धान की पराली अब समस्या नहीं, किसानों के लिए है कमाई जरिया      Publish Date : 15/08/2024

              धान की पराली अब समस्या नहीं, किसानों के लिए है कमाई जरिया

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

धान के फसल के अवशेष को पराली कहते है। पराली किसानों के लिए हमेशा ही एक बड़ी समस्या के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन वर्तमान में आधुनिक कृषि यंत्र ‘‘बेलर’’ के बाजार में आ जाने से किसानों को बड़ी राहत मिली है। पराली इकट्ठा करने वाला बेलर एक ऐसा कृषि यंत्र है. जिसका उपयोग फसल कटाई के बाद बचे हुए फसल के अवशेषों (पराली) को इकट्ठा करके उसके छोटे-छोटे गट्ठरों में बांधने के लिए किया जाता है। यह कृषि यंत्र पराली जलाने की समस्या का भी एक प्रभावी समाधान है, जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद करता है।

                                                                        

सरदार वल्लभभाई कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि बेलर पहले पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है तथा इसके बाद यह यंत्र कटी हुई पराली को एक चैम्बर में एकत्र कर देता है। एक निश्चित मात्रा में पराली एकत्र करने के बाद, बेलर उसे एक मजबूत रस्सी या तार से बांधकर एक गठ्ठा बना देता है और अंत में, यह गठ्ठा चैम्बर से बाहर निकाल दिया जाता है। हालांकि बेलर चलाने से पहले रैकर का इस्तेमाल किया जाता है।

1 एकड़ खेत में 20

                                                                        
क्विंटल पराली डॉ0 सेंगर ने बताया कि बेलर पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करता है। पराली को गठ्ठरों में बांधकर खेत में ही छोड़ा जा सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। पराली के गठ्ठरों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जा सकता है, पराली के गठ्ठरों का उपयोग बायोगैस उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है। जिससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होती है। 1 एकड़ खेत में करीब 20 क्विंटल पराली निकलती है।

1 दिन में करेगा इतना काम

डॉ0 सेंगर ने बताया कि एक बेलर रोजाना 20 से 30 एकड़ खेत से पराली को उठा सकता है। किसान इस पराली को पेपर मिल में बेचकर भी अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं। बेलर को चलाने के लिए 50 हॉर्स पावर या उससे अधिक क्षमता वाले ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।

बेलर से पहले चलाना होता है रैकर

डॉ0 सेंगर ने बताया कि बेलर चलाने से पहले ही किसानों को रैकर चलाने की आवश्यकता होती है। रैकर धान की फसल कटाई के बाद खेतों में फैली हुई पराली को लाइनों में इकट्ठा कर देता है, जिससे बेलर का काम बेहद आसान हो जाता है। रैकर को चलाने के लिए 25 से 30 हॉर्स पावर तक के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है।

                                                                   

कितनी है इसकी कीमत

डॉ0 सेंगर ने बताया कि बेलर या रैकर खरीदने पर सरकार द्वारा 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। बेलर की कीमत करीब 17 लाख रुपए और रैकर की कीमत 4 लाख रुपए है। यह अलग-अलग कंपनी और अलग-अलग क्षमता के हिसाब से इनके रेट कम और ज्यादा भी हो सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।