हकलाने और तुतलाने की समस्या का अयुर्वेदिक समाधान      Publish Date : 12/02/2025

         हकलाने और तुतलाने की समस्या का अयुर्वेदिक समाधान

                                                                                                                                                      डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

अधिकतर बच्चे छुटपन में तुतलाते हैं और आगे सही बोलने लगते हैं। लेकिन कई बच्चे बड़े होकर भी तुतलाते रहते हैं। इसी तरह हकलाहट की समस्या भी अक्सर बच्चे के विकास में बाधक बनती है। हकलाने और तुतलाने से कैसे पाएं निजात, हमारे एक्सपर्ट्स बता रहे हैं इसके समाधान-

बहुत से लोग ऐसे है जो इस समस्या से उबरने के बाद प्रसिद्व हुए हैं जैसे कि ब्रिटिश लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, साइंटिस्ट आइजक न्यूटन, ग्रीक फिलॉसफर अरस्तू को भी बोलने के लिए शब्द नहीं मिलते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी इस कमजोरी पर काबू पाकर अपने लिए अलग मुकाम बनाया।

वैसे हकलाने या तुतलाने की समस्या बेहद आम है लेकिन ज्यादातर मामलों में इसका इलाज मुमकिन है। आरना 5 साल की हो गई लेकिन बाकी बच्चों की तरह वह साफ नहीं बोल पाती, वह तुतलाती थी। क्लास में बच्चे उसका मजाक उड़ाते थे, इसलिए वह स्कूल भी नहीं जाना चाहती। आरना की मम्मी उसे चाइल्ड स्पेशलिस्ट की सलाह पर स्पीच थेरपिस्ट के पास लेकर गईं। 3 महीने के अंदर ही आरना करीब-करीब साफ बोलने लगी। 21 साल के मोहनीश जब बहुत खुश होते हैं तो उनकी जबान लड़खड़ाने लगती है। उन्होंने अपनी इस कमी को दूर करने की ठानी और शीशे के सामने खड़े होकर धीरे-धीरे बोलने की प्रैक्टिस करने लगे।

कुछ ही महीनों में उन्होंने अपने आप में काफी सुधार पाया। इसी तरह 5 साल का अविरल अक्सर हकलाता था। पैरंट्स उसे सायकॉलजिस्ट के पास लेकर गए। काउंसलिंग में पता चला कि घर में पैरंट्स में झगड़ा काफी होता था। इससे अविरल की पर्सनैलिटी का सही विकास नहीं हो पा रहा था। धीरे-धीरे काउंसलिंग से अविरल पूरी तरह ठीक हो गया।

एक्सपर्ट्स के अनुसार, हकलाने और तुतलाने के करीब 80-90 फीसदी मामलों को कोशिशों से पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। तुतलाने या हकलाने से बच्चों और बड़ों, दोनों में आत्मविश्वास कम होने लगता है। वे अपने मन के भावों को बोलकर जाहिर करने से बचने लगते हैं। बेहतर है कि छुटपन में ही इसका इलाज कराएं। आमतौर पर बच्चा 3-4 साल की उम्र तक साफ बोलने लगता है। ऐसा न हो तो बच्चों के डॉक्टर (पीडियाट्रिशन) को दिखाएं। अगर इलाज जल्दी शुरू किया जाए तो सुधार के चांस ज्यादा होते हैं, क्योंकि इस उम्र में थेरपी अच्छा असर करती है।

कैसे होती है जांच

बच्चे के बोलने से बीमारी का अंदाजा लग जाता है। बच्चे का उच्चारण सुनने (आर्टिकुलेशन टेस्ट) के अलावा उसकी सुनने की क्षमता की जांच की जाती और मुंह व जीभ की बनावट भी चेक करते हैं। नवर्स सिस्टम की समस्या है तो MRI करके दिमाग की स्थिति चेक की जाती है। MRI का खर्च तकरीबन 6000 रु. होता है।

तुतलाने और हकलाने में है अंतर

                                                                     

तुतलाने और हकलाने के इलाज के लिए आमतौर पर दवाएं नहीं दी जातीं, सारा दारोमदार थेरपी पर रहता है। जरूरत पड़ने पर सर्जरी भी की जाती, मतलब यदि जीभ की शेप और साइज गड़बड़ है तो सर्जरी की जाती है हालांकि, ऐसा बहुत ही कम मामलों में होता है।

