स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य का रक्षकः मशरूम      Publish Date : 04/07/2024

                     स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य का रक्षकः मशरूम

                                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

वनस्पतियाँ प्रकृति के द्वारा मानव को प्रद्वत एक अनुपम उपहार है। समस्त जन्तु-जगत के लिए वनस्पतियाँ कितनी उपयोगी हैं इसका आंकलन बेहद कठिन है क्योंकि ये सम्पूर्ण जन्तु जगत के जीवन सभी आवश्यकताएं को पूर्ण करती हैं। इन वनस्पतियों का एक वर्ग सूक्ष्म वनस्पतियों का है जिसे कवक कहा जाता है। साधारणतः ये नम स्थानों एवं पेड़-पौधों के सड़े-गले अवशेषों पर पनपते हैं।

                                                                      

कवक पेड़-पौधों के इन्हीं अवशेषों में विद्यमान कार्बन एवं नाइट्रोजन युक्त पदार्थों से ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं, जिन्हें मशरूम कहते हैं। साधारणतः मशरूम की सैंकड़ों प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। जिनमें से कुछ तो बहुत विषैली होती है, परन्तु उपयोगिता की दृष्टि से मशरूम (कवक) की कुछ प्रजातियाँ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी होती हैं, जैसे- शोन्गी, शीटेक, प्लूरोटस, रिशी, काबाराटेक तथा अगेरिकस आदि। इनका उपयोग खाद्य के रूप में अति प्राचीन से किया जाता रहा है जिसका लिखित प्रमाण 100 बी0सी0 से प्राप्त होता है।

 खाद्य रूप में मशरूम का उपयोग हजारों वर्षों पूर्व जापान में आरम्भ हुआ था इसके बाद चीन, कोरिया तथा अन्य पश्चिमी देशों में, परन्तु आज इनका उपयोग केवल खाद्य रूप में ही नही वरन् पूरे विश्व में औषधि, सौन्दर्य प्रशाधन, स्वास्थ्यवर्धक के रूप में प्रचुरता से किया जा रहा है।

    साधारणतः अच्छे एवं पोष्टिक भोजन से अभिप्रायः भोजन में विद्यमान आवश्यक सूक्ष्म एवं वृहद तत्व, अधिक ऑक्सीकारक तत्वों का होना, कम कैलोरी का उत्पादन, कार्बोहाइड्रेट्स की संतुलित मात्रा, प्रोटीन एवं वसा की आवशयक मात्रा आदि गुणों से की जाती है। मशरूम में उपरोक्त वर्णित सभी गुण उपलब्ध होने के कारण इसे एक आर्दश भोजन की श्रेणी में रखा जाता है।

मशरूम का पोषकीय मूल्यांकन

    मशरूम में जल की मात्रा 96 प्रतिशत होती है जो केवल पत्तेदार सब्जियों (90.08 प्रतिशत) को छोड़कर सभी फलों, सब्जियों, अण्ड़ा और मनस से भी अधिक होती है। इसमें खनिज पदार्थों की उपलब्धता भी अन्य सभी खाद्य पदार्थों से अधिक यानी लगभग 59 प्रतिशत होती है।

मशरूम विद्यमान खनिज, लवण, पोटेशियम, फॉस्फोरस, तांबा, जस्ता, मैगनीशियम, मैग्नीज, फोलेट, लौह तथा दुर्लभ एवं अति महत्वपूर्ण खनिज सिलेनियम जो कि विटामिन-ई के समतुल्य होने के कारण ऑक्सीकारकरोधी तत्वों का उत्पादन कर कोशिकाशामक स्वतंत्र मूलकों को निष्क्रिय कर मानव शरीर को कैंसर एवं बुढ़ापे के रोगों से बचाव करता है।

मशरूम में अल्प मात्रा में सोडियम भी उपलब्ध रहता है। मशरूम में अन्य विटामिन जैसे- पेन्टोथिनिक अम्ल (बी-12), बायोटिन (बी-7), कबोलेमिनस (बी-12), प्रोव्टिामिन-डी तथा ई एं विटामिन-सी की अधिक मात्रा (81mg/10 Gm) होती है। मशरूम में विटामिन की अच्छी मात्रा होने के कारण उपरोक्त वर्णित सभी विटामिन्स की पूर्ति हो जाती है जो कि शाकाहारी लोगों के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं।

