सेहत के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन घातक Publish Date : 11/02/2024
सेहत के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन घातक
डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
कारगर साबित नही हो रही है 90 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं
वर्तमान में एंटीबायोटिक दवाओं ने काम करना बंद कर दिया है और 90 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो रही है वैसे भी इन दवाओं के काम करने की अन्तिम सीमा वर्ष 2020 तक ही थी। इन दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग का घातक नतीजा यह है कि फिलहाल क्रिटिकल कंडीशन वाले मरीजों के लिए भी एंटीबायोटिक दवाएं पर्याप्त नहीं हैं। अब इनके बाकी बचे 10 प्रतिशत से जैसे-तैसे कम चलाया जा रहा है।
हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार देश में बीते 10 सालों में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग प्रति व्यक्ति 30 प्रतिशत तक बढ़ा है।
पेशाब के सामान्यतौर पर होने वाले संक्रमण के दौरान भी इनका ही प्रयोग किया जा रहा है। तो वहीं जुकाम और खांसी का 95 प्रतिशत कारण वायरल होता है जिसमें एंटीबायोटिक दवा देने की कोई जरूरत ही नहीं है।
ठीक इसी प्रकार से बुखार अथवा तेज ज्वर के पीछे भी 70 प्रतिशत वायरल ही अहम कारण होता है। इसी प्रकार डायरिया या बुखार के साथ डायरिया की समस्या में भी एंटीबायोटिक दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं होती है। यह दिक्कतें सावधानी बरतने पर 3 दिन में अपने आप ही ठीक हो जाती है। लेकिन यदि यह तब भी ठीक नहीं होते हैं तो डॉक्टर के लिखने पर ही एंटीबायोटिक दवाओं को लेने की आवश्यकता होती है।
जल्द ही आ रहा है नेशनल एक्शन प्लान 2.0
अब जल्द ही एंटीबायोटिक दवाओं के गलत प्रयोग को रोकने और सही तरह से इस्तेमाल करने के लिए केंद्र सरकार ने एक गाइडलाइन तैयार की है। आईसीएमआर के द्वारा आईसीयू के लिए विशेष गाइडलाइन तैयार की गई है। अब इन दोनों को मिलाकर नेशनल एक्शन प्लान 2.0 जल्द ही आने वाला है।
वर्ष 2019 में हुई थी 13 लाख लोगों की मौत
कोविड के आने से पहले एंटीबायोटिक दवाओं को बेसर करने वाले पैथोजन, चिंता का विषय बन चुके थे। लेकिन महामारी के बाद एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग कई गुना बढ़ गया है। गौरतलब है कि इस संक्रमण के चलते पूरी दुनिया में 13 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
बेअसर होती एंटीबायोटिक दवाओं के पांच बड़े हैं कारण-
1. डायग्नोसिसः अधिकतर लोग जांच के बिना ही एंटीबायोटिक दवा लेते हैं। यह जाने बिना कि संबंधित रोग में इसकी जरूरत है भी या फिर नहीं।
2. जल्दबाजीः मरीज जल्दी से ठीक हो जाए, इसके चलते तीमादार भी डॉक्टर्स पर दबाव डालते हैं और फिर डॉक्टर भी मजबूरी में एंटीबायोटिक दवाएं ही लिख देते हैं।
3. फार्मा कंपनीजः डॉक्टर्स पर केमिस्ट एवं फार्मा कंपनी का दबाव होता है और वह इनके टारगेट को पूरा करने के लिए डॉक्टर को लालच भी दिया जाता है।
4. ओवर द काउंटर सेलः इन दवाओं का सीधे केमिस्ट से ही मिलना और एक बार बिक्री हो जाने के बाद मरीज स्वयं ही खरीद कर इनका प्रयोग करते हैं।
5. खान-पानः विभिन्न कृषि उत्पाद, फिशरी, मीट और सब्जियां आदि में भी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग में बहुत वृद्वि हुई है।
इस सब में सबसे चिंताजनक तो यह है कि आईसीएमआर की सितंबर 2022 में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार कई बैक्टीरियल संक्रमणों में कार्बोपेनिस दवाई अब बेअसर साबित हो रही हैं।
खुलासाः बिना स्वीकृति के बिकी 47.01 प्रतिशत दवाइयां
द लैन्सेट के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत के निजी क्षेत्र में लगभग 47.5 प्रतिशत एंटीबायोटिक फॉर्मूलेशन बिना स्वीकृति वाले थे। इस दौरान गले में खराश को खत्म करने वाली एक प्रचलित टैबलेट का 500 एमजी फार्मूला सबसे ज्यादा बिका। तो वहीं दूसरे नंबर पर मूत्र मार्ग, टॉन्सिल, फेफड़े, नालियां, कान के दर्द में काम आने वाली एक प्रचलित टैबलेट का 200 एमजी फार्मूला भी ऐसा था जो कि काफी बिका।
लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।