असीमित ताकत का भंड़ार आपके आसपास

                       गूलर असीमित ताकत का भंड़ार आपके आसपास

                                                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं रेशु चौधरी

दुनिया भर की ताकत का भंडार आपके बगल में है, और एक आप हैं जो कि दुनिया भर में इसे तलाश कर रहे हैं।

                                                                              

यह कमाल का पौधा आपके आसपास, और अगल बगल में लगा हुआ है, लेकिन लोग ड्राई फ्रूट, दवाओं और छायादार वृक्षो के पीछे भाग रहे हैं। यह अकेला वृक्ष कॉम्बो पैक है जो अपने आपमे एक पूरा इकोसिस्टम होता है।

वैसे गूलर के विषय मे हमारे क्षेत्र में एक कहावत है...

आंखि देख के माखी न निगलि जाए!

सहगी ऊमर फोड़ के न खाय!!

इस देशी कहावत के अनुसार अगर ऊमर/गूलर के फल को यदि फोड़ कर खाया जाये तो हवा लगते ही इसमे कीड़े पड़ जाते हैं। इसीलिये इसे बिना फोड़े ही खाया जाता है। लेकिन सच तो यह है, कि इसमें छोटे छोटे कीड़े (WSP) तो मौजूद रहते ही हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा मे गूलर का फल हायपेन्थोडीयम कहलाता है, जिसमे फूल/पुष्पक्रम के आधारीय भाग मिलकर एक बड़े कटोरे या बॉल जैसी संरचना बना लेते हैं और इस गोलाकार फल जैसी संरचना के भीतर कई नर और मादा पुष्प/जननांग उपलब्ध रहते है, जिनमें परागण और संयुग्मन के बाद बीज बन जाते हैं।

                                                              

गूलर फल के परिपक्व होने के पहले उसमें विशेष प्रकार की मक्खी  सहित कई कीट प्रवेश कर जाते हैं। कई बार वे अपना जीवन चक्र भी यहीं पूर्ण करते हैं। जैसे ही फल टूटकर जमीन से टकराता है, यह फट जाता है, और कीड़े मुक्त हो जाते हैं। ऐसा न भी हो तो कीट एक छिद्र करके बाहर निकल जाते हैं।

इस सबसे हटकर अब चर्चा करते हैं, इसके औषधीय महत्व की, हमारे गाँव के बुजुर्गों के अनुसार इसके फलो को खाने से गजब की ताकत मिलती है, और बुढापा थम सा जाता है। मतलब अंजीर की तरह ही इसे भी प्रयोग किया जाता है।

हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे कि ऊमर के पेड़ के नीचे से बिना इसे खाये नही गुजर सकते हैं। इसकी छाल को जलाकर राख को कंरजी के तेल के साथ पाइल्स के उपचार में प्रयोग करते हैं। दूध का प्रयोग चर्म रोगों के लिए तो रामबाण माना जाता है। दाद होने पर उस स्थान पर इसका ताजा दूध लगाने से आराम मिलता है। कच्चे फल मधुमेह को समाप्त करने की ताकत रखते हैं। पेट खराब हो जाने पर इसके 4 पके फल खा लेना इलाज की गारंटी माना जाता है।

वहीं जहाँ एक ओर इसके पेड़ को घर पर या गाँव मे लगाना वर्जित है, क्योंकि लोग अक्सर शायद इसको भूतों से इसे जोड़ कर देखते हैं, लेकिन वास्तव में यह दैत्य गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधि होता है। वास्तु के अनुसार दूध और कांटे वाले इस पौधे को घर पर लगाना उचित नही होता है।

                                                              

बुद्धिजीवियो का मानना है कि वास्तव में इसे पक्षियों और जनवरो के पोषण के लिये छोड़ने के लिए ही ऐसी मान्यताएँ बना दी गई होंगी, जिससे लोग इसके फलों और पेड़ का अत्यधिक दोहन न कर सकें। पक्षियों के लिए तो यह एक वरदान होता है और पक्षी ही इसे फैलाते भी हैं। व्यवहारिक रूप से यह पक्षियों का पसंदीदा पेड़ है तो पक्षियों की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी इसे घर से दूर लगाना सही प्रतीत होता है।

इसकी कोमल फलियों को सब्जियों के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जो चिकित्सा का एक अनुप्रयोग भी है। ऐसा कहा जाता है, कि दुनिया मे किसी ने गूलर का फूल नही देखा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।