता अनुसार रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत तैयार करें, मिट्टी भुरभुरी होना चाहिए, इससे गन्ने की जड़े गहराई तक जाएगी और आवश्यक पोषक तत्व का अवशोषण कर सकेंगी।
बीज का चुनाव- 9 से 10 माह का स्वस्थ गन्ना बीज के लिए उपयोग करे, उन्नत प्रजाति, मोटा, ठोस, शुद्ध व रोग रहित होना चाहिए।. जिस गन्ने की छोटी पोर हो, फूल आ गये हो, ऑंखे अंकुरित हो या जड़े निकल आई हो ऐसा गन्ना बीज के लिये उपयोग न करें।
प्रजातियां -
सीओ-.0238, 0118, 13235, 15023, 98014, 17231, Colk, 14201 आदि प्रजातियों के बीज का चयन करें!
बीज की मात्रा- एक ऑख के टुकड़े से बुवाई करने पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल 2 ऑख से 20 क्विंटल बीज लगेगा, पॉली बैग, पॉली ट्रे के उपयोग से बीज की बचत होगी तथा अधिक उत्पादन प्राप्त होगा।
बीज की कटाई- तेज धार वाले औजार से गन्ना की कटाई करते समय ध्यान रखें कि ऑख के ऊपर वाला भाग 1/3 तथा निचला हिस्सा 2/3 भाग रहे।
नाली से नाली की दूरी - नालियों के बीच की दुरी 4 से 4.5 या 5 फिट रखे। इसके निम्न लाभ होगे सूर्य प्रकास, हवा अधिक मिलने से गन्ना अधिक होता हे, तथा अधिक गन्ने का उत्पादन प्राप्त होता है और बीज की मात्रा कम लगती है।
कीट एवं बीमारियों से रोकथाम-
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दीमकः
गन्ने के पौधों में दीमक का प्रभाव बीज रोपाई के बाद कभी भी दिखाई दे सकता है। इस रोग के कीट पौधे की जड़ों को काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं, जिससे पौधा मुरझाकर सूख जाता है। पौधों पर इसका प्रकोप रोपाई के समय अधिक दिखाई देता है तथा इससे प्रभावित गाठें अंकुरित ही नही हो पाती हैं।
रोकथाम के उपाय-
- इसकी रोकथाम के लिए खेत की जुताई के समय फेनवलरेट या लिंडेन धूल का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए।
- इसके अलावा बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए।
- ताजे गोबर का प्रयोग बिल्कुल न करें।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा को पानी के साथ पौधों को देना चाहिए।
2- लाल सड़न रोग-
गन्ने के पौधे में लगने वाले इस रोग को रेड रॉट के नाम से भी जाना जाता है, जो कोलेटोट्राइकम फाल्केटम नामक फफूंद की वजह से फैलता है। पौधों में इस रोग का प्रभाव सबसे ज्यादा उनके विकास के दौरान देखने को मिलता हैं। इस रोग के लगने से गन्नों के अंदर का भाग लाल सफ़ेद दिखाई देने लगता हैं।
रोग के बढ़ने पर पौधे के बीच की पत्तियां सूखने लगती है और साथ ही गन्ने पर लाल फफूंद के बीजाणु दिखाई देने लगते हैं। इस रोग को गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है। रोग ग्रस्त पौधे खराब हो जाते हैं, जिनका किसी भी तरह इस्तेमाल नही किया जा सकता।
रोकथाम के उपाय-
- इस रोग की रोकथाम के लिए अभी तक कोई प्रभावी उपाय नही खोजा गया है, इसलिए इस रोग की रोकथाम के लिए इस रोग की प्रतिरोधी किस्मों को ही उगाना चाहिए।
- रोपाई से पहले इसके बीजों को कार्बेन्डाजिम या नम गर्म शोधन मशीन के माध्यम से उपचारित कर लेना चाहिए।
- खेत में जल भराव ना होने दें।
- गोबर की खाद को खेत में डालने से पहले उसमें ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की उचित मात्रा को मिला देना चाहिए।
3- सफ़ेद गिडार
गन्ने के पौधों में सफ़ेद गिडार का प्रकोप बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता है। इसके कीट, पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते है जबकि इसकी सुंडी पौधे की जड़ों को खाकर उन्हें नुकसान पहुँचाती है, जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं और कुछ दिनों बाद सूखकर नष्ट हो जाते हैं।
रोकथाम के उपाय-
- इसकी रोकथाम के लिए खेती की तैयारी वक्त खेत की गहरी जुताई कर कुछ दिन तेज़ धूप लगने के लिए खेत को खुला छोड़ दें।
