ग्रीन-हाउस में बेमौसमी पुष्प उत्पादन      Publish Date : 22/11/2023

                                                                   ग्रीन-हाउस में बेमौसमी पुष्प उत्पादन

                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं मुकेश शर्मा

ग्रीन हाउस क्या है?

                                                                           

    ग्रीन हाउस कांच, प्लास्टिक अथवा नेट से ढ़की संरचना होती है जिसमें वातावरणीय कारकों जैसे तापमान, आर्द्रता आदि को कम से कम ओशिक रूप से नियंत्रित करके बेमौसमी तथा गहनतम फसलोत्पादन लिया जा सकता है, ग्रीन हाउस का आकार इतना बढ़ा होना चाहिए कि इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति आसानी से चल-फिर सकें। ग्रीन हाउस अपनी आकृति के आधार पर विभिन्न प्रकार के जैसे अर्द्वबेलनाकार तथा गोलाकार आदि के रूप में संयोजित किए जाते हैं।

इसी प्रकार इनके निर्माण में प्रयुक्त सामगी के आधार पर ग्लास हाउस (काँच से आवरित), पॉली हाउस (पॉलीथिन की शीट से ढ़के) अथवा नेट हाउस (कपडे अथवा पॉली नेट से आवरित) के नामों से जाने जाते हैं। सामान्यतः इन आवरणों को एल्युमीनियम अथवा जस्तीकृत इस्पात से निर्मित फ्रेम के ऊपर लगाया जाता है। यह आवरण ग्रीन हाउस के अन्दरूनी वतावरण को नियंत्रित कर बाहर के वातावरण से पृथक कर देते हैं, जिसके कारण फसल के अच्छे उत्पादन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार कीटों, रोगों एवं खरपतवार आदि का नियंत्रण भी आसानी से हो जाता है।

                                                                  

    इन विभिन्न प्रकार के ग्रीन हाउसों में ग्लास हाउस का निर्माण करना अपेक्षाकृत अधिक खर्चीला होता है इसके साथ ही इसमें समय भी अधिक ही लगता है, जबकि पॉली हाउस का निर्माण करना सबसे कम खर्चीला होता है जिस कारण पॉली हाउस ही सर्वाधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। इनमें एक विशेष मोटाई की पॉलीथिन (सामान्यतः 200 माईक्रॉन) जो कि पैराबैंगनी किरणों के द्वारा थिरीकृत होती है, का उपयेग आवरण हेतु किया जाता है। भारतवर्ष में लगभग सभी प्रकार की जलवायु उपलब्ध है और इसके चलते किसी भी फसल को देश के अलग-अलग भागों में मौसम के अनुसार उगा कर वर्षभर आपूर्ति की जा सकती है। परन्तु देश के अधिक वर्षा अथवा गर्मी वाले क्षेत्रों में जहाँ पारम्परिक खेती के लिए कुछ महीने ही उपयुक्त होते हैं वहाँ भी इस तकनीक के द्वारा वर्षभर पुष्पोत्पादन सम्भव है।

कृषि उद्योग के विकास के साथ ही निर्यात हेतु एवं घरेलू बाजार में प्रष्पों की बढ़ती मांग को देखते हुए गत कई वर्षों से देश में ग्रीन हाउसों के अर्न्गत पुष्पों की खेती में बढ़ोत्तरी हो रही है। वर्ष 2003 के एक अनुमान के अनुसार भारतवर्ष में इस समय लगभग 1000 हेक्टेयर क्षेत्रफल ग्रीन हाउस तकनीकी के अन्तर्गत फसलोत्पादन के लिए आच्छादित है। पॉली हाउस को बढ़ावा देने के लिए तथा लघु एवं सीमान्त किसानों को अधिक लाभ पहँुचाने के लिए भारत सरकार ने कम कीमत वाले पॉलीहाउस के कुल निर्माण पर होने वाले व्यय के लिए अनुदान की व्यवस्था भी की है जिसके बारे में विभिन्न राज्यों के जिलों के उद्यान विभाग से प्राप्त की जा सकती है।

ग्रीन हाउस की आवश्यकता क्यों और कहाँः-

                                                              

    ग्रीनहाउस से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि फ।सलें बेमौसम उगायी जानी चाहिए जिनसे बाजार में उनका अधिकतम मूल्य प्राप्त हो सके। इस दृष्टि से बेमौसमी फसलोत्पादन को वरीयता दी जाती है। कुछ पुष्पों का उत्पादन बाह्य वातावरण में सम्भव नही है, जैसे एन्थुरियम, कॉरनेशन आदि का गुणात्मक उत्पादन नियंत्रित परिस्थितियों में ही सम्भव है। इसी प्रकार कुछ विशिष्ट जलावयु में उगाये जाने वाले औषधीय पौधें की परिवहन लागत, उनके उत्पादन की लागत को अत्याधिक बढ़ा देती है।

अतः इस प्रकार के पौधों को उनकी खपत केन्द्रों के समीप ही ग्रीन हाउसों में उगाकर अधिकतम लाभ कमाया जा सकता है। गर्म एवं सर्द मौसम की अधिक प्रतिकूल दशाओं में भी नर्सरी/प्रर्वधन सामगी को ग्रीन हाउस में तैयार कर अच्छी कीमत पर बेची जा सकती है। इसी प्रकार अधिक वर्षा एवं अधिक ठण्ड़ के मौसम में पुष्पों की पौध को तैयार करना एक दुष्कर कार्या होता है, जबकि इस तकनीकी के माध्यम से अधिक वर्षा के मौसम में भी उचित वायु संचार युक्त साधारण पॉली हाउस में यह पौध आसानी से तैयार की जा सकती है।

