भारतीय परिवेश में ड्रोन कृषि का महत्व Publish Date : 24/05/2023
भारतीय परिवेश में ड्रोन कृषि का महत्व
डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 शालिनी गुप्ता एवं मुकेश शर्मा
’’समय एवं जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ खेती मे एक ओर जहां समस्याओं का स्वरूप एवं आकार बदल दिया है, तो दूसरी ओर खेती में लागत को कम करते हुए अधिक उत्पादन के दबाव को भी बढ़ाया है।
किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक खेती के नये तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं। जिसके अन्तर्गत अत्याधुनिक कृषि यन्त्रों तथा अन्य उपकरणों का जिक्र विशेष रूप से किया जा सकता है।
क्रमिक विकास कें फलस्वरूप अन्य मशीनों और यन्त्रों की तरह ही ड्रोन भी अब विकास के उस मुकाम पर पहुच चुका है, जहां उसे अब कृषि के उपयोग में भी लाया जा सकता है।’’
हरित क्रॉंति के माध्यम से भारत द्वारा खाद्यान्न के उत्पादन में आत्मनिर्भरता पूर्व में ही प्राप्त की जा चुकी है। यह उपलब्धि भारतीय किसानों के द्वारा विभिन्न आधुनिक तकनीकियों जैसे उन्नत किस्म के बीज, मशीन आदि के उपयोग के द्वारा ही संभव हो सकी थी।
इसी प्रकार भविष्य में भी अनवरत रूप से बदलावों की आवश्यकता है जिससे लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए र्प्याप्त खाद्यान्न की उपलब्ता का लक्ष्य समय रहते ही प्राप्त किया जा सके। ड्रोन एक ऐसा मानव रहित विमान है, जिसे दूर से ही नियंत्रित कर उड़ाया जा सकता है।
ड्रोन के कृषि में उपयोग की अपार संभावनाएं हैं, इसका उपयोग भारतीय खेती में निम्न स्वरूपों में किया जा सकता हैः-
1. मृदा विश्लेषणः- फसल चक्र के प्रारम्भिक दौर से ही ड्रोन फसल उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है। खेत की मृदा का त्रि-आयामी (थ्री0 डी0) मानचित्र ड्रोन की सहायता से आसानी से बनाया जा लेता है। खेत के विभिन्न खंड़ों में मृदा के तत्वों के स्तर की जानकारी को वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली बिन्दु (जी0पी0एस0 पॉइन्ट) के साथ मिलाकर यह त्रि-आयामी मानचित्र की रूपरेखा तैयार की जाये तो इन तत्वों की उपलब्धता के आधार पर उर्वरकों का छिड़काव किया जा सकता है। इस प्रकार उचित प्रबन्धन के द्वारा कृषि उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है। इस प्रकार का प्रयोग अफ्रीका महाद्वीप में फसल की पैदावार में सुधार करने वाले डिजिटल मानचित्रों को तैयार करने में हो भी रहा है।
2. फसल स्वास्थ्य मूल्यांकनः- बुवाई के पश्चात्, पौध वृद्वि के क्रमवार चरणों यथा अंकुरण, पत्तों एवं टहनियों का विकास, पुष्पों के विकास से होता हुआ इसकी परिपक्वता के अंतिम चरण तक पहुंचता है। विकास के इन विभिन्न चरणों में पौधों के विकास की जांच किसानों को निश्चित अन्तराल में करनी पड़ती है। यदि खेत का क्षेत्रफल दीर्घ है तो किसानों के लिए यह कार्य मेहनत और थकाऊ होता है। इस स्थिति में ड्रोन द्वारा छायात्रिें के माध्यम से फसलों का निश्चित समयांतराल पर निरिक्षण किया जा सकता है, यदि पौधे में अपेक्षित परिर्वतन के विपरीत कोई लक्षण दृष्टिगत होता है तो उसकी पहचान कर उसे दूर करने के संभावित उपायों का उपयोग भी समय रहते ही किया जा सकता है।
3. मवेशियों एवं जंगली जानवरों से फसल की रक्षाः- किसानों को अन्न उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। मवेश एवं जंगली जानवर यथा हाथी, नीलगाय आदि जानवर फसल की बर्बादी करते हैं, इस कारण किसान को रात-रात भर जागकर अपनी फसल की रक्षा करनी पड़ती है। इन जानवरों की निगरानी ड्रोन में थर्मल कैमरे लगाकर की जा सकती है साथ ही इनके आने-जाने के रास्तों पर भी नजर रखी जा सकती है तथा समय पर किसानों को सचेत किया जा सकता है। कई अफ्रीकी देशों जैसे युगांडा, तंजानिया एवं केन्या में भी ड्रोन का उपयोग कर किसान, उसके मवेशियों एवं फसल खतरनाक जंगली जानवरों से सुरक्षित रखने हेतु किया जा रहा है।
