पीपली की किस्म एमडीपी-16 भरपूर पैदावार Publish Date : 07/08/2024
पीपली की किस्म एमडीपी-16 भरपूर पैदावार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
अभी तक पीपली मुख्य रूप से केरल और भारत के उत्तरपूर्वीं राज्यों में ही उगाईं जाती रही है, अब तक ऐसा माना जाता था कि पीपली की खेती अन्य क्षेत्रों में नही की जा सकती, परन्तु अब छत्तीसगढ़ के कोंडागाँव से किसानों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है कि केरल की बहुमूल्य औषणीय फसल मानी जाने वाली पीपली की हर्बंल खेती अब इस गाँव में भी की जा रही है।
पीपली जमीन पर ही फैलने वाली एक बहुवर्षींय लतावर्गींय बहुमूल्य वनौषधि है। इसके फलों को सुखाकर उपयोग मे लाया जाता है। इसे पीपली, पिप्पली या लेडी पीपल के नाम से भी जाना जाता है। इस लता के पत्ते काली मिर्चं और पीपल की तरह ही दिखाईं देते हैं, हालांकि यह आकार में छोटे होते हैं।
कोंडागाँव के ‘‘माँ दंतेश्वरी हर्बंल फार्मं एवं रिसर्चं सेंटर’’ के द्वारा पिछले कईं वर्षोंं से किए जा रहे शोध के बाद पीपली की एक नईं पजाति का विशुद्व जविक एवं परम्परागत तरीके से विकसित की गईं है जिसे ‘माँ दंतेश्वरी-16’ (एमडीपी-16) का नाम दिया गयण है। प्रयोगशाला में परीक्षण के बाद ज्ञात हुआ है कि यह पीपली गुणवत्ता में भी परम्परागत पीपली से काफी अच्छी है।
यह प्रजाति कम सिंचाईं अथवा गैर सिंचाईं वाले क्षेत्रों में भी सही वृक्षारोपण के साथ आर बिना किसी विशेष देखभाल के ही अच्छी उपज देने में सक्षम है। पीपली की खेती जमीन को सीधी धूप से बचाती है, जिसके कारण केंचुएं तथा अन्य लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या में 300 फीसदी तक की वृद्वि हो जाती है। इस प्रकार से पीपली की खेती करने से धरती के स्वास्थ्य को भी अच्छा बनाया जा सकता है। पीपली को जानवर भी नही खाते हैं और इस पर कीट एवं रोगों का प्रकोप भी प्रायः कम ही होता है।
पीपली की किस्म एमडीपी-16 को छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों के साथ ही इसके समीपवर्तीं राज्यों जैसे ओडिशा, झारखण्ड़, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र आदि प्रदेशों सफलतापूर्वंक उगाया जा सकता है। इसका छाया के लिए वृक्षारोपण कर किसान इसके माध्यम से एक अच्छी अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं।
पीपली को एकबार लगाने के बाद कईं वर्षोंं तक इसका उत्पादन लिया जा सकता है और एक अच्छी बात यह भी है कि एक बार लगाने के बाद इसमें कोईं विशेष लागत और मेहनत भी नही करनी पड़ती है। यदि इसकी उपज के बारे में बात की जाए तो एक एकड़ में लगभग 400-50 किलोग्राम तक इसका भाव 200 रूपये प्रति किलोग्रम तक मिल जाता है। इसकी खेती से प्रति एकड़ एक लाख रूपये अथवा बिना किसी अतिरिक्त लागत, मेहनत और प्रतिकूल परिस्थितियों मे भी किसान कम से कम 50,000 रूपये तक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
पीपली के फलों के अलावा इसकी जड़ भी विभिन्न औषधियों के निर्मांण में काम आती है, जिसे पीपलामूल कहते हैं। पीपली की जड़ भी 150 से 200 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक जाती है।
पीपली को इसकी परिपक्व चयनित कलम के द्वारा ही लगाया जाता है जिससे इसका पौधा एक बार लगाने के बाद दोबारा से इसके पौधे या बीज खरीदने की आवश्यकता नही पड़ती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।