क्या वास्तव में शुद्व होता है आरओ यानि रिवर्स ऑस्मोसिस का पानी Publish Date : 03/04/2024
क्या वास्तव में शुद्व होता है आरओ यानि रिवर्स ऑस्मोसिस का पानी
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं शोध छात्रा हिबिस्का दत्त
लंबे समय तक पीते रहने से होती है कई बीमारियां-
प्रमुख बिन्दुः-
- रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) सिस्टम से फिल्टर किया पानी आपकी सेहत के लिए होता है खतरनाक।
- विशेषज्ञों की माने तो, लाभकारी खनिजों को खत्म कर देता है आपका आरओ सिस्टम।
- RO के स्थान पर सूती कपड़े से छानने के बाद उसे गर्म करना, पानी शुद्ध करने का अच्छा विकल्प होता सकता है।
अधिकतर यह सोचकर रिवर्स ऑस्मोसिस (RO) सिस्टम का अच्छा-खासा खर्च उठाते हैं कि जान है तो जहान है। स्वस्थ रहने के लिए आरओ से फिल्टर पानी पीते हैं ताकि अशुद्ध पानी से उन्हें कोई बीमारी न हो जाए। लेकिन इस बात के विपरीत सच्चाई कुछ और ही है। आरओ न केवल पानी से गंदगी को हटाता है बल्कि पानी में घुले लाभकारी खनिज पदार्थों को भी खत्म कर देता है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं। इस कारण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आरओ का पानी कुछ बीमारियों से दूर रखता है तो कई तरह की समस्याएं पैदा भी कर देता है। साफ-साफ शब्दों में कहें तो आरओ का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
क्यों खतरनाक है आरओ वाटर
दरअसल, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर आपको आरओ का उपयोग करना ही है, तो यह सुनिश्चित करें कि फिल्टर किए पानी में 200 से 250 मिलीग्राम प्रति लीटर की दर से घुले हुए ठोस पदार्थ शामिल रहें। ऐसा करने पर कैल्शियम और मैग्नीशियम सहित सभी आवश्यक खनिजों की सप्लाई शरीर को होती रहेगी। यह बात हाल ही में आरओ सिस्टम पर एक वेबिनार में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, नागपुर के जल प्रौद्योगिकी और प्रबंधन प्रभाग (वॉटर टेक्नॉलजी एंड मैनेजमेंट डिविजन) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अतुल वी मालधुरे ने कही। उन्होंने कहा कि अशुद्धियों को दूर करने के अलावा आरओ फायदेमंद खनिजों को भी हटा सकता है।
WHO ने भी साफ-साफ दी थी चेतावनी
यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने भी आरओ फिल्टर के उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी है। डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2019 में कहा था, ‘आरओ मशीनें पानी को साफ करने में बहुत प्रभावी हैं, लेकिन वे कैल्शियम और मैग्नीशियम को भी हटा देती हैं, जो शरीरिक ऊर्जा के लिए बहुत जरूरी हैं। इसलिए, लंबे समय तक आरओ का पानी पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’
क्या कहते हैं डॉक्टर्स
सर गंगा राम अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रमुख डॉ. अनिल अरोड़ा ने कहा कि आरओ से फिल्टर पानी के बजाय लोगों को नाइट्रेट जैसी अशुद्धियों को फिल्टर करने के बाद उबला हुआ पानी पीना चाहिए। उन्होंने बताया कि उबालने से केवल बैक्टीरिया, वायरस और फंगस आदि ही मरेंगे। डॉ. अरोड़ा ने बताया कि चेकोस्लोवाकिया और स्लोवाकिया में आरओ वाटर को अनिवार्य बनाने के पांच साल बाद अधिकारियों ने देखा कि लोग मांसपेशियों में थकान, ऐंठन, शरीर में दर्द, याददाश्त की कमी आदि की शिकायत कर रहे हैं क्योंकि उनमें आवश्यक खनिजों की कमी हो गई।
डब्ल्यूएचओ ने प्रति लीटर पानी में 30 मिलीग्राम कैल्शियम, 30 मिलीग्राम बाईकार्बोनेट और 20 मिलीग्राम मैग्नीशियम की सिफारिश की है। मेदांता अस्पताल में वरिष्ठ सलाहकार (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) डॉ. अश्विनी सत्य ने बताया, ‘आरओ बैक्टीरिया, वायरस, फंगस जैसे रोगाणुओं और विषाक्त पदार्थों को फिल्टर तो करता है, लेकिन हमें आवश्यक खनिजों से वंचित होने की कीमत भी चुकानी पड़ती है।’
आरओ से फिल्टर नहीं करें तो कैसे शुद्ध करें पानी?
हालांकि, इसका कोई सही और स्थाई समाधान अभी तक उपलब्ध नहीं है, लेकिन सूती कपड़े से छान लेने के बाद पानी को 20 मिनट तक उबालना इसका एक अच्छा विकल्प है। डॉ. सत्य ने आगे कहा कि पानी में मौजूद ट्रेस एलिमेंट्स, हमारे हार्मोन और एंजाइम का ही हिस्सा होते हैं। अगर इन्हें नहीं लिया जाता है तो शरीर पर काफी हद तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस तरह की कमी के सामान्य लक्षणों में थकान और इम्यूनिटी के कम होने के जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
‘आरओ वाटर पीने से मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव’ नाम से की गई एक स्टडी से भी पता चला है कि लंबे समय तक आरओ वाटर लगातार सेवन करने से गठिया, अवसाद, चिड़चिड़ापन, हड्डियों में कमजोरी और बालों के झड़ने जैसी समस्याएं पैदा होने लगती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को सभी आरओ निर्माताओं को निर्देश जारी करने का निर्देश दिया गया था कि वे उन वाटर प्यूरिफायर्स पर प्रतिबंध लगाएं जहां पानी में टीडीएस का स्तर 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है।
इस साल जनवरी में विवेक मिश्रा ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक सवाल किया था जिसके जवाब में बताया गया कि प्रमुख कंपनियों के आरओ वाटर की क्वॉलिटी का परीक्षण सीपीसीबी ने नहीं किया था, क्योंकि यह उसके दायरे में नहीं आता है। हालांकि, वाटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम के उपयोग को रेग्युलेट करने के लिए नोटिफाइड नियमों को लागू करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय की ओर से सीपीसीबी को एक नोडल एजेंसी बनाया गया था। इस पर वेबिनार के दौरान भी इस पर व्यापक चर्चा की गई थी।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।