4. परागकों का छिड़कावः- जलवायु-परिवर्तन, अत्याधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग, रोग-जनक परजीवियों का संक्रमण, सिकुड़ते खेत, घटते जंगल और निरंतर कम होती जैव-विविधता के फलस्वरूप, मधुमक्खियों जैसे परागकर्ताओं के जीवन के लिए खतरे की घंटी है, यदि ऐसा ही चलता रहा तो परागण क्रिया के लिए कृत्रिम माध्यमों का प्रयोग करना पड़ेगा कृत्रिम रूप से परागण हेतु सूक्ष्म आकार के ड्रोन का प्रयोग किया जा सकता है, इस प्रकार का प्रयोग जापान में वैज्ञनिकों के द्वारा फूलों में परागण क्रिया हेतु सफलता पूर्वक किया जा चुका है।
5. सिंचाई व हाइड्रोजेल का छिड़कावः- हाइपरस्पेट्रलया थर्मल सेंसर वाला ड्रोन सूखे खेत के खंड़ों को पहचानकर उन पर पानी या हाइड्रोजेल का छिड़काव कर सकता है। इससे फसलों को सूखने से बचाया जा सकता है।
ड्रोन के उपयोग से बढ़ती रोजगार की संभावनाएं
नागर विमानन महा-निदेशलय के अनुसार ड्रोन को टेक-ऑफ वेट के अनुसार पांच भागों में वर्गीकृत किया गया हैः-
- नैनोः- 250 ग्राम से कम या उसके बराबर
- सूक्ष्मः- 250 ग्राम से अधिक परन्तु 2 कि.ग्रा. से कम या उसके बराबर
- मिनीः- 2 कि.ग्रा. से अधिक परन्तु 25 कि.ग्रा. से कम या उसके बराबर
- 25 कि.ग्रा. से अधिक परन्तु 150 कि.ग्रा. से कम या उसके बराबर
- 150 कि.ग्रा. से अधिक, व्यवसायिक क्षेत्रों में इनके उड़ने हेतु भारत सरकार द्वारा निर्मित मापदण्ड़ों व नियमों का पालन करना अनिवार्य है
- ड्रोन, रोजगार का एक ऐसा नया क्षेत्र है, जिसमें 18 वर्ष से अधिक के युवा ड्रोन का परिचालन (पायलेटिंग) सीखकर लगभग 20 से 30 हजार रूपये प्रतिमाह की कमाई आसानी से कर सकते हैं। इसके लिए पायलट के पास प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र का होना आवश्यक है। देश में कई सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थानों में ड्रोन परिचालन प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ कर दिया गया है। युवाओं में ड्रोन के प्रति नया उत्साह देखने को मिल रहा है।
6. फसल अवशेषों के अपघटन हेतु जैविक रसायनों का छिड़कावः- फसल के अवशेष एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं, यह न केवल आगामी फसल के लिए पोषक तत्वों के स्रोत हैं अपितु मृदा, जल तथा वायु की गुणवत्ता बेहतर बनाये रखने में भी बेहद कारगर सिद्व होते हैं। वर्तमान समय में इन अवशेषों का निष्पादन एक बड़ी समस्या बन हुआ है, इसके परिणामस्वरूप किसान इन्हे जलाने को विवश हैं। फसल अवशेषों का बड़े पैमाने पर संग्रह तथा परिवहन खर्चीला एवं बोझिल कार्य है इसलिए अवशेष प्रबन्धन आज भी आर्थिक रूप से एक व्यवहारिक विकल्प नही है। फसल अवशेषों के अपघटन को जैविक तरल पदार्थों के छिड़काव से त्वरित किया जा सकता है और इसके छिड़काव हेतु ड्रोन का उपयोग एक सटीक विकल्प बनकर उभर सकता है।
ड्रोन के माध्यम से बीजों का छिड़काव
लकड़ी की आपूर्ति हेतु जंगलों को बड़ी तेजी से काटा जा रहा है, जिससे प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है। इन कटे हुए छिन्न-भिन्न जंगलों के पुनरोद्वार के लिए कई प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा विभिन्न प्रयास किये जाते रहे हैं, प्रति वर्ष लाखों वृक्षों का रोपण किया जा रहा है, इस कार्य में जन एवं धन दोनों का बहुतायत में उपयोग किया जाता है।
