सरकार को स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाने के एजेंङे पर भी तेजी से करना होगा काम

सरकार को स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाने के एजेंङे पर भी तेजी से करना होगा काम

                                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेगर

18 वीं लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद एनडीए सरकार ने 9 जून 2024 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में फिर से सरकार का गठन कर लिया है। लेकिन पूर्व वर्षों की अपेक्षा अबकी बार उनके सामने काफी चुनौतियां हैं, जिनके लिए सरकार को कार्य करना होगा। वैसे सरकार कई कार्यों पर तेजी से कार्य कर रही है लेकिन इस बार सरकार को स्वच्छ ऊर्जा के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

                                                                              

नई सरकार को सौर ऊर्जा आधारित मिनी ग्रेड और सब्सिडी सहित विभिन्न विकल्पों के माध्यम से सबसे गरीब लोगों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कैसे की जा सकती है इस पर भी सहानुभूति पूर्वक विकार करना होगा। इसके लिए हमें न केवल बुनियादी ढांचे में निवेश के मामले में ही नही बल्कि उत्पादन के मामले में भी अपने स्वच्छ ऊर्जा पोर्टफोलियो को बढ़ाने की जरूरत है।

अक्षय ऊर्जा अभी भी देश में कल बिजली की जरूरत का 9 से 11 प्रतिशत की ही आपूर्ति करती है। इसे तेजी से बढ़ाने की जरूरत है नई सरकार के लिए खाद और पोषण के बारे में भी विचार की आवश्यकता है। भारत को ऐसे खाद्य पदार्थों में निवेश की जरूरत है जो पौष्टिक हो भूमि और जल के संरक्षण की कीमत पर ना हो और मिट्टी या हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थों को ना बढ़ाए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह खाद्यान्न किसानों के हाथों में पैसा पहुंचाएगा और उनकी आय में भी वृद्धि हो सकेगी वहीं पर स्थानीय स्तर पर समय की मांग को समझना होगा।

भविष्य में किसी भी एजेंडा में यह बात स्वीकार की जानी चाहिए कि विकास का आधार पैमाना गति और कल्पना है जो विकास को अलग ढंग से करने की आवश्यकता को ध्यान में रखता है।

                                                                

उदाहरण के लिए सभी के लिए स्वच्छ जल प्राप्त करने के लिए भारत को शहरों में लंबी-लंबी दूरी से पानी लाने के तरीके पर फिर से विचार करना चाहिए। इससे पानी की हानि होती है और वह बहिनिया नहीं है समय की मांग है कि अपशिष्ट जल की हर बूंद को रिसाइकल किया जाए, ताकि देश की नदियां नष्ट ना हो। इसका मतलब है कि हमारे सीवेज सिस्टम को फिर से डिजाइन करना चाहिए ताकि वह किफायती और टिकाऊ हो स्वच्छ हवा प्राप्त करने के लिए भी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

स्वच्छ ऊर्जा के एजेंट को बढ़ाया जाना चाहिए कोयला आधारित बिजली सयंत्रों के कारण होने वाले प्रदूषण को कम किया जाना चाहिए। इसके लिए प्राकृतिक गैस सहित ईंधन के स्वच्छ स्रोतों की ओर रुख करना होगा तथा भारतीय शहरों में मोटरीकरण की बढ़ती हुई संख्या को भी कम करना होगा। पैदल चलने और साइकिल चलाने के अधिकार को बस या मेट्रो से यात्रा करने के अधिकार के साथ एकीकृत करने के लिए सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाना देना ही होगा। यह ऐसा एक कार्य है जिससे शहरों की पुनर्कल्पना करने की आवश्यकता है ताकि लोग चल सके ना की अपने अपने वाहनों को लेकर अकेले-अकेले इधर से उधर दौड़ते रहे। इससे शहरों में बढ़ती हुई भीड़ को काम किया जा सकेगा और वायु प्रदूषण जैसी समस्या से भी काफी हद तक निजात पाया जा सकेगा।

                                                                        

पिछली बार सरकार ने जो योजनाएं ऊर्जा स्वच्छता स्वास्थ्य और शिक्षा सहित कई मुद्दों के लिए बनाई थी उनके लिए बजट भी आवंटित किया था, लेकिन इस विशाल देश में शायद वह लोगों तक नहीं पहुंच सकी। यह सूक्ष्म शासन तंत्र की एक भारी कमी रही किसी भी सरकारी योजना का अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि यह हर बार लोगों तक पहुंचे यह लक्ष्य अब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के साथ जुड़ गया है क्योंकि हर दिन देश का कोई ना कोई हिस्सा कम से कम चरम मौसम की एक घटना से प्रभावित हो रहा है।

चरम मौसमी घटनाओं का विकास कार्यक्रमों पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। ब्रह्मोसमी और चरम मौसम के कारण सूखे, बाढ़ और अजीब का का भारी नुकसान होता है जिससे सरकार के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और इससे स्थिति काफी डामाडोल हो जाती है। इसके लिए हम सभी लोगों को मिलकर प्रयास करने होंगे और एक ऐसा एजेंडा तैयार करना होगा जो सभी के लिए समावेशी तथा सस्ता हो और वह टिकाऊ भी हो। यदि इन बातों को ध्यान में रखकर सरकार आगे बढ़ती है तो निश्चित रूप से आने वाले 5 सालों में देश को इस जलवायु परिवर्तन के दौर में असीम सफलता मिल सकती है और जिससे देश का विकास होगा और  स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिल सकेगा।

लेखक: डॉ0 आर. एस. सेगर, निदेशक ट्रेंनिंग आफ प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।