
दूध- आपने आप में एक सम्पूर्ण आहार Publish Date : 07/05/2025
दूध- आपने आप में एक सम्पूर्ण आहार
डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा
दूध एक ऐसा तरल पदार्थ है जिसे न तो आज तक रसायनज्ञ बना सके और न जिसका संश्लेषण जीव-रसायनज्ञ ही कर सके हैं। पोषक पदार्थों के सस्ते स्रोत के रूप में इसका कोई दूसरा प्रतिस्थापी (Substitute) भी नहीं खोजा जा सका है। वास्तविक रूप में दूध एक विषमांगी तंत्र (Heterogeneous System) होता है, जिसमें एक से अधिक द्रव प्रावस्थाएं (Phases) होती हैं तथा जिनमें एक-दूसरे से कम मिन्नता पाई जाती है। दूध के कुछ अवयव, लेक्टोस खनिजों, पानी में घुलनशील विटामिनों और वसा में घुलने वाले विटामिन आदि हैं। इसमें प्रोटीन कोलॉइडी (Collidal) अवस्था तथा वसा पायस (Emulsion) अवस्था में पाए जाते हैं।
दूध का संघटन (Composition):- दूध को पोषक पदार्थों का भंडार भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि दूध पोषक पदार्थों का एक अच्छा खासा निचय (Reserve) है। इसमें आवश्यक प्रोटीन्स, जैसे- केसीन, पर्याप्त शर्करा, लेक्टोस, खुशबूदार वसा (Fats) आवश्यक खनिज, खासतौर पर कैल्शियम तथा फॉस्फोरस, ऐसे विटामिन हैं जो वसा तथा पानी में घुलनशील होते हैं और जो कुछ दूसरे कार्बनिक यौगिकों में पाए जाते हैं। दूध का संघटन कुछ अन्य वसा, जैसे जाति, नस्ल, अलग-अलग पशुओं, मौसम, उनको दी जाने वाली खुराक आदि पर निर्भर करता है। प्रत्येक स्तनधारी दूध का इस प्रकार संश्लेषण करता है, जो उसकी जाति के बच्चों के लिए पौष्टिकता के आधार पर बिल्कुल ठीक बैठता है। हमारे देश में भैंस का दूध पोषण का एक अच्छा साधन है। भैंस के दूध में लगभग 7 प्रतिशत वसा, 3.60 प्रतिशत प्रोटीन, 5.50 प्रतिशत लैक्टोस, 0.90 प्रतिशत खांनेज तथा 83 प्रतिशत पानी होता है। भैंस के दूध के अतिरिक्त गाय, बकरी तथा भेड़ का दूध विभिन्न जाति के दुधारू पशुओं में भिन्न-मिन्न प्रकार का होता है।
दूध के अवयव (Constituents):- दूध के अन्दर निम्नलिखित अवयव पाए जाते हैं-
(1) लिपिड्स (Lipids)- दूध का मुख्य अवयव इसमें विद्यमान वसा की मात्रा होती है। क्योंकि इसकी मात्रा से दूध की कीमत तथा गुण आँके जाते हैं। दूध की वसा में मुख्य रूप से ट्राइग्लिसराइड्स 98.99 प्रतिशत, फॉस्फोलिपिड्स (Phospholipids) 0.2-1.0 प्रतिशत तथा स्टेरोल्स (Sterols) 0.25-0.40 प्रतिशत तक पाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ स्वतंत्र वसीय, मोम, स्क्वालीन (Squalene) आदि भी बहुत कम मात्रा में दूध की वसा में घुलित रहते हैं, विटामिन A, D, E तथा K और कुछ एन्जाइम्स जैसे जैन्थीन, ऑक्सीडीज, क्षारीय फॉस्फेट्स तथा कुछ धातुए जैसे कॉपर, लोहा भी वसा की गोलिकायों में पाई जाती है। इसमें वसीय अम्ल जैसे ओलीक पामिटिक, स्टियरिक, माइरिस्टिक, ब्यूटायरिक, लिनोलिक आदि भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। स्त्री के दूध में आसानी से पच जाने वाला ओलीक अम्ल होता है, जबकि गाय के दूध में ब्यूटारिक अम्ल अधिक मात्रा में होने के कारण यह इतनी आसानी से नहीं पच पाता है।