हकलाना

रुक-रुक कर बोलना, एक ही शब्द को बार-बार बोलना, तेज बोलना, बोलते हुए आंखें भींचना, होठों में कंपकपाहट होना, जबड़े का हिलना आदि।

तुतलाना

उच्चारण की समस्या होना और साफ नहीं बोल पाना। ‘र’ को ‘ड या ‘ल’ बोलना आदि।

इसके कारण क्या है

हकलाना

  • बोलने में काम आनेवाली मसल्स व जीभ पर कंट्रोल न होना।
  • जनेटिक कारण, मसलन यदि पैरंट्स को परेशानी है तो बच्चों में होने की आशंका होती है।
  • न्यूरोलॉजिकल कारण, यानी दिमाग के लेफ्ट साइड में कुछ गड़बड़ी होना।
  • इन्वाइरन्मेंटल कारण, यानी किसी खास सिचुएशन में हकलाना मसलन फोन पर या इंटरव्यू में या फिर किसी का नाम या एड्रेस पर या फिर किसी इंसान को देखकर आदि।
  • नर्वस या एक्साइटमेंट होने पर जीभ से कंट्रोल खोना।
  • टेंशन, कमजोरी, डर, थकान या अपसेट होने पर भी हकलाहट बढ़ जाती है।

तुतलाना

  • टंग टाई यानी जीभ का नीचे ज्यादा चिपके रहना।
  • सुनने में दिक्कत से सही शब्द नहीं समझ पाना।
  • आईक्यू कम होना।

आदतन, अक्सर जब बच्चा तुतलाकर बोलता है और बड़े लोग भी प्यार में वैसे ही बोलने लगते हैं तो बच्चे और ज्यादा तुतला कर बोलने लगते है।

खुद कैसे करें सुधार

माता पिता करें सहायता

बच्चा अगर तोतला बोलता है तो उसकी कॉपी बिल्कुल न करें। कई बार लोग प्यार में ऐसा करने लगते हैं और बच्चे को लगता है कि ऐसा करना अच्छा है। फिर धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन जाती है।

टीचर्स कई बार तुतलाने वाले बच्चे को ज्यादा अटेंशन देते हैं, जिसे देखकर दूसरे बच्चे भी वैसे ही बोलने की कोशिश करने लगते हैं। टीचर सभी बच्चों के साथ एक जैसा बर्ताव करें।

बच्चे को दूसरों की बातें गौर से सुनने को कहें। उसे सही से सुनने की आदत होगी, तभी वह सही बोलने की कोशिश भी करेगा।

पहले बच्चे को एक शब्द बोलने को कहें। जब उसे सही तरीके से बोलने लगे, तब दूसरा शब्द सिखाएं।

कोशिश करें कि बच्चे को हकलाने के बारे में चिंतित न किया जाए। पैरंट्स अपने बच्चे के हकलाने को लेकर परेशान हो जाते हैं और बच्चे को भी कॉन्शस कर देते हैं। इससे बच्चे के विकास पर उलटा असर पड़ता है।

बच्चे की बातें काटे बिना धीरज से सुनें। बच्चा जब हकलाता है, तब बीच में टोके नहीं। उसे अपनी बात पूरी करने दें, उस पर झुंझलाएं नहीं।

बच्चे को यह लगना चाहिए कि आप उसकी प्रॉब्लम को समझ सकते हैं और उसका हिस्सा हैं। रोजाना बच्चे के लिए अलग से टाइम निकालें। उसके साथ बैठें, खेलें और उसे प्यार से समझाएं।

बच्चा जब भी बोले, उस पर ध्यान दें। हालांकि हमेशा उसी पर ध्यान लगाए रखें, यह भी सही नहीं है। इससे उसे फिजूल अटेंशन की आदत बनती है।

उसकी तारीफ करें। ‘वाह, क्या बात है!’ की बजाय ‘वाह, तुमने कितनी मदद की’ जैसे वाक्य बोलें।

स्पीच थेरपी

                                                           