    खाद्य एवं औषधि के रूप में मशरूम का उपयोग चीन में 4 हजार वर्ष पूर्व से ही किया जा रहा है। जिसका कारण है कि मशरूम की पहिचान एवं उपयोग सर्वप्रथम चीन, जापान एवं कोरिया आदि देशों की गई थी। तत्पश्चात् पश्चिमी देशों तथा अन्य देशों में मशरूम का सौन्दर्य के लिए उपयोग वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अनुसंधानों के परिणाम स्वरूप हाल ही के वर्षों में सामने आया है। मशरूम से निर्मित सैंकड़ों सौन्दर्य वर्धक उत्पाद चीन, जापान, कोरया तथा लगभग सभी पश्चिमी देशों में प्रचुरता से उपयोग किया जा रहा है।

मशरूम में निहीत सौन्दर्यवर्धक तत्व बीटा 1,3 डी-ग्लूकॉन, बीटा 1,6-डी-ग्लूकॉन तथा कोजिक अम्ल है। बीटा 1,3- डी-ग्लूकॉन एक उच्च आणविक भार वाला बीटा-1,3- बन्धित ग्लूकोपायरानोस हैं। इसके गुणों एवं क्रियाशीलता को ध्यान में रखते हुए इसे जैविक प्रतिक्रिया परिवर्तक वाले यौगिको की श्रेणी में रखा गया है। हमारे शरीर की प्राकृतिक क्रियाविधि की सक्रियता एवं त्वचा आदि के घाव भरने की क्रियाओं की गतिवर्धन तथा उसके नियमितीकरण में इसका विशिष्ट योगदान है और यह हमारी त्वचा में विद्यमान लैन्गरहैन्स कोशिकाओं एवं प्रतिरक्षक कार्यक्षम कोशिकाओं को भी स्वस्थ रखता है।

ग्लूकॉन का उपयोग तनावग्रस्त त्वचा की क्रियाशीलता में सुधार लाने के लिए अविशिष्ट प्रतिरक्षक प्रेरक के रूप में भी प्रारम्भ किया जा चुका है। बीटा-1,3-डी-ग्लूकॉन एक प्रमुख पोषक तत्व (उच्च परमाणु भार वाला कार्बोहाइड्रेट्स का बहुलक) होने के साथ जैविक प्रतिक्रिया परिवर्तक वर्ग के अन्तर्गत आता है। यह अनेकों ईस्ट, कवक, बैक्टीरिया आदि की कोशिका-भित्ति तथा कुछ अन्न ग्लूकोज जैसे जई तथा जौं में भी उपस्थित रहता है। इसकी संरचना स्रोत के अनुसार भिन्न होने के कारण हमारे शरीर की अनेकों आन्तरिक क्रियाओं को भी प्रभावित करता है।

मशरूम सबसे अच्छा प्रभाव हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और रोगरोधी क्षमता पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह कवकरोधी होने के कारण हमारी त्वचा को अनेक संक्रामक रोगों से भी सुरक्षित रखता है।

मशरूम की कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियाँ 

                                                      

कोरियोलस वर्सीकलर (Coriosous Versicolor):- मशरूम की इस प्रजाति में विद्यमान रासायनिक अपघटक कोर्लोलिन, बीटा-ग्लूकॉन तथा प्रौअीन सम्बद्व पॉलीसेकेराइड, जिसे ‘क्लीन’ कहा जाता है, में प्रमुख सौन्दर्य/रक्षक/उपयोगी तत्व पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के द्वारा इसमें सूक्ष्म जीवाणुरोधी गुणों की भी पुष्टि की है। उपरोक्त तत्व हमारी त्वचा को सुन्दर एवं कोमल रखने के साथ-साथ UV किरणों से उत्पन्न त्वचा में जलन, त्वचा का लाल हो जाना को समाप्त कर त्वचा के ऊतकों को स्वस्थ रखती है। इसके अतिरिक्त इसका उपयोग त्वचा को सुरक्षित रखने के लिए क्रीम, मुहांसे रोधी क्रीम, मालिश उत्पादों एवं सेलूलाइट रोधी उत्पादों में किया जाता है।

प्लूरोटस इरिन्गी (Pleurotus eryngii):- मशरूम की इस प्रजाति में विद्यमान प्रमुख क्रियाशील बीटा-1,3/1,6-डी-ग्लूकॉन हैं। हमारी बाह्य त्वचा में अनेकों प्रतिरक्षक कोशिकाएं उपलब्ध होते हैं जो त्वचा की अन्य कोशिकाओं के साथ मिलकर स्वस्थ त्वचा की सम्पूर्ण एवं क्रियाशीलता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बीटा-ग्लूकॉन महत्वपूण लैगरहैन्स, फाइब्रोब्लास्ट को क्रियाशील करता है जिसके परिणाम स्वरूप हमारी क्षतिग्रस्त, जली हुई, शुष्क त्वचा को पूर्णतः प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त यह स्वतंत्र मूलकों के उद्ग्रहण में सहायता करने के साथ त्वचा के ऊतकों को वृद्व होने से रोकता है। इस सन्दर्भ में हैन्कुक कम्पनी ने इम्यूनों ग्लूकेन नाम से त्वचा एवं सौन्दर्य रक्षक क्रीम, लोशन, सीरप और कैप्सूल बाजार में उतारे हैं।

