अंगदान के प्रति बढ़ानी होगी सामाजिक जागरूकता Publish Date : 23/08/2024
अंगदान के प्रति बढ़ानी होगी सामाजिक जागरूकता
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मां
प्रत्येक वर्षं की तरह ही इस बार 13 अगस्त को ‘विश्व अंगदान दिवस’ भारत में भी पूरे जोश-खरोश के साथ मनाया गया। अधिकतर लोग ऐसे हैं जोे अपने लिए ही जीते हैं, हालांकि, दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो जीते जी और मरने के बाद भी दूसरों के लिए जीवनदान देने का महत्वपूर्णं कार्य करते हैं।
कहने का अर्थं यह है कि अंगदान करने से ऐसा करना संभव है। भारत में परोपकार करने की बहुत पुरानी परम्परा रही है। महाराज शिवि, दधीचि और तमाम देवता कहे जाने वाले व्यक्तियों ने दूसरों को जीवन देने के लिए अपनी जिंदगी का भी दान कर दिया। हालांकि अंगदान के लिए प्रोत्साहित करना एक बड़ी चुनौती होती है। इस चुनौती के मद्देनजर विश्व स्तर पर अंगदान को बढ़ावा देने के लिए 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।
मौत, जीवन का अंतिम सच है। यदि मौत को खूबसूरत बनाया जा सके तो जिंदगी के लिए इससे बड़ा उपहार किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता और यह सबसे बड़ा उपहार है कि मरने के बाद या जीते जी जरूरत पड़ने पर अपने अंगों को दान देने का संकल्प लेना। किसी को जीवन देने का संकल्प इंसानियत का यह खूबसूरत विचार है जिसकी तस्वीर बेहद सुंदर है, जो धरती को स्वर्ग बनाने और दुखों से छुटकारा दिलाने का कार्य करता है।
एक पौराणिक संदर्भ है कि ऋषि दधीचि और महाराज शिवि ने किसी की जान बचाने और समाज की भलाई के लिए अपना शरीर दान दे दिया था। इसी तरह के तमाम और भी कईं संदर्भ या मिथक हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं जहां जीवित रहते शरीर दान देना सबसे बड़ा दान बताया गया है। पौराणिक मिथकों या पौराणिक संदर्भ दोनों को समझने की जरूरत है। खासकर हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि की मान्यताओं को मानने वाले लोगों को। क्योंकि इसमें वर्णन किए गए संदर्भ आध्यात्मिक और रहस्यमय है। आम आदमी साधारण ढंग से इनका मतलब नहीं समझ पाता है। इसलिए अंगदान देने के संदर्भों का सही मतलब व रहस्य जानकर ही मानना चाहिए।
इससे जहां समाज को कुछ बेहतर देने और बेहतर तरीके से समझाने में मदद मिलती है यहीं पर तमाम तरह के मिथकों के रहस्य भी समझ में आ जाते हैं। अंगदान के मामले में प्रचलित ऐसे मिथक अंधविश्वास और अंग आस्थाएं दुनिया के तमाम हिस्सों में भी प्रचलित हैं जिनका नकारात्मक असर समाज में लगातार बना रहता है। अंगदान किसी इंसान को नया जीवन देना जैसा ही है। नेत्रहीनों को नेत्र देने वाले लोग उन व्यक्तियों के जीवन में उजियारा फैलाने का कार्य करते हैं जो नेत्रहीन है।
सरकारी आंकड़े जाहिर करते हैं कि हर साल 5 लाख लोगों की मौत अंगों की अनुपलब्धता के कारण से हो जाती है, जिसमें ऐसे 2 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हृदय की बीमारी के कारण, पचास हजार व्यक्तियों की मौत लीवर न मिलने के कारण और हर साल एक लाख व्यक्तियों की मौत गुर्दा न मिलने के कारण हो जाती है। जबकि पत्येक साल लगभग 5 हजार लोगों को ही अंगदान में मिले गुर्दे के प्रत्यारोपण होने से नया जीवन मिल पाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक स्वभाविक मौत के हालात में कार्निया, हृदय वाल्व, त्वचा और हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है भारत में कर्निया दान की स्थिति काफी बेहतर है, लेकिन मस्तिष्क मौत के बाद किए जाने वाले देहदान की गति बहुत धीमी है। विश्व स्तर पर हर साल लाखों की तादाद में नये गुर्दे, दिल, फेफड़े, अग्नाशय छोटी आंत, आंख, ऊतक और यकृत जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों का दान अपने रिश्तेदारों और अस्पतालों में किसी मरीज को निःस्वार्थ भाव से अंगदान करने वाले लोग करते रहते हैं, लेकिन अंगो की कमी बहुत बड़े पैमाने पर हमेशा ही बनी रहती है और भारत में तो यह कमी अत्यंत चिंताजनक है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हर साल मांग को पूरा करने में 1,75000 किडनी 50,000 लीवर, दिल और फेफड़े, 2,500 अग्नाशय की जरूरत बनी रहती है। इस स्थिति से समझा जा सकता है कि अंगदान के प्रति हमारे समाज में जागरुकता कितनी कम है। भारत में तो शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही वर्गों में अंगदान करने की आदत या करने के स्थिर विचार बेहद कम हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जो भी इसके सम्बन्ध में जागरुकता अभियान चलाती रही है ये सभी लोगों को प्रभावित करने में बहुत कम असरदायक साबित होते हैं।
यदि हम अंगदान को मानव का सबसे पवित्र कर्तव्य मानें तो इसके प्रति हमारे अन्दर पल रही तमाम तरह की गलत या उल्टी सोच को बदलने में आसानी होगी। क्योंकि अंगदान धर्म, जाति, क्षेत्र, देश, उम्र और वर्ग से हट कर किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अपना कोई भी अंग दुनिया में किसी भी जगह पर दान कर सकता है। अंगदान तो जीवनदान का ही हिस्सा है। फिर यह धर्म के विरुद्ध कैसे हो गया? क्या ईश्वर अपनी किसी संतान को बेहतर स्थिति में नहीं देखना चाहता?
सेवा को मानवता का सबसे बड़ा धर्म कहा गया है, उसे यदि हम किसी को जीवन देने के लिए समर्पित कर दें तो, मानवता के लिए इससे बड़ी सेवा क्या हो सकती है?
हमारी जिंदगी भी यदि इसी तरह खूबसूरत वगैर किसी को एहसान जताए काम आ जाए तो इससे अच्छा जिंदगी का मकसद क्या कोई हो सकता है? इस पर विचार करेंगे तो इस बार अंगदान दिवस पर आप भी अंगदान करने का संकल्प लेंगे ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां जिला अस्पताल मेरठ के मेडिकल ऑफिसर हैं।