
मक्का की खेती के लिए आवश्यक कृषि यंत्रः कम लागत में ज्यादा लाभ Publish Date : 17/06/2025
मक्का की खेती के लिए आवश्यक कृषि यंत्रः कम लागत में ज्यादा लाभ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
मक्का की खेती में कौन-से यंत्र सबसे अधिक कारगर हैं और क्या है इनकी कीमत?
मक्का खरीफ सीजन की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल में से एक है, जिसकी खेती भारत के कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी उपज बढ़ाने और लागत घटाने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग बेहद आवश्यक है। आधुनिक यंत्रों की सहायता से न केवल मेहनत कम होती है बल्कि फसल की क्वालिटी और पैदावर में भी बढ़ोतरी होती है। सरकार की ओर से भी किसानों को इन यंत्रों पर सब्सिडी दी जाती है ताकि वे इनका लाभ उठा सकें।
आज हम अपने ब्लॉग के माध्यम से आपको मक्का की खेती में उपयोग होने वाले कुछ प्रमुख कृषि यंत्रों और उन पर मिलने वाली सब्सिडी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। आप मक्का की खेती में इन कृषि यंत्रों का उपयोग कर पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं, तो आइए जानते हैं, इन यंत्रों के बारे में।
ट्रैक्टर
मक्का की खेती की शुरुआत खेत की जुताई से होती है और इसके लिए सबसे जरूरी कृषि मशीन ट्रैक्टर है। ट्रैक्टर का उपयोग खेत की जुताई, बुवाई, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और कटाई जैसे अनेक कार्यों में किया जाता है। ट्रैक्टर से जोड़कर खेती के अन्य उपकरण या मशीनें भी चलाई जा सकती है। यदि बात करें खेती के लिए ट्रैक्टर की तो इसकी अनुमानित कीमत 3 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक है। हालांकि ट्रैक्टर की कीमत फीचर्स और उसमें दिए गए स्फेसिफिकेशन पर निर्भर करती है। कृषि यंत्र अनुदान योजना जैसी योजनाओं के तहत ट्रैक्टर पर सरकार की ओर से सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है। राज्य और किसान की श्रेणी के अनुसार ट्रैक्टर पर दी जाने वाली सब्सिडी 20 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। यह सब्सिडी ट्रैक्टर के लागत मूल्य पर दी जाती है।
कल्टीवेटर
कल्टीवेटर खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाने और खरपतवार हटाने के लिए काम आता है। इसे ट्रैक्टर के साथ जोड़कर चलाया जाता है। इस यंत्र के माध्मम से जमीन को बुवाई के लिए तैयार किया जाता है। इसमें टाइन या दांत होते हैं जो मिट्टी को तोड़ते हैं और खरपतवारों को हटाने का काम करते हैं। बाजार में आमतौर पर कल्टीवेटर की अनुमानित कीमत 25,000 रुपए से 60,000 रुपए तक हो सकती है। वहीं सब्सिडी की बात करें तो कल्टीवेटर पर सरकार की ओर से 40 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है।
स्टैनलेस स्टील हल और डिस्क हल
स्टैनलेस स्टील हल और डिस्क हल ये दोनों ही कृषि यंत्र खेत की गहरी जुताई के लिए उपयोगी होते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायक हैं। इन दोनो ही यंत्रों की अनुमानित बाजार कीमत 20,000 से 70,000 तक है। सरकार की ओर से इसकी खरीद पर किसानों को 30 से 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है।
एम.आई.पी. हल
एम.आई.पी. हल एक विशेष प्रकार का हल होता है जो कठिन और सूखी भूमि की जुताई के लिए तैयार किया गया है। इस हल का उपयोग सूखी एवं उबड़-खाबड़ भूमि की जुताई के लिए किया जा सकता है। इस कृषि यंत्र की अनुमानित कीमत 30,000 से 75,000 रुपए तक होती है। इस पर भी राज्य के नियमानुसार सब्सिडी दी जाती है यदि यह यंत्र कृषि विभाग की कृषि यंत्र अनुदान सूची में शामिल हो।
सीड ड्रिल
सीड ड्रिल मक्का के बीजों को तय गहराई और समान दूरी पर बोने का काम करती है। इससे बीजों की बर्बादी नहीं होती और पौधे एक समान विकसित होते हैं। बाजार में 30,000 रुपए से लेकर 80,000 रुपए तक सीड ड्रिल आती हैं। सरकार की ओर से लघु व सीमांत किसानों के लिए विशेष योजना के तहत इस यंत्र पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है।
