ऊँटों को जिन्दा सांप क्यों खिलाया जाता है एक महत्वपूर्ण जानकारी

      ऊँटों को जिन्दा सांप क्यों खिलाया जाता है एक महत्वपूर्ण जानकारी

                                                                                                                                                                           

                                                                                         

ऊँटों को जिन्दा सांप क्यों खिलाया जाता है, आप जानकर हैरान हो जायेंगे यह तो आप जानते ही होंगे कि सांपों की अपनी एक अलग दुनिया होती है। अलग-अलग श्रेणी के अनुसार सांपों के गुण भी अलग-अलग होते हैं। कुछ सांपों में जहर की मात्रा कम होती है तो कुछ सांपों में बहुत ज्यादा जहर होता है। इस प्रकार के सांप बहुत ही खतरनाक माने जाते हैं। जैसे कि किंग कोबरा को दुनिया का सबसे जहरीला सांप माना जाता है।

किंग कोबरा से आमना-सामना होने पर बड़े-बड़े लोग भी कांप उठते हैं। इसके जहर की एक बूंद कई लोगों की जान लेने में सक्षम है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि रेगिस्तान में ऊंटों को भोजन के रूप में जिंदा कोबरा सांप खिलाया जाता है। ऐसा करने के पीछे क्या उद्देश्य है आज हम आपको इसके बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं इस लेख में-

ऊँट को साँप खिलाया जाता है जीवित सांप

आपको जानकर हैरानी होगी कि रेगिस्तानी इलाके में ऊंटों को जिंदा कोबरा खिलाया जाता है। इसके सम्बन्ध में हम आपको बता दें कि ऊंट एक खास बीमारी से पीड़ित होता है और इस बीमारी से उसे बचाने के लिए ही उसे जिंदा सांप खिलाया जाता है। ऊंट को हयाम नामक बीमारी होती है और इस बीमारी में ऊंट की मौत भी हो जाती है। इस बीमारी से उंट को बचाने के लिए ऊंटों को जीवित कोबरा खिलाया जाता है।

जिंदा कोबरा को मुंह में डालते हैं

                                                       

हयाम नामक इस बीमारी का इलाज करने के लिए ऊंट का मुंह खोला जाता है और इसके बाद सीधे उसके मुंह में जिंदा कोबरा सांप रख दिया जाता है। इसके बाद ऊंट के मुंह में पानी डाला जाता है ताकि सांप ऊंट के पेट में चला जाए। इस प्रकार ऊँट को जीवित कोबरा साँप खिलाया जाता है और वह उंट हयाम नाम की इस बीमारी से बच जाता है।

ऊँटों को जीवित साँप खिलाये जाने के कारण

                                                                      

राजस्थान में किसानों के लिए ऊंट ही सबसे बड़ा सहारा हुआ करता था। लोग इस पर सवार होकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक की यात्रा करते थे तथा कृषि कार्य में सामान ढोने के लिए भी ऊँटों का प्रयोग किया करते थे। लेकिन ऊँट कई प्रकार की बीमारियों से पीड़ित रहते थे! उस दौर में ऐसे ही घरेलू नुस्खे अपनाए जाते थे।

ऊँटों में एक विशेष प्रकार की बीमारी होती है। शरीर के अंदर संक्रमण होने लगता है। जिसमें उनकी गर्दन और पैरों में दर्द और अकड़न होती है। इसके अलावा बुखार, आंखों से आंसू गिरना, शरीर में सूजन के साथ-साथ ऊंट कमजोर होने लगता है। ऐसे में पशुपालक ऊंटों को जहरीले सांप खिला देते हैं। ऊँट का मुँह खोला जाता है और उसमें एक साँप डाल दिया जाता है।

यदि ऊँट किसी जहरीले साँप को खा ले तो उसका क्या होता है

जहरीला सांप खाने के बाद ऊंट और बीमार पड़ गया। सांप के जहर का असर होना शुरू हो जाता है। लेकिन ऊंट के शरीर में ऐसे एंटीबॉडीज होते हैं जो सांप के जहर से भी लड़ते हैं। जिससे ऊँट कमजोर होने के बावजूद भी जीवित रहता है।

साथ ही सांप का जहर आंतरिक संक्रमण को भी धीरे-धीरे खत्म कर देता है और कुछ ही दिनों में संक्रमण ठीक भी हो जाता है। सांप के जहर का शरीर पर दुष्प्रभाव भी कम होने लगता है। जिसके बाद ऊँट को तेज़ प्यास और भूख लगती है, और कुछ ही दिनों में वह फिर से ताकतवर हो जाता है।

क्या कहते हैं डॉक्टर और वैज्ञानिक इसके बारे में

                                                                       

मध्य पूर्व के देशों में प्रचलित समाज की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस बीमारी को हायम कहा जाता है। हालांकि, वैज्ञानिक अभी तक इस बीमारी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं लगा पाए हैं। न ही वे सांपों को दूध पिलाने के बारे में कुछ तर्क तथ्य दे पाए हैं। कुछ पशुचिकित्सक यह अवश्य कहते हैं कि ऊँटों में यह रोग एक विशेष कीट के काटने से होता है।

कई बार ऊँट इस बीमारी से मर भी जाते हैं। कभी-कभी इस रोग के कारण गर्भवती ऊंटनी का गर्भपात भी हो जाता है। ट्रिपैनोसोमियासिस यानी नींद की बीमारी ऊंटों में होती है जिसके चलते उसके दिमाग में सूजन आने लगती है। इसके कारण उंट में सिर दर्द और बुखार शुरू हो जाता है। लेकिन ज्यादातर डॉक्टर इस बीमारी में सांपों को खाना खिलाने को महज एक मिथक ही मानते हैं।

प्रस्तुति: प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।