
अच्छी सेहत और स्वाद के लिए नट्स आजमाए Publish Date : 14/06/2025
अच्छी सेहत और स्वाद के लिए नट्स आजमाए
डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा
हमारे आसपास ऐसे कई गुणकारी पौष्टिक पदार्थ मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखते हैं और साथ ही हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। काजू, बादाम, अखरोट और पिस्ता जैसे नट्स इसी तरह की खूबियों से भरपूर होते हैं।
(1) अखरोट
हमारे देश में कश्मीर से लेकर मणिपुर तक अखरोट के वृक्ष अधिकता में पाए जाते हैं। अखरोट के फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे गुच्छे के रूप में लगते हैं। इसके पत्ते लम्बे, अण्डाकार, नुकीले, दो कंगूरे बने होते हैं। इसके पत्ते भी पौष्टिक होते हैं और शरीर की विभिन्न क्रियाओं को दुरुस्त रखते हैं। अखरोट दो प्रकार के होते हैं- अखरोट व रोवाफल। अखरोट का छिलका कृमिनाशक और विरेचक होता है, इसका काढ़ा ग्रंथियों के लिए उपयोगी होता है। गठिया की बीमारी में इसका फल काफी लाभदायक होता है। उपदंश, विसर्पिका, खुजली, कण्ठमाला आदि रोगों में अत्यन्त लाभ प्रदान करता है।
निम्न रोगों में अखरोट को प्रयोग किया जा सकता हैं-
कण्ठमाल- अखरोट के पत्तों का क्वाथ पीने से और उसी से गांठ को धोने से कण्ठमाल रोग ठीक हो जाता है।
गुर्दे की पथरी- अखरोट को पीसकर सुबह शाम 1-1 चम्मच ठण्डे पानी से सेवन करने से मूत्रमार्ग की पथरी बाहर निकल जाती है।
कृमि रोग - अखरोट भी छाल का क्वाथ (काढ़ा) पीने से आंतों के कीड़े मरकर निकल जाते हैं। मूत्र रोगों में अखरोट की गिरि तथा किशमिश समान मात्रा में 15-20 दिन खाने से पेशाब में जलन में लाभ होता है।
कब्ज- अखरोट की गिरि का तेल रात्रि में सोते समय एक गिलास दूध में एक चम्मच मिलाकर पीने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
दन्त रोग अखरोट के छिलके को जलाकर उसके चूर्ण से दांतों के मंजन की तरह प्रयोग करने से दांतों के रोग दूर होते हैं।
असमय गर्भपातः बहुत सी महिलाओं में बार-बार गर्भपात हो जाता है। उससे बचने के लिये अखरोट की गिरि व पेड़ा को मिलाकर खिलाने से असमय गर्भपात होना रुक जाता है।
मस्तिष्क रोगों में अखरोट की गिरि का प्रयोग: खाली पेट चबाकर प्रतिदिन प्रयोग करके होने से मानसिक तनाव, मस्तिष्क रोगों में आराम मिलता है। आंखों में लाभकारी-अखरोट की गिरि तथा बादाम की गिरि को रात्रि में पानी में भिगोकर प्रातः खाली पेट प्रति दिन कई महीनों तक प्रयोग करने पर आँखों की ज्योति, रेटीना का तनाव एवं आंखों के अन्य रोगों में लाभ प्राप्त होता है।
बच्चों का पेशाब का निकलनाः छोटे बच्चों की पेशाब अचानक निकल जाती है और उन्हें इसका पता ही नहीं लग पाता है, इसके लिये अखरोट के पत्तों व अखरोट का छिलका पीसकर चूर्ण को किशमिश में मिलाकर सोते समय देने से लाभ होता है।
(2) अंजीर
अंजीर अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक व शारीरिक क्षमता को बढ़ाने वाला फल है, यह दो प्रकार का होता है एक बोया हुआ जिसके फल व पत्ते बड़े होते है। दूसरा जंगली, जिसके फल व पत्ते छोटे होते हैं। इसको तोड़ने से इसके प्रत्येक भाग से दूध निकलता है। इसके कच्चे फल का रंग हरा तथा पके फल का रंग पीला, बैंगनी और अंदर से लाल होता है। यह फल खाने में मीठा व स्वादिष्ट होता है।