- गन्ने की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या कैप्टन दवा से उपचारित कर लेना चाहिए।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मेटाराइजियम एनीसोपली की ढाई किलो मात्रा को सिंचाई के साथ 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधों को देना चाहिए।
4- रूट बोरर (जड़ बेधक)
इसका प्रभाव गन्ने की फसल में किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है। इसकी सुंडी पौधों की जड़ों में छेद बनाकर अंदर घुस जाती है, जिससे सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है।
रोकथाम के उपाय-
- इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफास का प्रयोग करना चाहिए।
5-काला चिटका-
इसका प्रकोप गन्ने के पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता है। इसके कीट काले और सफ़ेद रंग के दिखाई देते हैं, जो पौधे की पेडी फसल पर अधिक सक्रिय पाए जाते हैं। इसके कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को प्रभावित करते हैं और इसके प्रकोप से पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है और पत्तियां सूखने लगती हैं।
रोकथाम के उपाय-
- इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर वर्टिसिलियम लेकानी 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. की ढाई किलो मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकाव करना चाहिए।
- इसके अलावा क्यूनालफास या क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना भी लाभकारी होता है।
6- कंडुआ रोग
गन्ने के पौधों पर इस रोग का प्रभाव कभी भी दिखाई दे सकता है। इस रोग के लगने पर पौधे लम्बे और पतले दिखाई देने लगते हैं और पौधों का शीर्ष भाग काला पड़ जाता है। इस रोग के लगने से पौधों की पहली आँख समय से पहले ही अंकुरित होने लगती है।
रोकथाम के उपाय-
इस रोग की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधे को पालिथिन की थैली में ढक कर जड़ों सहित उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिये तथा कार्बेन्डाजिम या कार्बाेक्सिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए साथ ही रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए।
7- ग्रासी सूट-
गन्ने के पौधों में इस रोग का प्रभाव किसी भी समय दिखाई दे सकता है। इस रोग के लगने पर पौधे पतले, झाड़ीनुमा और बौने दिखाई देने लगते हैं। रोग लगने पर पौधों की पत्तियां हल्की पीली और सफ़ेद दिखाई देने लगती है साथ ही खड़े गन्ने के पौधों की आँखों से भी पतली घास जैसी शाखाएं निकलने लगती है, जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है।
रोकथाम के उपाय-
इस रोग की रोकथाम के लिए गन्ने के टुकड़ो को गर्म ठंडी मशीन में 54 डिग्री तापमान पर दो से तीन घंटे तक बीज को उपचारित कर ही बोेना चाहिए। इसके अलावा रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए और पौधे में रोग दिखाई देने पर तुरंत पौधे को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
8- उकठा रोग
गन्ने के पौधों में लगने वाला उकठा रोग फफूंद की वजह से फैलता है। इस रोग के लगने की वजह से पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सुखने लगती हैं और कुछ दिनों बाद पौधे पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। पौधों में ये रोग अधिक समय तक जलभराव बने रहने की वजह से फैलता है। इस रोग का प्रभाव बढ़ने से गन्नों का वजन कम हो जाता है और गन्ने अंदर से खोखले दिखाई देने लगते हैं।
रोकथाम के उपाय-
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के समय खेत की गहरी जुताई कर उसे खुला छोड़ देना चाहिए।
- खेत में बारिश के मौसम में अधिक समय तक जलभराव ना होने दें।
- इस रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले उन्हें ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए।
