मौसम के बदलने से गले में परेशानी      Publish Date : 10/04/2025

                 मौसम के बदलने से गले में परेशानी

                                                                                                               डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

मौसम बदलने पर गले की समस्याएं होना एक समस्या आम होती हैं। वहीं इन दिनों होने वाली गले में खराश, सूखी खांसी और गला दर्द आदि की समस्या लंबे समय तक परेशान कर रही हैं। अंधाधुंध एंटीबायोटिक दवाएं और अपने आप से ही उपचार करते रहने की आदत इस नुकसान बढ़ा सकती है।

                                             

मौसम में बदलाव होने पर होने वाले वायरल के लक्षणों में आमतौर पर अक्सर रोगी को तीन से पांच दिन के अंदर आराम मिल जाता है, परन्तु इन दिनों यह शिकायत सबसे अधिक आम है कि गला खराब होने के बाद ठीक होने में लंबा समय ले रहा है। हालांकि, कुछ लोग साल भर गले की समस्याओं से जूझते हुए दिखते हैं। गले की खराश एक आम समस्या है, जिसके विभिन्न कारण हो सकते हैं।

आखिर क्यों होती है गले में खराश?

गले में खराश, जलन, सूखापन व बलगम फंसने के जैसी समस्याओं को भी अक्सर गले की खराश से ही जोड़कर देखा जाता है। इसकी चलते लोगों का बोलने या कुछ निगलने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है। गले के साथ एक समस्या यह भी है कि अगर इसमें एक भी परेशानी होती है तो इसके साथ ही कई अन्य दूसरी समस्याएं भी रोगी को दिखाई देने लगती है, जैसे नाक बंद होना, नाक का बहना, लगातार छींकें आना, बलगम बनना, बुखार, आवाज में भारीपन, कान व सिर में दर्द होना आदि। इस समस्या को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  • पहला फेरिगजाइटिस, इसमें गले में सूजन और खराश होती है।

  • दूसरा, टॉन्सिलाइटिस, गले में सूजन रहती है। टॉन्सिल लाल हो जाते हैं। टॉन्सिल मुंह के पीछे मुलायम ऊतक को कहा जाता है।

  • तीसरा है लैरिंगआइटिस, इसमें रोगी की स्वर ग्रंथि लाल हो जाती है और उसमें सूजन आ जाती है और अगर गला लाल हो जाता है। गले के अंदर सफेद धब्बे या टॉन्सिल में बलगम बनने लगती है तो ऐसा संक्रमण के कारण से होता है।

गले में खराश के कारण

                                                 

संक्रमणः गले में खराश संक्रमण का पहला रूप होता है। संक्रमण वायरल और बैक्टीरियल दोनों में से किसी अथवा कई बार दोनों ही प्रकार का हो सकता है। बैक्टीरियल संक्रमण स्ट्रेप्टोकोकस प्रयोजींस नाम के बैक्टीरिया से होता है। इसके कारण गले में दर्द, सूजन, टॉन्सिल की समस्या, बुखार, लसीका ग्रन्थि में सूजन, सिरदर्द, पेट दर्द, टॉन्सिल लाल होना या उसमें सूजन आनाके अलावा कई बार सफेद धब्बे भी देखे जा सकते हैं। यह समस्या बच्चों में अधिक होती है। समस्या के गंभीर होने पर एंटीबायोटिक दवाएं जरूरी हो जाती हैं। वायरल संक्रमण में सदी, जुकाम, मोनोन्यूक्लियोसिस, नाक बहना, खसरा, चिकनपॉक्स सम्प्स, जिसमें गर्दन की ग्रंथियों में सूजन देखने को मिलती हैं आदि लक्षण दिखाई देते हैं। सामान्य सर्दी, जुकाम, आमतौर पर घरेलू उपचार से ठीक हो जाते है।

पानीः हर समय बनी रहने वाली खराश के पीछे पानी भी एक बड़ा कारण माना जाता है। कई लोगों को धुआँ, धूल और पालतू जानवरों से एलर्जी होती है। इनके संपर्क में आते ही नाक का जाम होना, आंखों से पानी आना, छींक आना और गले में बेचैनी होने लगती है। अगर, नाक में अधिक मात्रा में बलगम जमा है, तो यह गर्दन के पिछले हिस्से में भी जा सकता है। यह स्थिति पोस्टनडिय कहलाती है और इससे गले में जलन होने लगती है।