आमतौर पर तुतलाने का इलाज घर पर ही किया जा सकता है, क्योंकि अक्सर इसका कारण आदत होती है। बच्चे के साथ सही उच्चारण में बात करके और उसका भरोसा जीतकर इस समस्या से छुटकारा दिलाया जा सकता है। फिर भी अगर बच्चा 4-5 साल की उम्र में भी तुतलाए तो स्पीच थेरपिस्ट की मदद लेनी चाहिए। इसी तरह हकलाने की समस्या के लिए भी 4-5 साल की उम्र में स्पीच थेरपिस्ट की मदद ले सकते हैं। स्पीच थेरपिस्ट देखते हैं कि अगर एक पैरा में 160-180 तक ब्लॉक (रुकावटें) हैं तो बच्चे को समस्या है और इलाज की जरूरत है। अगर इससे कम ब्लॉक हैं तो इलाज की जरूरत नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए रिलैक्सेशन और एयरफ्लो एक्टिविटी (बोलते वक्त सांस लेने का तरीका) के अलावा काउंसिंग भी कराते हैं।

स्पीच थेरपी के एक सेशन के लिए करीब 500-600 रुपये चार्ज किए जाते हैं। वैसे कुछ बड़े सरकारी अस्पतालों में यह थेरपी फ्री या बहुत कम कीमत में भी होती है। हफ्ते में 30-45 मिनट के 2-3 सेशन होते हैं। आमतौर पर 10-15 सेशन में फर्क दिखने लगता है लेकिन कई बार समय अधिक भी लग जाता है। ऐसे में नतीजे से लिए परेशान न हों, न ही थेरपिस्ट पर दबाव डालें। स्पीच थेरपिस्ट पैरंट्स, टीचर्स और बच्चे के दोस्तों तक से बात करके तकनीकें सिखाते हैं, ताकि मरीज को अपने आसपास के लोगों से सहायता और समझदारी मिल सके।

जिन बच्चों को साथ में बिहेवियरल दिक्कतें (होंठ चबाना, नाक-कान में उंगली डालना, आंखें घुमाना आदि) भी होती हैं, उन्हें सायकायट्रिस्ट की मदद से बिहेवियरल थेरपी दी जाती है।

यूं तो हकलाने का सबसे अच्छा इलाज स्पीच थेरपी और कुछ मामलों में सर्जरी है लेकिन आयुर्वेद में भी कुछ चीजों को असरदार पाया गया है। अणु तैल या षडबिंदु तैल के नस्य और दूध के नियमित सेवन के अलावा कल्याणक अवलेह, सारस्वत चर्ण, सारस्वत घृत, सारस्वतारिष्ट, कल्याणक घृत, ब्राह्मी घृत, कुमार कल्याण रस, रास्नादि क्वाथ, वचादि योग, अश्वगंधा तैल आदि का इस्तेमाल इस समस्या में मददगार होता है। दवाएं मरीज की उम्र और समस्या के अनुसार दी जाती हैं।

नर्व्स की समस्या है हकलाने का कारण

अक्सर इसका कारण न्यूरोलॉजिकल होता है यानी दिमाग की वाइरिंग में गड़बड़ी के चलते समस्या होती है।

तनाव व घबराहट में भी हकलाते हैं लोग

                                                             

यह सही है कि घबराहट में कई लोग हलकाने लगते हैं लेकिन यह भी सच है कि अगर किसी के सामने बहुत अधिक रिलैक्स हो जाएं तो भी लोग हकलाने लगते हैं क्योंकि उन्हें वहां कंफर्ट लगता है कि वे जैसे हैं, वैसे रह सकते हैं। दोनों ही स्थितियां हलकाने का कारण बन सकती हैं। माना जाता है कि हकलाने का कोई इलाज नहीं है? लेकिन हकलाने का इलाज सम्भव है लेकिन थोड़ा समय लग सकता है।

स्पीच थेरपी इसका सबसे ज्यादा असर कम उम्र में होता है इसलिए हकलाने वाले बच्चे को 5 साल की उम्र तक थेरपी करा देनी चाहिए। बाद में स्पीच थेरपी कराने असर कम होता है।

कुछ घरेलू तरीके

  • प्रतिदिन हरे या सूखे आंवले के चूर्ण का सेवन भी लाभदायक हो सकता है।
  • एक चम्मच मक्खन के साथ रोजाना 5-6 बादाम का सेवन करें।
  • एक चम्मच मक्खन में एक चुटकी काली मिर्च मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें।
  • 10 बादाम, 10 काली मिर्च, मिश्री के कुछ दानों को एक साथ पीस कर 10 दिन तक सेवन करें।
  • दालचीनी के तेल की मालिश जीभ पर करने से मोटी जीभ में लाभ होता है।
  • सोने से पहले 2 छुहारे खाएं और दो घंटे तक पानी न पिएं।

लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।