नई तरीके से खेती करने की जरूरत Publish Date : 18/08/2024
नई तरीके से खेती करने की जरूरत
प्रोफेसर आर एस सेंगर
हमारा देश विकास की राह पर चल रहा है और नित नई-नई तकनीक के प्रयोग से काफी चीज आसान भी हो गई हैं। अतः आज के इस वैज्ञानिक युग में कृषि भी आधुनिक तकनीक से की जानी चाहिए। फसलों की नई प्रजातियों को तैयार किया जाना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते अब नए बीज और नई कृषि तकनीकी को अपनाना बहुत ही आवश्यक हो गया है, हालांकि तकनीकी ऐसी होनी चाहिए जो किसी प्रकार का नुकसान ना करें।
हमें अपनी कृषि को भी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाना होगा, हालांकि आज देश में कृषि आधुनिक तकनीक से की भी जा रही है और बहुत सी फसलों, फलों और सब्जियों के नए रूप भी तैयार कर लिए गए हैं और कृषि से संबंधित वैज्ञानिक तथा अन्य लोग जिसमें हम किसानों को भी शामिल करेंगे इसके लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं, ताकि देश में फसले, फल एवं सब्जियों को आधुनिक तकनीक से तैयार किया जाए जिससे किसानों को कम लागत में फसल की अधिक पैदावार मिले।
किसान भी नई तकनीकी को अपना रहे हैं
हमारे देश में शिक्षा के पाठ्यक्रम में इस विषय को प्रमुखता से देने के लिए भी सरकार को गंभीरता से सोचना होगा और तत्परता दिखानी होगी, जिससे गांव में सप्ताह में एक बार इस विषय से संबंधित नुक्कड़ नाटकों का आयोजन भी किया जाना चाहिए। इसके साथ ही फसल चक्र विधि अपनाने से किसान अपनी फसल की पैदावार को बढ़ा सकते हैं। ऐसे संदेश किसानों तक जाने चाहिए, क्योंकि इस विधि से धरती की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है और फसल रोग एवं कीट आदि से सुरक्षित रहती हैं। सरकार को चाहिए कि वह कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर कृषि की ऐसी तकनीक विकसित करें, जिससे देश के हर राज्य में मौसम के कारण होने वाले फसलों के नुकसान से किसानों को बचाया जा सके। जिस तरह मौसम का चक्र परिवर्तन हुआ है उसी हिसाब से फसलों को पैदा किया जाए और उनकी खेती की जाए, इसी तरीके से हमारे अन्नदाता की आय को बढ़ाया जा सकता है।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने फसलों कई ऐसी प्रजातियां का विमोचन भी किया है, जो जलवायु परिवर्तन के इस दौर में भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम है। हमारे अन्नदाताओं को चाहिए कि अपने खेत के कुछ क्षेत्रफल में इन नई प्रजातियों को लगाकर देखें और यदि इसके अच्छे परिणाम दिखाई देते हैं तो वह बृहद स्तर पर इसकी खेती प्रारंभ कर सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।