जीईआरडी: गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें पेट से निकलकर एसिड वापस ऊपर भोजन नलिका में आ जाता है। ऐसे में गले में खूब तेज जलन होती है और खराश रहने लगती है। यह एसिड फूड पाइप की लाइनिंग को भी काफी नुकसान पहुंचाता है और इसके चलते गले की खुश्की बढ़ने लगती है।

थायरॉइडः थायरॉइड गले में तितली के आकार की एक ग्रंथि होती है, जो गले के नीचे कॉलरबोन और वॉयसबॉक्स के बीच में स्थित होती है। यह ग्रन्थि शरीर के विकास मेटाबॉलिज्म दोनों को नियंत्रित रखती है। थायरॉइडाइटिस के कारण गले में खराश, सूजन व दर्द रहने लगता है। यह दर्द जबड़ों और कानों तक भी पहुंच जाता है। ऐसे में बाइरॉइड का उपचार कराना बहुत जरूरी हो जाता है।

धूम्रपानः सिगरेट के धुएं में मौजूद तर, कार्बन मोनोऑक्साइड, बेनजीन और ऑक्सीडेंट गैसे गले की समस्याओं को और बढ़ा देती हैं। यह तत्व फेफड़ों में संक्रमण रोकने वाले रेशों पर जम जाते हैं, इससे वे रेशे ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते और जल्दी संक्रमण बढ़ने लगता है। सिगरेट या बीड़ी का धुआं गले में मौजूद पतली झिल्ली को नुकसान पहुंचाता है, जिससे गले में सूखापन, जलन रहती है और रोगी की आवाज भी खुलकर नहीं आती है। इसके साथ ही धूम्रपान गले के कैंसर के खतरे को भी बढ़ाता है। सिगरेट के धुएं में मौजूद रसायन वोकल कोर्ड को भी नुकसान पहुंचाते हैं। खाने की नली की मांसपेशियों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे पेट का एसिड गले तक पहुंचकर जलन पैदा करता है।

अल्कोहल का सेवनः अल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन करना दांत और गले दोनों पर बुरा प्रभाव डालता है। अधिक टॉक्सिक होने के कारण गले की कोशिकाएं कमजोर होने लगती हैं। खराश और आवाज कर्कष होने लगती है। मुंह और गले में खुश्की बढ़ती है। शराब जीवित ऊतकों को मार देती है, जिससे जलन होती है। इसके अलावा शराब पीने से लेरिजोफेरीजल रिफ्लक्स नाम की समस्या होती है। इस समस्या में एसिड और एंजाइम पेट से गले की ओर बढ़ते हैं, जो गले की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचाता है।

शुष्क हवाः मुंह और गले से नमी को सोख लेती है। विशेष रूप से सर्दी के दिनों में हीटर चलने या हर समय एसी में बैठने के कारण और पानी कम पीने के कारण गले में खराश होने की समस्या बढ़ जाती है।

वायु प्रदूषणः गले में सांस के द्वारा हानिकारक धूल कण या गैसे शरीर के अंदर जाती हैं। इसके अलावा बहुत अधिक एयर फ्रेशनर या स्प्रे का इस्तेमाल भी गले में संक्रमण होता है।

हर समय तेज गर्म पानी न पिएं

वायरस एच३एन२ से होने वाले फ्लू के लक्षण इस बार ठीक होने में लंबा समय ले रहे हैं।

खासकर, गले में खराश व सूखी खांसी लंबे समय तक बनी हुई है। इस वायरस के कारण श्वसन तंत्र के ऊपरी मार्ग और कई बार फेफड़ों तक में भी सूजन आ जाती है। यह इसकी एलर्जिक और इंफ्लामेट्री प्रवृत्ति के कारण हो सकता है। ऐसे में जिन लोगों को दमा नहीं है, उनमें भी दमा जैसे लक्षण देखने को मिल रहे हैं। गले में संक्रमण या खराश होने पर आमतौर पर पांच से सात दिनों में आराम आ जाता है। लेकिन ऐसे में डॉक्टर से अवश्य ही सम्पर्क करें यदि-