यह हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में अत्यन्त लाभप्रद है चीन में इसका उपयोग पारम्परिक औषधियों के रूप में, त्वचा को तरूण रखने में किया जाता है।

लेन्टिनस इडोडस (Lentinus edodns):- चीन एवं जापान में इसमें विद्यमान बीटा-ग्लूकॉन, काजिक अम्ल तथा गैनोडेरिक एसिड तथा अन्य सक्रिय तत्वों का उपयोग अनेकों हर्बल उत्पादों में किया जाता है। इससे त्वचा रक्षक सौन्दर्यावर्धक क्रीमों का उत्पाद अनेंकों अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के द्वारा किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण है कि इसमें कोजिक अम्ल विद्यमान होने के कारण यह त्वचा में मिलेनिन की उत्पत्ति को रोकता है इसके अतिरिक्त इसमें स्तम्भक गुण होने के कारण यह त्वचा को दृढ़ता एवं चुस्ती पैदा करता है।

मशरूम की विभिन्न प्रजातियों में पोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा (ग्राम/100 ग्राम सूखा द्रव्य)

मशरूम की प्रजाति

प्रोटीन

कार्बोहाड्रेट्स

वसा

राख

रेशा

नमी

अगेरिकस बाइस्पोरस

33.2

56.9

1.9

8.0

8.1

89.7

अगेरिकस कम्पेस्ट्रिस

33.2

56.9

1.9

8.0

8.1

89.7

आर्मीलेरिया मिलिया

16.1

76.1

5.2

7.8

5.8

86.0

बोलिटस इड्रयूलिस

35.24

59.7

3.1

7.5

8.0

87.3

कैन्थेरिलस सिबेरियस

21.4

65.7

4.7

8.2

11.2

91.5

कॉपरिनस क्रोमेट्स

25.4

58.8

3.3

12.5

7.3

92.2

लैक्टेरियस डिलिसियोसस

27.42

27.6

6.72

5.92

-

88.8

लैन्टिनस इडोलस

17.5

67.5

8.0

7.0

8.0

90.0

मर्किला स्कूलेन्टा

35.0

55.5

7.5

13.6

9.5

91.2

प्लूरोट्स आस्टियेरस

30.4

57.6

2.2

9.8

8.7

90.8

वोल्वेरिला वोल्वेसिया

29.5

60.0

5.7

4.8

10.4

90.1

वर्षा वाहेमिका

36.06

-

2.89

-

87.38

87.38

                                                                            

इस प्रजाति में मशरूम का निष्कर्षण पूर्णतः प्राकृतिक एवं अनोखा जैव हर्बल होने के कारण त्वचा को कोमल, सुन्दर एवं गोरी करने के लिए जापान में प्रमुखता से उपयोग में लाया जाता है। इसमें अनेकों अमीनो अम्ल, खनिज तथा प्रति-ऑक्सीकारक रसायन विद्यमान होने के कारण यह त्वचा के लिए अत्यन्त लाभदायक है। यह त्वचा को नया, स्वस्थ और चमकीला बनाने के साथ त्वचा की सभी कोशिकाओं (जिनमे मिलेनिन रंजक कोशिकाएं भी सम्मिलत हैं) को मृत होने से बचाता है। इसमें विद्यमान एन्जाईम त्वचा में पहुंचने के पश्चात् शरीर की अन्तःस्रावी तेत्र में जैविक क्रियाओं को सामान्य रखने के साथ त्वचा के रंग की समस्या को भी समाप्त कर देता है। वर्ष 1994 तक सौन्दर्यवर्धक साबुन एवं अन्य प्रशाधनों फिनॉल, हाइड्रोक्वीनॉन, पोटेशियम मर्क्यूरिक आयोडाइड, कार्बोक्सिलिक तत्वों से निर्मित किया जाता था जो हमारे शरीर के लिए अत्यन्त हानिकारक थे।

अफ्रीकी देशों में इनके अधिक प्रयोग का कारण ही उनकी त्वचा के सांवली होने का कारण था। इनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए अफ्रीका एवं नाइजीरिया ने वर्ष 1997 से इन प्रसाधनों का उ