विटामिन A, D, E तथा K वसा की तह में तथा पानी में घुलने वाले विटामिन C तथा C दूसरी तह में पाए जाते हैं। इसमें राइबोफ्लाविन अथवा विटामिन B₂ विटामिन A तथा थायोमिन अथवा विटामिन B, मी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अतः दूध वयस्कों तथा बच्चों, दोनों के लिए अति आवश्यक है। स्त्री के दूध में विटामिन A तथा B कम्प्लैक्स पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं, लेकिन विटामिन C तथा क् अधिक मात्रा में नहीं होने के कारण बच्चे की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती। अतः माँ के भोजन में विटामिन C तथा थायमिन व राईबोफ्लाविन की मात्रा अधिक देने से बच्चे के लिए भी इसकी कमी की पूर्ति हो जाती है।
तुलनात्मक दृष्टि से स्त्री के दूध में प्रोटीन कम मात्रा में तथा कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में पाया जाता है, लेकिन माँ के दूध में प्रोटीन की गुणता अच्छी होने के कारण यह बच्चे को आसानी से हजम हो जाता है। माँ के दूध में पीली अनसेच्यूरेटेड वसा होती है, जो बालक के मस्तिष्क के विकास के लिए अति आवश्यक है। इसी कारण, पशुओं के दूध की तुलना में स्त्री के दूध से बच्चे के मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है। दूध की चीनी लेक्टोस, ग्लेक्टोलिपिड्स के बनाने में आवश्यक होती है तथा यह मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी के विकास के लिए बहुत आवश्यक होती है।
(3) दूध में उपलब्ध खनिज पदार्थ (Minerals)-
दूध में लगभग 0.7 प्रतिशत दूध में राख बचती है जिसका बड़ी सावधानी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसमें कुछ खनिज जैसे कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फेट्स अल्प मात्रा में मैग्नीशियम सल्फेट तथा कार्बोनेट्स थोड़ी मात्रा में, तथा लोहा मोलिब्डेनम, कोबाल्ट, फ्लोरीन, ब्रोमीन, कॉपर, एल्यूमिनियम, बोरोन, जिक, मैग्नीज, सिलिका आदि बहुत कम मात्रा में होते उपलब्ध होते हैं। दूध में खनिजों की उपयोगिता इनके आपस के सामंजस्य के द्वारा इसकी भौतिक अवस्था की जानकारी देते हैं। कुछ धातुएँ जैसे ताँबा तथा लोहा की उपस्थिति के कारण ही दूध में गन्ध आती है। इसी तरह कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की उपस्थिति से दूध की पौष्टिक आहार क्षमता (Nutrative Value) बढ़ जाती है। स्त्री तथा गाय के दूध में लोहा तथा ताँबा की मात्रा कम होती है, अतः इनकी कमी को दूर करने के लिए छोटे बच्चे को अलग से थोड़ी-थोड़ी मात्रा इनको देना आवश्यक हो जाता है। स्त्री के दूध में गाय के दूध की तुलना में कैल्शियम की मात्रा एक-तिहाई होती है, लेकिन बच्चे की जठरान्त्र क्षेत्र (Gastrointestine Tract) में इसकी अधिक मात्रा अवशोषित होती है।
दूध में वसा छोटी-छोटी गोलिकाया के रूप में होती है, जिनका औसत आकार 2.5 मिमी होता है। इन गोलिकाओं पर एक 0.02 मोटी झिल्ली होती है जिसे फेट-ग्लोब्यूल झिल्ली (Fat-Globule membrane) कहते हैं। वसा की गोलिकायों की झिल्ली में फॉस्फोलिपिड्स और प्रोटीन्स जटिल अवस्था में होते हैं। दूध के सीरम में थोड़ी-सी मात्रा फॉस्फोलिपिड्स, स्टेरोल्स तथा स्वतंत्र वसीय अम्ल की होती है।
