बढ़ता ही जा रहा है जल संकट

                              बढ़ता ही जा रहा है जल संकट

                                                                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर

‘‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब’’ सून यह पंक्तियां महाकवि रहीम ने कही थी जो वर्तमान में बिल्कुल सत्य साबित हो रही है, क्योंकि आने वाले कुछ समय बा पानी के अभाव में लोग तड़पने लगेंगे और जीवन जीना दूभर हो जाएगा। इस वर्ष 2024 में देखा गया कि अप्रैल के महीने में गर्मी ने दस्तक दी भी नहीं थी कि विभिन्न शहरों में जल संकट मंड़राने लगा था। होली के रंगों से नाहे बिना ही फागुन में रंगों की स्वरों से सराबोर हुए बिना ही सुख के हालात का सामना करना पड़ा था।

                                                                                  

जल संकट की जो स्थिति में जून के महीने में होती थी, वह अब मार्च में ही देखने को मिलने लगी थी और अभी से ही कई शहरों में लोग पानी की किल्लत से जूझने लगे थे। भारत का आईटी हब कहा जाने वाला बेंगलुरु शहर भी प्रतिदिन 20 करोड़ लीटर पानी की कमी झेल रहा था। बेंगलुरु के अलावा देश में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, भोपाल, कोलकाता, जयपुर और इंदौर जैसे अनेक शहर जल संकट के गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं।

यहां तक की तेलंगाना उच्च न्यायालय ने चेतावनी भी दी थी कि अगर हैदराबाद ने जल्दी ही जल संरक्षण के लिए उचित कदम नहीं उठा तो पानी के मामले में उसका भी हाल भी सिलिकॉन वैली बेंगलुरु जैसा ही होगा। चेन्नई में वह समय अभी सबको याद होगा जब नाले सुख गए थे और पानी की कमी के चलते सभी स्कूलों को बंद करना पड़ा था और जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए पुलिस को तैनात करना पड़ा था। हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में भी यह बात स्वीकार की गई है कि भारत के कई शहरों में जल संकट गहराता जा रहा है और आने वाले समय में उसके और विकराल रूप लेने के आसार है।

रिपोर्ट के अनुसार जहां वर्ष 2020 तक देश में 10 करोड़ से भी अधिक लोग गंभीर जल संकट की समस्या से जूझ रहे थे, तो वहीं वर्ष 2030 तक देश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी के लिए जल उपलब्ध नहीं होगा। नीति आयोग की समग्र जल प्रबंधन सूचकांक कंपोजिट वॉटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 प्रमुख शहरों में लगभग 10 करोड लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। जबकि एक वास्तविकता तो यह भी है कि दुनिया की लगभग 17 प्रतिशत आबादी वाले देश भारत के पास है जबकि दुनिया के ताजा जल संसाधनों का मात्र चार प्रतिशत ही उपलब्ध है। भारत में लगभग 70 प्रतिशत सतही और ताजा जल के संसाधन, सीवेज वेस्ट और कारखानों के अपशिष्ट से प्रदूषित है।

                                                                    

वैश्विक जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत, 122 देशों में से 120 वे स्थान पर है। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र 32.8 करोड़ हेक्टेयर में से 69 प्रतिशत 22.8 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र सूखाग्रस्त घोषित किया जा चुका है। यह आंकड़े हमारे देश में जल संकट की गंभीरता को भली भाँति उल्लेखित करते हैं।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के द्वारा जारी की गई नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहे व्यापक बदलावों के कारण यदि पानी की मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। दसअसल जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की परछाई गहराती जा रही है वैसे ही वैसे वैश्विक तापमान (ग्लोबल वार्मिंग) भी बढ़ता जा रहा है और इसका प्रभाव मौसम के बदलते मिजाज के रूप में स्पष्टतः नजर आ रहा है। इसी बदलाव के चलते कहीं बारिश कम हो रही है तो कहीं सर्दियों का मौसम भी अपेक्षाकृत गर्म हो रहा है।

वर्ष 1975 से वर्ष 2000 के बीच जिस मात्रा और रफ्तार से हिमालय के ग्लेशियरों की बर्फ पिघल रही है, साल 2000 के बाद से वह मात्रा और रफ्तार लगभग दुगनी हो गई है। वहीं दूसरी तरफ मौसम के इस बदलाव के कारण पहाड़ सर्दियों में बर्फ की चादर में लिपटने से भी वंचित होते जा रहे हैं।

                                                                                 

वैज्ञानिकों ने आस जताई है कि वर्ष 2100 आने तक हिमालय के 75 प्रतिशत ग्लेशियर पिघल कर लुप्त हो जाएंगे। इससे हिमालय के नीचे वाले भूभाग में रहने वाले आठ देशों के लगभग 200 करोड लोगों को पाने की किल्लत और बाढ़ के खतरे का सामना करना पड़ सकता है। इन देशों में भारत, भूटान, पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश आदि शामिल है। इन पर्वत श्रृंखलाओं के ग्लेशियर पिघलने से दिल्ली, ढाका, कोलकाता, कराची और लाहौर जैसे पांच महानगरों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा। इन नगरों की आबादी 9 करोड़ 40 लाख से अधिक है और इसी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी 26432 मेगावाट क्षमता वाली पन बिजली परियोजना भी स्थापित है।

ऐसे में जाहिर है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की समस्या से निपटने के लिए हमें जल संरक्षण के उपायों पर गंभीरता से विचार करना ही होगा और पर्यावरण सुरक्षा के समस्त उपाय भी आवश्यक रूप से करने ही होंगे, तभी हम जल ही जीवन है जैसे वाक्य को चरितार्थ कर सकेंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।