कृषि के लिए आवंटित धन नाकाफी क्योंकि जो मांगा वह नहीं मिल पाया      Publish Date : 27/07/2024

       कृषि के लिए आवंटित धन नाकाफी क्योंकि जो मांगा वह नहीं मिल पाया

                                                                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेगर

यदि आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो 1,52000 करोड़ रुपए की राशि बहुत बड़ी धनराशी नजर आती है। इसीके आधार पर बजट में कृषि को महत्व दिए जाने का दावा किया जा रहा है। घोषणाओं की बात करें तो एक करोड़ किसानों से प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरिम किया जाएगा, जलवायु आधारित बीज दिए जाएंगे, 400 जिलों में खरीफ फसलों का डिजीटल सर्वेक्षण किया जाएगा। दलहन और तिलहन में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया जाएगा।

                                                                                  

हर बार की तरह एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य), किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना और खेतिहर मजदूरों के मामले में निराशा ही हाथ लगी। कृषि उपकरणों पर जीएसटी समाप्त करने की मांग भी बजट में पूरी नहीं की गई है। किसानों की सबसे बड़ी मांग स्वामीनाथन फार्मूले (सी2 प्लस 50 प्रतिशत) से एमएसपी की गारंटी की रहती है, इसको लेकर किसान फिर से आंदोलित भी हो रहे हैं। किसान जिस तरह से एमएसपी की माँग कर रहे हैं, उससे अधिक राशि लगनी है, इसलिए यह बजट का ही विषय है। इसी तरह से फसल बीमा योजना में सधार करने की माँग भी काफी परानी है लेकिन इस वर्षं के बजट में भी इस बात पर ध्यान नही दिया गया है।

सरकार इसी को लेकर खश है कि 4 करोड़ किसानों के द्वारा फसल बीमा योजना को अपनाया गया है जबकि देश में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या ही 13 करोड़ से अधिक है।

                                                                             

जब किसान सम्मान निधि योजना लाई गई थी, तब ही से यह मांग है कि खेतिहर मजदूरों के लिए भी इसी तरह की कोई योजना लाई जाए। खेतिहर मजदूरों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, पिछले कुछ सालों से खेतिहर मजदूर भी आत्महत्या करने लगे हैं। सरकार ने बजट में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने की बात कही है लेकिन इसको लेकर कृषि अर्थशास्त्री संदेह जताते हैं कि अगर इसकी वजह से उत्पादन गिरा तो फिर क्या होगा? उनका इशारा अस्सी करोड़ व्यक्तियों को मुफ्त खाद्यान्न बांटने की तरफ है।

वहीं आरएसएस के किसान संगठन बीकेएस का कहना है कि प्राकृतिक खेती की कल्पना गाय और गोवर के बिना संभव ही नहीं है। हालांकि संगठन फसलों के डिजीटल सर्वेक्षण की प्रशंसा करता है।

आरएसएस के किसान संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) के महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा है कि अगर अधिक उत्पादन के लिए जलवायु आधारित बीज के बहाने जीएम बीज की अनुमति दी गई है तो उनका संगठन विरोध करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा है कि   कृषि क्षेत्र में शोध और अनुसंधान के लिए निजी क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाए, बल्कि यह काम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से ही कराया जाए। बजट में निजी क्षेत्र को शामिल करने की बात कही गई है।

घोषणाओं में प्राकृतिक खेती, उन्नत बीज, फसल का डिजीटल सर्वेक्षण जैसी बातें एमएसपी, किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना और खेतिहर मजदूरों के लिए कुछ नहीं

कृषि उपकरणों पर से जीएसटी भी नहीं हटाया गया

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।