जंगल अधिकतर ढालू उबड़-खाबड़ होते हैं जहां पर परंपरागत कृषि यन्त्रों का पहुंचना मुश्किल होता है। वृक्षारोपण हेतु वैज्ञानिकों द्वारा बीज पेड़ का निर्माण किया जाता है जो कि बीजों के अंकुरण मदद करते हैं। ये आवश्यक तत्वों को भी उन्हे उपलब्ध कराते हैं ये बीजपैड कैप्सूल बायोडिग्रडेबल पदार्थ, से बनाये जाते हैं।
इस प्रकार ड्रोन के माध्यम से दुर्गम स्थानों पर भी बीजपैड़ गिराकर वृक्षों को उगाया जा सकता है इस ड्रोन इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, हालांकि इस तकनीक पर अभी शोधकार्य चल रहे हैं।
खेतों की भौगोलिक स्थिति का आकलन
ड्रोन के प्रयोग से खेतो की ऊंचाई और तल में विविधता का बड़ी आसानी से पता लगाया जा सकता है। असमता के स्वरूप को जानकर खेत के ढ़ाल का रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है, तथा इसके अनुसार ही खेत में पानी की नालियों का निर्माण किया जा सकता है।
इसके साथ ही अधिक अथवा असमतल ढाल होने पर उसको दूर करने के लिए लेजर लैंड लेवलर को कितना कार्य करना पड़ेगा, इसकी गणना भी की जा सकती है और किसान इस कार्य में होने वाले खर्च को भी जान सकते हैं। ड्रोन द्वारा पूर्व सर्वेक्षण के आधार पर खेत के क्षेत्रफल व स्वरूप को जानकर भविष्य में प्रयोग होने वाली कृषि यन्त्रों व मशीनों के चलने का बिन्दुपथ आधारित मानचित्र तैयार किया जा सकता है।
कम समय तथा लागत में मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। इस तरह से ईंधन व समय दोनों की बचत की जा सकती है। फ्रांस और इटली जैसे देशों ने ड्रोन का प्रयोग खेतों के आकार व क्षेत्रफल की गणना के लिए किया है और शीघ्र ही इसका उपयोग भारत में भी होने लगेगा।
7. कीटनाशक एवं खरपतवारनाशक रसायनों का छिड़कावः- ड्रोन के उपयोग से खेतों में निश्चित मात्रा में कीटनाशकों के छिड़काव हेतु किया जा सकता है। इस प्रकार का छिड़काव पारंपरिक मशीनों की तुलना में लगभग पांच गुण तेजी से किया जा सकता हैं। इसके प्रयोग से किसान को इन कीटनाशकों के सम्पर्क में आने से भी रोका जा सकता है।
चीन में ड्रोन का उपयोग कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किया भी जा रहा है। हमारे देश में भी ड्रोन द्वारा कीटनाशकों के छिड़काव पर अनुसंधान व्यापक रूप से चल रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा वित्तपोषित परियोजना में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के कृषि अभियांत्रिकी संभाग में इस तरह के अनुसंधान चल रहे हैं।
विकसित कीटनाशक छिड़काव ड्रोन 4 कि.ग्रा. तक वजन उठाने में सक्षम हैं जिसकी उड़ान क्षमता 10 मिनट की है। यह एक उड़ान में लगभग 0.07 हैक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव कर सकता है।
खेतों की भौगोलिक स्थिति का आकलन
ड्रोन के प्रयोग से खेतो की ऊंचाई और तल में विविधता का बड़ी आसानी से पता लगाया जा सकता है। असमता के स्वरूप को जानकर खेत के ढ़ाल का रेखाचित्र तैयार किया जा सकता है, तथा इसके अनुसार ही खेत में पानी की नालियों का निर्माण किया जा सकता है। इसके साथ ही अधिक अथवा असमतल ढाल होने पर उसको दूर करने के लिए लेजर लैंड लेवलर को कितना कार्य करना पड़ेगा, इसकी गणना भी की जा सकती है और किसान इस कार्य में होने वाले खर्च को भी जान सकते हैं।
ड्रोन द्वारा पूर्व सर्वेक्षण के आधार पर खेत के क्षेत्रफल व स्वरूप को जानकर भविष्य में प्रयोग होने वाली कृषि यन्त्रों व मशीनों के चलने का बिन्दुपथ आधारित मानचित्र तैयार किया जा सकता है। कम समय तथा लागत में मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। इस तरह से ईंधन व समय दोनों की बचत की जा सकती है। फ्रांस और इटली जैसे देशों ने ड्रोन का प्रयोग खेतों के आकार व क्षेत्रफल की गणना के लिए किया है और शीघ्र ही इसका उपयोग भारत में भी होने लगेगा।