इन रोगों में भी होता है फायदेमंद-
रक्त का जमनाः शरीर में किसी भाग में रक्त का जमना, रक्त के प्रवाह का रुकना आदि में अंजीर की लकड़ी को जलाकर उसकी राख बना लें, उसे पानी में घोल लें या पानी में 12 घंटे डालकर उसके ऊपर का पानी निकालकर पिलाने से रक्त के जमने की समस्या में आराम मिलता है।
सांस रोगों में अंजीर का फल व गोरख, इमली चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर, एक चम्मच गर्म पानी से प्रयोग करने पर पुराना दमा रोग में लाभ होता है। बवासीर (अर्श) सूखे अंजीर के फल को रात्रि में पानी में भिगोकर प्रातः खाली पेट चबाकर खाने से बवासीर (अर्श) में लाभ होता है और रक्त अर्श में रक्त निकलना भी बन्द हो जाता है।
कुष्ठ रोगः प्रारम्भिक अवस्था में अंजीर के पत्तों का रस श्वेत कुष्ठ के स्थान पर दो बार लगाने से यह बढ़ना बंद हो जाता है।
गांठ या फोड़े शरीर में किसी प्रकार की गांठ या फोड़ा जो पका नहीं है, उसमें सूखे अंजीर को पीसकर जल में औटाकर गुनगुना लेप करने से गांठों व फोड़ो की सूजन ठीक हो जाती है।
पौरुष शक्तिवर्धकः सूखे अंजीर को गाय के दूध में उबालकर बादाम की गिरि, इलायची, केसर, चिरौंजी, पिस्ता, सफेद मूसली, प्रवालभस्म, मुगलाई बेदाना, शीतल चीनी आदि पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को दूध से 1-1 चम्मच लेने से पौरुष शक्ति में वृद्धि होती है। शुक्राणुओं की संख्या में भी वृद्धि होती है।
(3) काजू
काजू पौष्टिक, शान्तिदायक एवं शक्तिदायक होता है। शरीर के विभिन्न रोगों में इसका उपयोग कर सकते हैं। शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। काजू का तेल विष प्रतिरोधक भी होता है।
शरीर के मस्सेः काले मस्सों को खत्म करने के लिये काजू के छिलके का तेल लगाने से लाभ होता है। फोड़े या लाल चकों को ठीक करने के लिये काजू के तेल का सेवन करने से लाभ होता है।
नपुंसकता: काजू के साथ दूध या कॉफी पीने से नपुंसकता दूर होती है।
मूत्र रोगों में प्रोस्टेट आना, मूत्र खुलकर न आना आदि में काजू पीने से यह समस्या दूर होती है। त्वचा सुन्नता त्वचा में सुन्नता होने पर काजू के छिलके के तेल की मालिश करने से लाभ होता है।।
बादाम तेलः विरेचक, कृमिनाशक, गुदा, यकृत व तिल्ली की वेदना एवं कब्ज दूर करता है तथा चर्म रोगों में प्रयोग करने से अत्यन्त लाभ होता है। मीठे बादाम का जला हुआ छिलका दाँतों को गंजबूत करता है।
कड़वे बादाम का मगज सूजन के लिये लाभप्रद, जलोदर और आंखों की ज्योति के लिए लाभप्रद होता है। यह सांस के रोगों और खुजली में भी उपयोगी है।
बादाम के पौधे के झाड़ों के पत्तों पर एक प्रकार के कीड़े के घर बन जाते हैं, जिनको पिस्ते के फूल कहते हैं। यह एक तरफ से गुलाबी व दूसरी तरफ से पीले या सफेद होते हैं। यह कहीं अंजीर के आकार के, कहीं गोल या कहीं अण्डाकार आकृति के होते हैं।
