
खुदाई में मिले अंगुली की छाप (Finger Prints) Publish Date : 03/09/2024
खुदाई में मिले अंगुली की छाप (Finger Prints)
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
पहली बार मिले मानव की अंगुलयों के छाप कसेरूआ खरा में, इनका सम्बन्ध है महाभारत काल से एएसआई ने बताया एक ^^दुर्लभ खोज”।
कसेरूआ खेरा में उत्खनन का नेत्त्व कर रहे गुंजन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि यहँ चल रहे उत्खनन कार्य से उन्हें लगभग 25 टुकड़ों पर अंगुली की छाप मिली है। कुछ टुकड़ों पर एक से अधिक छाप भी मिली है कहने का अर्थ है कि कुल मिलाकर 30-35 अंगुलियों की छाप मिली है ओर यह कार्य अभी जारी है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के उम्खनन विभाग को पलवल जिले के कसेरूआ खेरा में पुरातात्विक उत्खनन के दूसरे चरण के दौान विचित्र धूसर मृदभांड (पीजीडब्लू) पर अंगुली के छाप (फिंर प्रिंट) मिले हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब एएसआई को 30 के लगभग अंगुली की छाप एक ही स्थान से प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही पीजीडब्लू पर श्वेत रंग के कमल के फूल आकृति भी प्राप्त हुई है।
लगभग 300 हजार वर्ष पुराने हैं पुरातात्विक अवशेष
अभी तक जितने भी हडप्पा पीजीडब्लू से सम्बन्धित स्थलों का उत्खनन किया गया है, उन स्थानों पर सफेद के स्थान पर काले रंग के ज्यामितीय आकार वाले प्रमाण प्राप्त हुए हैं। इस संबंध में एएसआई का कहना है कि यहाँ से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष लगभग 3000 वर्ष पुराने है, मतलब यह कि यह अवशेष महाभारत के समकालीन हैं।
कसेरूआ खेरा में उत्खनन का नेत्तव कर रहे अधीक्षण पुरातज्वविद गुंजन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी टीम को यहां करीब 25 टुकड़ों पर अंगली के छाप मिले हैं जबकि कुछ टुकड़ों पर एक से अधिक छाप भी मिले है इस प्रकार कुल 30-35 अंगुलियों के छाप मिलं हैं। इसके साथ ही केवल एक लाल मृदुभांड पर भी अंगुली के निशान प्राप्त हुए हैं। यहां से प्राप्त हुए इन अंगुली के निशानों का अध्ययन शारदा विश्वविद्यालय में किया जा रहा है।
यह अध्ययन में शारदा विश्वविद्यालय के दोनों इतिहास एवं फोरेंसिक विभाग सहयोग से किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यहां पीजीडब्लू पर श्वेत कमल, जानवर और ‘ऑड बोडेस’ की आकृति भी प्राप्त हुई है। इसके साथ ही यहां से प्राप्त पीजीडब्लू की कुल मोटाई 3.60 मीटर से भी अधिक है जो कि अपने आप में दुर्लभ है। अभी तक अधिकतर पजीडब्लू स्थलों से आधे से लेकर एक मीटर तक के साक्ष्य ही मिले हैं।
ज्ञात हो कि यहां स्थित पुराने किले का उत्खनन कार्य पांच पांच चरणों में किया जाना है लेकिन यहां केवल गिनती में ही पीजीडब्लू प्राप्त हुआ है। विशेष बात तो यह है कि अभी तक प्राप्त पीजीडब्लू में काले और ग्रे रंग के ज्यामितीय आकार के चित्र बनाने का ही प्रमकाण मिला है परन्तु यहां पहली बार श्वेत कमल के चित्र बनाए जाने का प्रमाण प्राप्त हुआ है।
शोध का विषय है अंगुली के निशानों का मिलना
ठतिहासकार भगवान सिंह का कहना है कि हडप्पा सभ्यता को ऋग्वेद काल भी कहा जाता है उस समय यह सभ्यता बहुत अधिक विकसित हुआ करती थी। इस काल में पीजीडब्लू एक बहुत अधिक उत्कृयट कला हुआ करती थी, जिसका विस्ता एक बहुत बड़े क्षेत्र में था। उक्त कालखंड का समय 1000-1200 ईसा पूर्व माना जाता है जिसे महाभारत कालीन भी कहा जाता है। इस स्थान पर इतनी बड़ी मात्रा में पीजीडब्लू के कई प्रकार का मिलना इस सभ्यता के विकासक्रम को दर्शाता है। इसी कालखंड़ को महाभारत कालीन भी कहा जाता है। ऐसे में अंगुलियो के निशानों का मिलना शोध का विषय है, वह भी इसलिए क्योंकि अब से पहले किसी भी उत्खनन में अंगुली के निशान प्राप्त नही हुए हैं।
अभी तक कहीं से भी अंगुली के निशान कहीं से भी प्राप्त नही हुए हैं: पुरातत्वविद्
एएसआई के पूर्व महानिदेशक एवं वरिष्ठ पुरातत्वविद् आर. एस. बिष्ट ने बताया कि कसेरूआ खेरा में हुई खुदाई के दौरान पीजीडब्लू पर प्राप्त श्वेत रंग की चित्रकारी तथा उसका रूप दुर्लभ तो है ही क्योंकि इससे पहले कहीं से भी उत्खनन के दौरान यह प्राप्त नही हुआ है। इसके साथ ही शोध का सबसे बड़ा विषय यहां पर मिले अंगुली के निशान हैं। शोध के माध्यम से यह जान पाना भी सम्भव होगा कि क्या आज के कुम्हारों से उनका कोई लेना-देना अर्थात कोई वंशानुगत परम्परा भी है अथवा नही।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।