खेतों में प्रयोग किए गए एनपीके का मृदा पर मात्र 1 से 30 प्रतिशत असर Publish Date : 04/07/2024
खेतों में प्रयोग किए गए एनपीके का मृदा पर मात्र 1 से 30 प्रतिशत असर
डॉ0 आर. एस. सेंगर
“मृदा वैज्ञानिकों की एक रिसर्च में सामने आया उर्वरक मिट्टी में मिलकर गंभीर बीमारियां बढ़ा रहे हैं।“
खेतों में किसान हजारों क्विंटल नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व सल्फर उड़ेल रहे इनका मिट्टी पर महज 1 से 30 प्रतिशत तक ही असर, बाकी बन रहे हानिकारक पदार्थ-
प्रदेश व देश की खेती में किसानों द्वारा बिना सोचे समझे धड़ल्ले से रासायनिक खाद व दवाइयां खेत में अनियंत्रित मात्रा में उड़ेली जा रही हैं। इसका सीधा असर हमारे अनाज, सब्जियों व स्वास्थ्य पर हो रहा है। मृदा वैज्ञानिकों की रिसर्च में सामने आया कि किसान जो दवाई व खाद मिट्टी में डाल रहे हैं। उसका 2, 5,20 व 30 फीसदी ही असर हो रहा है। बाकी सब हानिकारक पदार्थ बनकर मिट्टी में मिल रहा है, जो मृदा, वायु व अनाज के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है। यह कैंसर जैसे रोगों को बढ़ावा भी दे रहा है। वहीं अगर ऐसे ही चलता रहा तो ब्लू बेबी सिंड्रोम जैसी बीमारियों के बढ़ने की आशंका भी जताई जा रही है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस ने भी इस पर चिंता जताते हुए अपने विजन 2050 में मुख्य बिंदू के रूप में शामिल किया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मिट्टी की पौष्टिकता में कमी आने से अनाज का उत्पादन तो कम हो ही रहा है, अनाज की पौष्टिकता भी नहीं बच पा रही है। रिसर्च करने वाले मृदा वैज्ञानिक बताते हैं कि करीब 60 साल पहले हरित क्रांति आने के बाद मिट्टी के व्यवहार में बदलाव आया है। मिट्टी की उर्वरक उपयोग की क्षमता अब खत्म होती जा रही है। उपाय के तौर पर जैविक खाद का उपयोग करना बेहद जरूरी है, वरना हमारी जमीन बंजर हो जाएगी। किसानों द्वारा बिना सोचे समझे व बिना यह पता किए कि कौनसी दवाई किस फसल के लिए जरूरी है, मिट्टी को कितनी इसकी आवश्यकता है.. असंतुलित, अनियंत्रित व अनियमित तरीके से उर्वरकों का उपयोग कर रहे है। इससे मिट्टी अपने मूल व्यवहार को भी खोती जा रही है।
इनका उपयोग अधिक लेकिन असर बेहद कम
उर्वरक तत्व |
मिट्टी व पौधे में असर |
जहरीले पदार्थ |
नाइट्रोजन |
30 प्रतिशत |
70 प्रतिशत |
फॉस्फोरस |
15 से 20 प्रतिशत |
80 से 85 प्रतिशत |
जिंक |
2 प्रतिशत |
98 प्रतिशत |
आयरन |
1 प्रतिशत |
99 प्रतिशत |
कॉपर |
1 प्रतिशत |
99 प्रतिशत |
आंकड़े रिसर्च से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार
यूरिया से समझिए हानि का उदाहरण- पौधों के लिए नाइट्रोजन एक आवश्यक तत्व है। रसायन व उर्वरक विभाग के अनुसार वर्ष 2022-23 में यूरिया की खपत 357 लाख टन थी। मृदा वैज्ञानिक ने बताया कि मिट्टी में डाले जा रहे यूरिया का 30 फीसदी ही उपयोग हो पा रहा है। बाकी का करीब 70 फीसदी यूरिया सीधे मिट्टी में मिलकर उसकी सेहत को खराब कर रहा है। बता दें कि सरकार भी इसके चलते नैनो यूरिया को बढ़ावा दे रही है। नैनो यूरिया सीधे मिट्टी में न मिलते हुए इसका पत्तों पर स्प्रे किया जाता है।
अनियंत्रित मात्रा में नाइट्रोजन का उपयोग कर रहे
किसानों को मिट्टी परीक्षण अनिवार्य रूप से कराना चाहिए। तीन ‘अ’ असंतुलित, अनियमित व अनियंत्रित उर्वरकों का उपयोग बंद करना होगा और जैविक खाद को बढ़ावा देना होगा। जब उर्वरक व्यर्थ जाता है तो यह मृदा जल व वायु में घुलता है। विदेशों में जैसे बच्चों में ब्लू बेबी सिंड्रोम हो जाते हैं, वही संकट भारत में भी आने की आशंका है। क्योंकि अनियंत्रित मात्रा में हम नाइट्रोजन का उपयोग कर रहे हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।