पिस्ता का फल दो वर्ष में एक बार आता है। इसके फल के ऊपर एक कड़ा छिलका होता है उसको अलग करने से जो पदार्थ निकलता है वह ही पिस्ते रूपी मेवा प्रयोग करने योग्य होता है। पिस्ता बलवर्धक, पित्तनाशक, स्मरण शक्तिवर्धक, हृदय व मस्तिष्क को बल देने बाला और आमाशयव को मजबूत करता है। वमन, पेट के ऐंठन, यकृत वृद्धि में लाभ करता है। गुर्दे की कमजोरी को दूर करता है। पिस्ते को चबाने से मसूड़े मजबूत होते हैं। पिस्ते के पत्तों का काढ़ा खुजली के स्थान पर लगाने से लाभ होता है तथा यह काढ़ा बालों में लगाने से बालों का टूटना, डेन्ड्रफ का होना, बालों के न बढ़ना में लाभ करता है।
दन्त रोगों में दांतों में पायरिया, काले होना, दर्द होना, भोजन खाने में तकलीफ होने पर काजू के छिलके व पत्तों का बारीक चूर्ण बनाकर मंजन के रूप में प्रयोग करने से दांतों के रोगों में लाभ होता है। पेचिश, बवासीर, भूख न लगना, सिरदर्द व कमजोरी में काजू का प्रयोग लाभप्रद होता है।
(4) बादाम
पौष्टिक मेवाओं में बादाम शारीरिक स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त उपयोगी है। बादाम का प्रयोग उसकी गिरि व उसकी बाहरी भाग की चिकित्सा में लाभप्रद है। पका बादाम मधुर, स्निग्ध, पौष्टिक, शक्तिवर्धक, कफकारक और वातपित्तनाशक होता है। सूखा बादाम भी काफी फावदेमंद होता है। मस्तिष्क, कामशक्ति और नेत्रों के लिए बादाम गिरि रात में भिगों दे तथा खाली पेट चबाकर खाने से लाभ होता है।
बादाम गाय के घी में भूनकर खाने से वीर्यवर्धन होता है। गुर्दे और मेदे की मजबूती में लाभ करता है।
बादाम की जड़ धातु परिवर्तक है, यह बादाम का रस व शक्कर के साथ मिलाकर प्रयोग करने से कफ व खांसी को दूर करता है।
बादाम को अंजीर के साथ मिलाकर प्रयोग करने से मृदु, विरेचक और आंतों के रोगों में लाभ करता है। मीठे बादाम का तेल, सिरदर्द, माईग्रेन, सन्निपात, निमोनिया में लाभ करता है। निरन्तर प्रयोग करने पर हिस्टीरिया की बीमारी में लाभ करता है।
मीठे बादाम की गोंद गले के दर्द, पुरानी खाँसी तथा टीबी में भी अन्य औषधियों के साथ लाभ करता है।
पिस्ता
पिस्ता अन्य मेवों के समान शारीरिक स्वास्थ्य व पौष्टिकता के लिए अत्यन्त हितकारी और उपयोगी होता है। पिस्ते का छिलका पिस्ते के ऊपर दो छिलके होते हैं, एक लाल रंग का पहला खिलका, जो पिस्ते की मगज से चिपका होता है। दूसरा सफेद छिलका होता है। पतला छिलका वमन, हिचकी को बन्द करने वाला, दांत, मसूड़े, हृदय तथा मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है। इसको खाने से मुंह के छाले मिट जाते हैं। दूसरा छिलका का चूर्ण बनाकर पेट में अजीर्ण, पाचन व उदर की विभिन्न विकृतियों में लाभ करता है। इस चूर्ण को शक्कर के साथ सेवन करने से शारीरिक शक्ति व पौष्टिकता में लाभ होता है।
फूल का उपयोग पिस्ते के फूल सिरदर्द, कब्ज व मस्तिष्क को शीतलता प्रदान कर फायदा करता है। तेल का उपयोग-पिस्ते का तेल माइग्रेन में उपयोगी है। इस तेल को गर्म जल का वफारा देकर, नाक में दो बूंद डालने से लाभ होता है।
यह तेल स्मरण शक्तिवर्धक होता है। एक गिलास दूध में डालकर प्रयोग करने से स्मरणशक्ति, हृदय में उपयोगी, पागलपन, वमन आदि में लाभ करता है। पिस्ते का प्रयोग अधिक मात्रा में करने से पित्ति भी उछल सकती है।
लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।