हृदय रोगी मां के बच्चे भी बन रहे दिल के मरीज Publish Date : 21/02/2024
हृदय रोगी मां के बच्चे भी बन रहे दिल के मरीज
उपचार से पहले माता-पिता की स्क्रीनिंग में मिली जानकारी
डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
डायबिटीज, हृदय रोग, गर्भधारण के समय होने वाला वायरल संक्रमण और देर से शादी करने वाली महिलाओं के बच्चों को दिल की बीमारियां तेजी से अपनी चपेट में ले रही हैं। जन्मजात दिल में छेद, वॉल्व चैम्बर की बनावट में विकृति- नसें सिकुड़ने की दिक्कत वाले लगभग 50 बच्चे रोजाना पीजीआई की ओपीडी में भी आ रहे हैं। इन बच्चों का उपचार शुरू करने से पहले इनके माता-पिता की स्क्रीनिंग के माध्यम से यह तथ्य सामने आए हैं।
डपचार में विलम्ब बनती है जानलेवा : कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. नवीन गर्ग के अनुसार नवजातों बच्चों में दिल की समस्याएं जन्मजात ही होती हैं। इनमें दिल में छेद होना, वॉल्व और चैम्बर में बनावटी विकार के अलावा कुछ बच्चों में वॉल्व उपलब्ध ही नहीं होते हैं। नसें संकुचित होने से इन बच्चों के दिल पर दबाव पड़ता है और हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। बीमारी जल्द पकड़ आने पर सही उपचार से ये बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं, देरी की सूरत में इन्हें बचाना भी मुश्किल हो सकता है।
आनुवांशिक होती है दिल की बीमारी : डॉ. नवीन गर्ग ने बताया कि केवल उत्तर प्रदेश में हर साल औसतन 40 हजार बच्चों में हृदय रोगों की पहचान होती है। इनमें पांच फीसदी में यह बीमारियां आनुवांशिक होती हैं।
उम्र के साथ भर जाते हैं छोटे छेद
पीजीआई के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अंकित साहू ने बताया कि संस्थान की ओपीडी में हर हफ्ते 50 बच्चे दिल की बीमारी के कारण आते हैं। इनमें आधा दर्जन नए बच्चे होते हैं। यह एक दिन से लेकर 13 साल के होते हैं। इनके दिल में छेद, वाल्व में खराबी, दिल की मांसपेशियों में सूजन और कुछ में आनुवांशिक कारण भी होते हैं। दिल में छोटे छेद बिना किसी उपचार के ही उम्र बढ़ने के साथ भर जाते हैं।
50 से अधिक दिल के रोगी बच्चे पीजीआई ओपीडी में हर हफ्ते आ रहे हैं।
40 हजार के लगभग प्रदेश के बच्चों में हो रही है हृदय रोग की पहचान।
लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।