
जंक फूड से जंग Publish Date : 23/06/2025
जंक फूड से जंग
डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा
परिवार अपनाए स्वस्थ आदतें
अभिभावक खुद भी होटल या फास्टफूड रेस्त्रां से खाना कम आर्डर करें। सुनिश्चित करें कि पूरा परिवार ही स्वस्थ खाने की आदतें अपनाएं। बच्चों को खाने की योजना बनाने और खाना बनाने में भागीदारी का मौका दें। वे दाल-चावल धो सकते हैं, सब्जियां काट सकते हैं, सलाद सजा सकते हैं, चिप्स/चटनीबना सकते हैं। इससे उन्हें भागीदारी का एहसास भी होगा और घर के खाने के प्रति उत्साह भी बढ़ेगा।
बच्चों को जंक फूड के स्वास्थ्यवर्धक मगर स्वादिष्ट विकल्प भी दें, जैसे उनके पसंदीदा स्नैक्स का घर पर हेल्दी वर्जन बनाना जिसका स्वाद बढ़ाने के लिए आप देसी मसालों और चिप्स/चटनी का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पहलें लाएं अपने आप में सुधार
बच्चे माता-पिता की आदतों को देखकर सीखते हैं, खासकर परवरिश के शुरुआती वर्षों में। अगर आप वेब सीरीज देखते हुए लगातार चिप्स खा रहे हैं तो वे भी कार्टून देखते हुए ऐसा ही करेंगे। इसलिए स्वयं से शुरुआत करें और घर में स्वस्थ भोजन-चर्या का माहौल बनाएं। बच्चों को जंक फूड से रोकें तो खुद भी ब्रांड के आकर्षण में न भागे। कार्बोनेटेड शरबत की जगह शिकंजी और बर्गर की जगह इडली भी भूख-प्यास और क्रेविंग का समाधान बन सकती है। बच्चों को बताएं कि ब्रांड के मायाजाल में फसकर बर्गर, पिज्जा, चिप्स, चाइनीज फूड खाना कितना हानिकारक है।
परफेक्ट पैरेंटिंग
घर का खाना देख बच्चों को भूख नहीं लगती, मगर टीवी पर आ रहे विज्ञापन देख जिद करने लगते हैं जंक फूड की। हाल ही में हुए शोध के अनुसार, ब्रांड का लोगो देख बच्चों में बढ़ जाती है उस जंक फूड की क्रेविंग। स्क्रीन से घिरी जीवनशैली में बच्चों की सेहत कैसे बचाएं बाजार के इस मायाजाल से, डॉ0 सुशील शर्मा का आलेख-
राहुल की बेटी अभी महज तीन साल की है, मगर एक नामी नूडल ब्रांड का सिर्फ रंग देखकर ही वह पहचान जाती है और उसके विज्ञापन गीत को अपनी तोतली बोली से गुनगुनाने भी लगती है और यही हाल चाकलेट और कोल्डड्रिंक के साथ भी है। दरअसल, इसके लिए टीवी पर आने वाले विज्ञापन जिम्मेदार हैं। रही कसर यूट्यूब के विज्ञापन पूरी कर देते हैं। वहीं से वो सीखती है। ऐसा सिर्फ राहुल नहीं बल्कि विशेषज्ञ भी मानते हैं।
बच्चों में जंक फूड की लत माता-पिता के लिए एक बड़ी चिंता और पैरेंटिंग की चुनौती बन गई है। दूसरी तरफ ऐसे भोजन उत्पाद बनाने वाली कंपनियां इनकी आक्रामक ब्रांडिंग पर ढेर सारा पैसा खर्च करके बच्चों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही हैं। आदी बना देने वाला स्वाद, आकर्षक पैकिंग, बढ़िया विज्ञापन और कभी-कभी इन पैकेज फूड के साथ मिलने वाले मुफ्त उपहार बच्चों को इस हद तक इनका लती बना रहे हैं कि माता पिता के लिए यह सुनिश्चित करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया है कि बच्चे संतुलित आहार लें। हालांकि, सही रणनीतियों और सहायक माहौल के साथ माता-पिता इस समस्या सेबच्चों को संतुलित आहार के फायदों के बारे में बताएं और अनहेल्दी स्नैक्स के नुकसान समझाएं ताकि उन्हें पता चले कि उनके लिए क्या सही है। उन्हें समझाएं कि विज्ञापन या ब्रांड का प्रचार स्वस्थ जीवनशैली की गारंटी नहीं है। फास्टफूड या जंक फूड ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो एनर्जी से तो भरपूर होते हैं क्योंकि इनमें बहुत मात्रा में वसा, चीनी और नमक होता हैलेकिन प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिज जैसे जरूरी पोषक तत्वों में ये बहुत कमजोर होते हैं।
जंक फूड में मौजूद स्वाद बढ़ाने वाले तत्व व चिकनाई इनकी लत डाल देते हैं। इस लत का घालमेल अगर निष्क्रिय जीवनशैली के साथ हो जाए तो मोटापा, कब्ज, नींद में खलल और मधुमेह जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा बना रहता है।हेल्दी विकल्प हैं जरूरी बच्चों में तो यह खतरा इतना बड़ा है कि लॅसेट ने 2050 तक भारत में तीन करोड़ बच्चे (पांच से 14 वर्ष) के मोटापे का शिकार होने की आशंका जताई है। जीवनशैली में आज और अभी से सुधार करके ही इससे बचा जा सकता है।
लेकिन ध्यान रखें, अभिभावक के तौर पर जंक रोक करें, फूड पर सख्त प्रतिबंध या पूरी तरह से लगाने के बजाय ऐसी उचित सीमाएं तय जिनका बच्चे आसानी से पालन कर सकें। शुरुआत के तौर पर, उन्हें कोई इनाम देने के लिए जंक फूड का उपयोग न करें। घर में जंक फूड और स्नैक्स आसानी से उपलब्ध न होने दें। अपने घर में हेल्दी विकल्प रखें ताकि जंक फूड के लालच से बचा जा सके।
हाइपर एक्टिव बच्चे सारा दिन धमाचौकड़ी करते हैं और उनका ध्यान भी एक चीज पर ज्यादा देर नहीं लगता। ऐसे में वे न होमवर्क पर ध्यान देते हैं और न बताई जा रही।
लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।