थ्रेशर
मक्का की फसल तैयार होने के बाद थ्रेशर का उपयोग दानों को बालियों से अलग करने के लिए किया जाता है। इससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है। बाजार में थ्रेसर की अनुमानित कीमत 50,000 से 1.5 लाख रुपए तक होती है। राज्य आधारित योजनाओं के तहत इस कृषि यंत्र पर 30 से 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी दी जाती है। यह सब्सिडी अलग-अलग राज्यों में राज्यों के नियमों के अनुसार दी जाती है।
कंबाइन हार्वेस्टर
यह मक्का खेती के लिए एक बहुउद्देशीय मशीन है जो मक्का की कटाई, थ्रेशिंग और सफाई का कार्य एक साथ करती है। बड़ी जोत वाले किसानों के लिए यह बहुत उपयोगी है। इसकी अनुमानित बाजार कीमत 15 लाख रुपए से 30 लाख रुपए तक होती है। वहीं कंबाइन हार्वेस्टर पर चयनित राज्यों में 40 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। योजना के तहत संयुक्त किसान समूहों को प्राथमिकता दी जाती है।
पावर वीडर
पावर वीडर का उपयोग खरपतवार हटाने और मिट्टी को ढीला करने के लिए किया जाता है। इस मशीन के उपयोग करने से श्रम व समय की बचत होती है। इस कृषि यंत्र की अनुमानित बाजार कीमत 50,000 रुपए से एक लाख रुपए तक होती है। वहीं पावर वीडर पर राज्य सरकार की योजना के तहत 40 प्रतिशत तक की सब्सिडी भी मिल सकती है।
सीड बिन
सीड बिन का उपयोग बीजों को नमी और कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। इसकी अनुमानित बाजार कीमत 5,000 रुपए से 20,000 रुपए तक होती है। इस कृषि यंत्र पर सरकार की ओर से 30 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है।
नैपसैक स्प्रेयर
नैपसैक स्प्रेयर यंत्र का उपयोग फसल पर कीटनाशक, फफूंदनाशक और अन्य रसायनों के छिड़काव के लिए किया जाता है। इस कृषि यंत्र की अनुमानित बाजार कीमत 1,500 से 5,000 रुपए तक है। इस कृषि यंत्र पर सरकार ओर से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। योजना के तहत विशेष रूप से एससी, एसटी व महिला किसानों को प्राथमिकता दी जाती है।
स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई सिस्टम
मक्का की सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर और ड्रिप प्रणाली का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस सिस्टम से फसल की सिंचाई करने से पानी की बचत और पैदावार भी अच्छी होती है। बाजार में स्पिंकलर और ड्रिप सिंचाई सिस्टम की कीमत 25,000 से एक लाख रुपए तक हो सकती है। यह खेत के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है कि कितने क्षेत्रफल में आप इस सिस्टम को लगवा रहे हैं, उसी के अनुसार खर्च आता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत किसानों को इस सिस्टम को खेत में लगाने के लिए 50 से 70 प्रतिशत तक सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाता है।
आप कैसे उठा सकते हैं कृषि यंत्रों पर सब्सिडी का लाभ?
कृषि यंत्रों पर सब्सिडी पाने के लिए इच्छुक किसानों को अपने राज्य के कृषि विभाग की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना होता है। इसके लिए किसान क्रेडिट कार्ड (KCC), भूमि रिकॉर्ड, बैंक पासबुक और आधार कार्ड की आवश्यकता होती है। बता दें कि कृषि यंत्रों की खरीद पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) और कृषि यांत्रिकीकरण योजना के तहत अलग-अलग श्रेणियों में सब्सिडी दी जाती है। यदि आप भी एक किसान है और कृषि यंत्रों पर सब्सिडी का लाभ उठाना चाहते हैं, तो इसके लिए समय-समय पर राज्य सरकारें अपने स्तर कृषि विभाग के माध्यम से कृषि यंत्रों पर सब्सिडी के लिए आवेदन आमंत्रित करती है।
आप उसमें आवेदन करके सरकारी सब्सिडी का लाभ उठा सकते हैं। आप अपने जिले के कृषि विभाग से संपर्क करके भी अपने राज्य में चल रही योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते है या फिर कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट करके भी इस बारे में पता कर सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।