ड्रोन कृषि प्रबन्धन के संचालन के लिए पारंपरिक हवाई वाहनों की अपेक्षा, उच्च परिशुद्वता और कम ऊंचाई की उड़ान भरकर छोटे आकार के खेतों में कार्य करने की क्षमता रखता है। ड्रोन, खेतों के हालात जानने के लिए डाटा एकत्रीकरण, डाटा का विश्लेषण करने व ऐसे कार्यों में विभिन्न अवयवों व घटकों के उचित और सटीक रूप से प्रबन्धन में भी सहायक सिद्व हो सकता है।
ऐसी परिस्थितियां जहां परंपरागत मशीनों का उपयोग में लाना एक चुनौतिपूर्ण कार्य है, उदाहरणार्थ धान का गीला खेत, गन्ना, मक्का व कपास की फसल, नारियल और चाय बागान तथा बागवानी इत्यादि में ड्रोन की उपयोगिता बहुत ही महत्वपूण है। टेक्नोलॉजी में विकास के साथ-साथ ड्रोन के कल-पुर्जे सस्ते एवं दक्षतापूर्ण होंगे।
इनसे लम्बे अन्तराल के लिए हवा में सस्ती उड़ान भरी जा सकेगी। ड्रोन का उपयोग कृषि प्रबन्धन में आर्थिक रूप से भी काफी लाभप्रद होगा। कृषि कार्यों से हमारी युवा पीढ़ी के मोहभंग होने का प्रमुख कारण इस कार्य में काफी मेहनत होना और उसके मुकाबले आमदनी बहुत कम होना है, आज युवा अच्छी सुख-सुविध और ऊंची पगार की नौकरी प्राप्त करने के लिए शहर की ओर विस्थापित हो रहा है।
ड्रोन नई तकनीकी से परिपूर्ण होने के साथ-साथ युवाओं को भी कृषि कार्य हेतु आकर्षित करने तथा खेती की ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा जिसकी भविष्य में बहुत अधिक आवश्यकता है। इस तरह बहुआयामी क्षमताओं से परिपूर्ण ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुपयोगी एवं लाभप्रद सिद्व होगा। ड्रोन पर भारत के साथ-साथ अन्य कई देशों में गहन अनुसंधान कार्य जारी हैं।
ड्रोन को कृषि कायों में विभिन्न दक्षताओं एवं सरलता से उपयोग किया जा सकेगा, अब वह दिन दूर नही जब ड्रोन का रिमोट किसान के हाथों में होगा और मोबाइल की तरह ही ड्रोन को अपने जीवन में तेजी से अपनाकर इससे भरपूर लाभ प्राप्त करने के लिए वे अपने खेतों पर इसको चलाते हुए नजर आयेंगे।
रोगों एवं कीटों के स्तर की जांच तथा उपचार
मृदा व वायुमंड़ल मे विभिन्न प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया, कवक और कीट फसल चक्र के दौरान उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे फसल में संक्रमण की आशंका रहती है। यदि इनको समय रहते नियंत्रित नही किया जाता तो फसल में अत्याधिक हानि होती है। संक्रमण के दौरान पौधे के पत्तों, फूलों व टहनियों का रंग, आकार तथा बनावट में परिवर्तन आता है।
इस परिवर्तन को ड्रोन में लगे मल्टी स्पेक्ट्रम कैमरों के माध्यम से तस्वीरों तथा विडियों के रूप में देखा जा सकता है, तथा इनका अध्ययन कर फसल में होने वाले संक्रमणों का सटीकता से पता लगाते हुए उनसे होने वाली हानि का संख्यात्मक पूर्वानुमान भी लगाया जा सकेगा। बागवानी का भी कृषि आया अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है, खेतों की अपेक्षा बागानों में वृक्षों के ऊंचे होने के कारण निरीक्षण तथा उनका रख-रखाओं में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
वहीं ड्रोन का उपयोग इस कार्य में आसानी से किया जा सकता है। इनके माध्यम से फूलों एवं फलों का निरीक्षण करके उनमें लगने वाले कीटों एवं रोगों को कीटनाशकों छिड़काव का समय रहते लगने वाले रोगों एवं कीटों से बचाव कर फसलों का उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है।
लेखकः डॉ0 सेंगर, सरदार वल्ल्भभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वद्यिालय मेंरठ के कृषि महाविद्यालय के कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।