    पॉली हाउस में उगाई जाने वाली फसलों को बाह्य वतावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे वर्षा, आँधी, ओलावृष्टि और पाला आदि का भय नही होता है। पॉलीहाउस के अन्दर पानी आवश्यकता भी कम रहती है, क्योंकि पानी वाष्पीकरण के कारण उड़ नही पाता है। इसी प्रकार सिंचाई के समय पानी की नालियों के द्वारा होने वाला पानी का  ह्रास भी नगण्य ही होता है।

पॉलीहाउस में साधारणतया तापक्रम एवं आर्द्रता आदि का आवश्यकतानुसार नियत्रण कर फसलों की वृद्वि एवं उत्पादकता के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराया जाता है, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता का अधिकतम दोहन किया जाता है एवं साथ ही साथ इनके उत्पादों की गुणवत्ता भी उत्तम होती है।

ग्रीनहाउस हेतु पुष्पीय फसलों का चयन

                                                             

    ग्रीनहाउस तकनीकी के उपयोग से लागत अपेक्षाकृत अधिक ही आती है अतः आर्थिक दक्षता को प्राप्त करने के लिए उत्पादन की निम्न परिस्थितियों में ही इसका उपयोग करना चाहिए-

  • निर्यात के लिए उच्चतम गुणवत्तायुक्त पुष्पों का उत्पादन।
  • पुष्पों का उत्पादन ऐसे महानगरों के समीप करना चाहिए जहाँ उनकी मांग अधिक तथा कृषि योग्य भूमि कम हो।
  • उच्चतम गुणवत्तायुक्त फॉलिएज पौधों का उत्पादन।
  • प्रसारण के लिए अच्छी पौध सामग्री का उत्पादन।
  • उच्च गुणवत्तायुक्त तथा उच्चशुद्वता वाले बीजों का उत्पादन।
  • औषधीय एवं गैरपरम्परागत वनस्पतियों का उत्पादन।
  • जैव प्रौद्योगिकी प्रणाली के द्वारा तैयार किए गए पौधों का कठोरीकरण इत्यादि।

                                                     

ग्रीनहाउस पद्वति के द्वारा उगाये गये पुष्पों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए उपलब्ध बाजारों की माँग एवं खपत के अनुसार ही उचितद पुष्प प्रजातियों का चयन करना चाहिए। बेमौसमी पुष्पोत्पादन की दृष्टि से ग्रीनहाउस में गर्मी एवं वर्षा के मौसम में जरबेरा, कॉरनेशन, एन्थुरियम, गुलाब, गुलदाऊदी, ग्लैडियोलस, लिलीयम एवं ट्यूलिप आदि की फसलों को उगाकर अधिकतम धन कमाया जा सकता है।

जबकि सर्दी के मौसम में ट्यूबरोज आदि की फसले उगाई जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त आर्किड, बर्ड ऑफ पैराडाइज जैसे विशिष्ट पुष्पों भी उगाया जा सकते हैं। विभिन्न पंकार के शोभाकारी पौधों जैसे फर्न, डिफेनबेकिया, ड्रैसिना, क्रोटोन, कैक्टस एवं सकुलेट्स आदि को भी ग्रीनहाउस में आसानी से उगाया जा सकता है।

पुष्पीय फसलों की देखभाल

    ग्रीनहाउस में बनुकूल वातावरण एवं बेहतर प्रबन्धन होने के कारण उच्च गुणवत्ता वाली फसलों की उत्पादकता खुले खेतों की अपेक्षा कई गुना अधिक होती है। यह उत्पादकता प्राप्त करने के लिए फसलों का संतुलित पोषण, आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं फसल सुरक्षा पर भी पर्याप्त ध्यान देना आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त फसल उगाने के सर्वोत्तम समय और फसल की उचित प्रजातियों के चयन पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। साथ ही साथ पौधों की सघाई तथा अनावश्यक की काट-छांट एवं पलवार आदि पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

उदाहरणार्थ यदि गुलदाऊदी, ग्लैडियोलस जैसी फसलों को उचित सहारा न दिया जाए तो इनकी उत्पादन क्षमता का भरपूर उपयोग नही किया जा सकता है। प्रति इकाई क्षेत्र में पौधों की संख्या को बढ़ाकर तथा अधिक शाखाओं एवं पुष्पक्रम प्रेरित कर इनके उत्पादन में काफी वृद्वि की जा सकती है।

ग्रीनहाउस निर्माण में व्यय

                                                             

    पॉलीहाउस के निर्माण में होने वाले प्रारम्भिक व्यय के कारण इसकी व्यवसायिकता पर कुछ प्रश्न चिन्ह हैं। आमतौर पर बिना वातावरण नियंत्रक के बने सामान्य ग्रीनहाउस के निर्माण पर लगभग 200-300 रूपये प्रति वर्ग मीटर की लागत आती है। वातावरण नियंत्रक की आवश्यकता स्थान विशेष के मौसम तथा फसल की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है। उदाहरण के तौर पर अधिक गर्मी वाले स्थानों पर ग्रीनहाउस में शीतलन यंत्र की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मध्यम जलवायु वाले स्थानों पर संवातन की समुचित व्यवस्था से ही काम चल जाता है।

साधारण ग्रीनहाउस परियोजना की लागत पूर्ति का समय पाँच वर्षों से भी कम है। अतः उचित पुष्प एव्र प्रजाति का चुनाव कर बेमैसम पुष्पोत्पादन की उचित उत्पादन की तकनीक अपनाकर ग्रीनहाउस की खेती लाभकारी सिद्व हो सकती है।

लेखकः प्रोफेसर आर- एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।

डिस्कलेमरः प्रस्तुत लेख में प्रकट किए गए विचार डॉ0 सेंगर के मौलिक विचार हैं।