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर नीम की खली आदि का प्रयोग पौधों की जड़ों में करना चाहिए।
10 - तना बेधक
इसका प्रभाव बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता है। इस रोग में कीट की सुंडी पौधे के तने में छेद कर उसके अंदर प्रवेश कर जाती है जिसके बाद अंदर से पौधे के गुदे को खाकर उसकी वृद्धि को रोक देती हैं। रोग बढ़ने पर इसका प्रभाव ज्यादातर पौधों पर फैल जाता है, जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है।
रोकथाम के उपाय-
- इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर पत्तियों के सूख जाने के तुरंत बाद हटाकर बाहर निकाल देना चाहिए।
- खड़ी फसल रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मोनोक्रोटोफास की दो लीटर मात्रा को 900 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकाव करना चाहिए।
- इसके अलावा क्लोरोपाइरीफास या कार्बाेफ्यूरान की उचित मात्रा का प्रयोग लाभदायक होता है।
11- पायरिला
इसके कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं, जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता है और उसकी पत्तियां सूखने लगती है। इस रोग के कीट का सिर लम्बा और चौंचनूमा दिखाई देता है। इसके कीट शिशु और व्यस्क दोनों ही अवस्थाओं में पौधों को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पौधे पर काली फफूंद जन्म लेने लग जाती है।
रोकथाम के उपाय-
- इसकी रोकथाम के लिए क्यूनालफास की दो लीटर मात्रा को 900 लीटर पानी में मिलाकर छिडक देना चाहिए।
- इसके अलावा क्लोरपाइरीफास और डाइक्लोरोवास की उचित मात्रा का छिडकाव भी फसल के लिए लाभदायक होता है।
12- अगोला सड़न
गन्ने के पौधों में अगोले सड़न रोग का प्रभाव पौधे की शुरूआती अवस्था में देखने को मिलता हैं, जो बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता हैं। इस रोग के लगने पर पौधे की नई पत्तियां प्रारम्भ में हल्की पीली या सफ़ेद दिखाई देने लगती हैं. और रोग के बढ़ने पर पौधे की पत्तियां सड़कर गिरने लग जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है।
रोकथाम के उपाय-
- गन्ने के बीज का चयन करते समय अगर उनकी गाँठों पर हल्का लाल रंग दिखाई दे तो उनको प्रयोग नही करना चाहिए।
- गन्ने की गाठों को उपचारित करने के बाद ही खेतों में लगाना चाहिए।
- इसके अलावा खेत की तैयारी के दौरान भूमि में ट्राइकोडर्मा का प्रयोग गोबर की खाद में मिलाकर करना चाहिए।
13 - लाल धारी रोग
गन्ने के पौधों में लाल धारी रोग का प्रकोप पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर पौधे की नीचे की पत्तियां लाल दिखाई देने लगती हैं. और रोग बढ़ने पर धीरे धीरे सभी पत्तियां लाल रंग की हो जाती हैं, जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं।
रोकथाम के उपाय-
- इस रोग की रोकथाम के लिए इसके टुकडो को गर्म ठंडी मशीन में ढाई घंटे तक 54 डिग्री तापमान पर उपचारित करना चाहिए।
- बीज का चयन करते समय रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करना चाहिए।
14- सफ़ेद मक्खी
यह गन्ने के पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर पायी जाती हैं, जिनका आकर छोटा और रंग सफ़ेद दिखाई देता है। ये पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। प्रभाव बढ़ने पर पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है, जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं। इसके कीट पत्तियों का रस चूसकर उन पर चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पौधों पर काली फफूंद रोग का प्रकोप बढ़ जाता है।
रोकथाम के उपाय-
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एसिटामिप्रिड या इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
- इसके अलावा नीम के तेल का 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिडकाव करना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।