(2) विटामिन (Vitamins):- दूध में आहार की दृष्टि से आवश्यकतानुसार बहुत अच्छी मात्रा में विटामिन होते हैं। दूध में वसा में घुलित विकर होते हैं। एन्जाइम्स स्तन के ऊतकों में उपस्थित रहते हैं तथा दूध के साथ अपहरिण अथवा संयोग करते रहते हैं। दूध में लगभग 20 विकर पाए जाते हैं।
(3) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrets):- दूध में थोड़ा सा मिठास लेक्टोस के कारण होता है, इसका मीठापन साधारण चीनी का 25 प्रतिशत होता है। जबकि लेक्टोस दूध के पानी वाले भाग में घुला रहता है। स्त्री के दूध में लेक्टोस गाय के दूध की तुलना में अधिक मात्रा में होता है। लेक्टोस द्वारा दूध से कुछ चीजें जैसे- दही, पनीर, मट्टा आदि का बनाना भी होता है, क्योंकि सूक्ष्म जीवों के द्वारा इसके किण्वन (फरमेनटेशन) से लेक्टिक अम्ल बनता है इसके अतिरिक्त लेक्टोस कुछ उपयोगी लेक्टिक अम्ल बनाने वाले जीवाणुओं के बनने तथा आँतों में बढ़ने में उपयोगी सिद्ध होता है।
(4) प्रोटीन (Proteins): स्त्री के दूध में अमीनो अम्ल का संघटन छोटे बच्चों के लिए सही तथा आदर्श होता है, क्योंकि यह उनके शरीर के ऊतकों को बनाने में उपयोगी होता है। स्त्री के दूध में कुल प्रोटीन की मात्रा गाय के दूध से कुछ कम होती है। लेकिन यह बच्चे के शरीर में पूर्ण रूप से प्रयोग हो जाती है। केवल हाइड्रोक्सी प्रोटीन को छोड़कर लगभग सभी प्राकृतिक दृष्टि से पाए जाने वाले अमीनो अम्ल दूध के प्रोटीन में पाए जाते हैं।
क्या दूध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है?
गंदे बर्तनों में एकत्रित करने तथा वितरण करने से दूध मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों फैल सकती है। दूध के द्वारा फैलने वाले रोग, दुधारू पशुओं की बीमारी से गलत ढंग से दूध निकालने तथा गन्दे बर्तनों में रखने, दूध को खुला रखने आदि से होते हैं। दूध से होने वाले रोग निम्नलिखित हो सकते हैं-
(i) टाइफाइड, (ii) पेराटाइफाइड (iii) पेचिश तथा डायरिया (iv) स्कारलेट बुखार, (v) डिफ्थीरिया, (vi) हैजा, (vii) भोजन विषाक्तता, (vii) पोलियो माइलिटिस, (viii) बच्चों में आँतों की बीमारी, आदि।
अतः दूध में सूक्ष्मजीवियों को नष्ट करना बहुत आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं से विभिन्न रोग फैलते हैं। पाश्चुरीकरण (Pasteurization) से दूध के रोगकारक जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है। दूध को पाश्चुराइजेशन करने के लिए इसको पहले 1600F पर 15 सेकेण्ड तक गर्म किया जाता है, तत्पश्चात् ठण्डा करके इसका तापमान 40°F कर दिया जाता है। इस विधि से दूध हानिकारक जीवाणुओं रहित हो जाता है फिर यह उपयोग करके योग्य हो जाता है। घरों में इसको उबालकर ही पीने योग्य बनाया जा सकता है।
दूध एक विशेष शक्ति देने वाला तथा पौष्टिक दृष्टि से अत्यन्त लाभकारी पेय है। इसे ‘सम्पूर्ण आहार’ भी कहा गया है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति दूध की कम से कम मात्रा 10 आउन्स होनी चाहिए, लेकिन यह 4.6 आउन्स से भी कम पाई जाती है।
लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।