स्वदेशी तकनीक से चीनी मिलें बचाएंगी ईंधन Publish Date : 25/10/2023
स्वदेशी तकनीक से चीनी मिलें बचाएंगी ईंधन
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में विकसित तकनीक विदेशों के मुकाबले बेहद सस्ती
शर्करा संस्थान (एनएसआई) के द्वारा चीनी मिलों के माध्यम से ऊर्जा संरक्षण के लिए स्वदेशी तकनीक का विकास किया गया है। इस तकनीक के अन्तर्गत भाप को कंप्रेस कर कम ईंधन उपयोग से अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। इसका प्रयोग करने से चीनी मिल में ईंधन के तौर पर प्रयुक्त होने वाली खोई (पेराई के बाद गन्ने का अवशेष) की खपत भी करीब आधी ही रह जाएगी। जिससे ईंधन जलने से होने वाला प्रदूषण तो कम होगा ही इसके साथ ही अतिरिक्त खोई की बिक्री करने से से मिल का लाभ भी बढ़ेगा।
शुगर टेक्नालाजिस्ट एसोसिएशन आफ इंडिया के इसी माह तिरुवनंतपुरम में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में मैकेनिकल वेपर रिकंप्रेशन तकनीक विकसित करने के लिए एनएसआई के निदेशक प्रो नरेन्द्र मोहन और विज्ञानियों महेन्द्र यादव व प्रताप सिंह को स्वर्ण पदक दिया गया है।
चित्रः एमवीआर तकनीक से वाष्पीकरण
विज्ञानी महेन्द्र यादव के अनुसार मैकेनिकल वेपर रिकंप्रेसर (एमबीआर) ऐसा उपकरण है, जिससे चीनी उत्पादन में व्यर्थ हो जाने वाली ऊर्जा का प्रयोग करना संभव होगा। अभी उच्च दबाव वाली वाष्प ऊर्जा का प्रयोग होता है और कम दबाव वाली भाप बाहर निकाल दी जाती है।
खोई का व्यावसायिक उपयोग बढ़ेगा
गन्ने की खोई का उपयोग अब पर्यावरण अनुकूल बोर्ड और क्रॉकरी के निर्माण में भी किया जा रहा है। एनएसआइ ने कुछ समय पहले इसके लिए नई तकनीक विकसित की है। वर्तमान में कई कंपनियाँ, खोई से तैयार कप-प्लेट और भोजन के थाल का उत्पादन व्यवसायिक रूप से कर रही है, जिससे प्लास्टिक के बर्तनों के माध्यम से होने वाला प्रदूषण भी कम होगा। बोर्ड तैयार करने में खोई का प्रयोग होने से पेड़ों की कटान पर भी रोक लगेगी जो कि प्रकृति के संरक्षण में भी अहम रोल अदा करता है।
- एमवीआर तकनीक का प्रयोग करने से अब बिक्री के लिए चीनी मिलों को करीब दोगुनी खोई मिलेगी। इससे चीनी मिलों को खोई बेचकर अतिरिक्त आय होगी और ईंधन की खपत के होने से प्रदूषण में भी कभी आएगी।
- प्रो. नरेन्द्र मोहन निदेशक
चित्रः बिजनौर में एक नई चीनी एमआर तकनीक का निरीक्षण करते हुए