  • घरेलू उपायों के अपनाने के उपरांत भी समस्या गंभीर होती जा रही है।

  • गले में सूजन व तेज दर्द है।

  • सास लेने में दिक्कत और मुंह खोलने में परेशानी हो रही है।

  • लगातार बुखार बना हुआ है।

  • बलगम के साथ खून आ रहा है।

इन बातों पर भी दें ध्यान

  • भीड़ वाली जगह जाने से बचें, हाथों की सफाई का विशेष ध्यान रखें, मास्क पहनें और घर के अंदर की हवा को शुद्ध बनाए रखें।

  • बाहर खुले में बिक रहे खाद्य पदार्थ या कम सफाई व खराब गुणवत्ता वाली चीजें का सेवन करना भी गले को नुकसान पहुंचाता है। विशेषरूप से तब, जब आपके शरीर की इम्युनिटी पहले ही वीक हो।

  • जिन लोगों को पहले से ही साइनस की समस्या है, उनमें बलगम गले में गिरता है। यह भी संक्रमण बढ़ा देता है और गले में खराश रहने लगती है।

  • गले की खराश और फ्लू होने पर तेज गर्म पानी की बजाए गुनगुना पानी का सेवन करें, परन्तु पूरे दिन गर्म पानी भी न पिए। सुबह, शाम और रात में गुनगुना पानी पीना ही पर्याप्त होता है। बाकी समय सामान्य तापमान का पानी पिएं। लंबे समय तक गर्म पानी पीना पेट की इम्युनिटी को कम कर देता है। ऐसे में जब भी बाहर का पानी पीते हैं तो गले के साथ पेट भी खराब हो जाता है।

  • गले की खराश के लिए चूसने वाली गोलिया, कुछ ही समय राहत देती है। इससे स्थायी आराम नहीं मिलता है। इससे बेहतर तो यह है कि आप गुनगुने पानी में नमक डालकर उससे गरारा करें। इसके अतिरिक्त स्वयं से कोई भी दवा या सिरप लेने से बचें। यदि आपको सूखी खांसी है, तो उसके लिए दूसरी तरह का सिरप लेना खांसी को और बढ़ा देता है। इसी तरह एंटीबायोटिक्स दवाओं का सेवन डॉक्टर की सलाह पर ही करें। बच्चों व बुजुर्गों के लिए विशेष सावधानी बरतना भी जरूरी है।

गले की सफाई का रखें ध्यानः दिन में दो बार ब्रश करें। खासकर, रात में मीठा खाने पर ब्रश जरूर करें। मीठी चीजें संक्रमण बढ़ाती हैं। कुछ भी खाने के बाद कुल्ला जरूर करें। ऐसे में आपका गला जितना साफ रहेगा, सक्रमण का खतरा उतना ही कम होगा।

राहत के लिए आयुर्वेद के नुस्खें

                                                        

आयुर्वेद के अनुसार गले की समस्याए कफ व पित्त के असंतुलन के प्रभाव से अधिक होती है। इस वजह से गले में जलन होती है। पानी तक निगलने में भी तकलीफ होती है। अदर से गला पूरा लाल हो जाता है। गला अधिक खराब होने पर जल्दी-जल्दी उपचार बदलना या सब कुछ एक साथ करने से भी बचना चाहिए।

  • सबसे पहले दिन भर में दो से तीन बार गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। इस पानी में मेथी दाना, एक चुटकी हल्दी भी डाल सकते हैं।

  • एक कप पानी में थोड़ा सा अदरक, दो काली मिर्च, दो लौंग और तीन-चार तुलसी के पत्ते डालकर उबाल लें। इसे शहद मिलाकर गुनगुना पिएं। ऐसा दिन में तीन-चार बार करें।

  • लौंग मुह में रखकर चूसें। गला फंसा हुआ है. सूख गया है तो आधा चम्मच मुलैठी पाउडर एक कप गर्म पानी के साथ पिएं।

  • गले में जख्म जैसा लग रहा है, तो देसी घी में मुलेठी मिलाकर उसे चाटें।

  • त्रिकूट चूर्ण, सीट, काली मिर्च और पीपली इन तीनों को सुबह और शाम शहद के साथ लें। शहद बलगम के प्रकोप को कम करता है।

  • बलगम अधिक है तो दूध व दूध से बनी चीजें न लें। हल्दी गुनगुने पानी में मिलाकर पिएं।

  • सोतोप्लादि चूर्ण बलगम और खासी-जुकाम में अच्छा काम करता है। इसमें शहद मिलाकर नियमित चटनी बनाकर चाटें।

लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।