
बायोसिमिलर्स का बढ़ता वैश्विक बाजार Publish Date : 20/05/2025
बायोसिमिलर्स का बढ़ता वैश्विक बाजार
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
‘बायोसिमिलर’ या ‘समान जैव-औषधीय उत्पाद’, किसी पहले से लाइसेंस प्राप्त दवा के समान सक्रिय गुण रखने वाले बायोफार्मास्युटिकल दवा का द्योतक हैं। यह लाइसेंस प्राप्त मूल प्रवर्तक (Innovative) उत्पाद या सन्दर्भ उत्पाद के तकरीबन समान प्रतिलिपि होते हैं, जो किसी भिन्न कम्पनी द्वारा निर्मित होते हैं। बायोसिमिलर आधिकारिक तौर पर मूल जैव-चिकित्सकीय उत्पादों के ही स्वीकृत संस्करण होते हैं तथा मूल उत्पाद के पेटेंट की समय-सीमा की समाप्ति के उपरान्त औषधि निर्माण प्राधिकारी से अनुमोदन लेकर विनिर्मित किये जाते हैं।
तकनीकी समझ जेनरिक दवाओं के सामान्य छोटे-अणु प्रकार की तुलना में बायोसिमिलर उच्च आण्विक जटिलता प्रदर्शित करते हैं, जो विनिर्माण प्रक्रियाओं में बोड़े से फेर-बदल के प्रति भी अत्यंत संवेदनशील होते हैं। सामान्यतया, बायोसिमिलर बनाने वाले अनुगमनकारी निर्माताओं की पहुँच मूल बायोफार्मास्युटिकल के आण्विक क्लोन अथवा मूल कोशिका तक नहीं होने से वे उनके सटीक किण्वन, शुद्धिकरण आदि बातों से अनभिज्ञ होते हैं। अतः वे नवाचारयुक्त उत्पादों का ही वाणिज्यिक उत्पादन करते हैं।
रासायनिक रूप से उत्पादित किये गए जेनेरिक दवाओं के विपरीत, बायोसिमिलर के अणु मूल उत्पाद के बिलकुल समरूप नहीं होते। वायोसिमिलर नाम का प्रयोग उन जैव-चिकित्सा उत्पादों (बायोफार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स) को छोटे-अणुओं वाले जेनेरिक दवाओं से भिन्न बनाने हेतु किया जाता है।
मानव आनुवंशिक क्लोनिंग और कृत्रिम परिवेशीय (in-vitro) जैव--उत्पादन प्रणालियों में आनुवंशिक पदार्थ डी. एन. ए. (डीऑक्सीराइबोन्यूक्तिक एसिड) के पुनर्संयोजन से न केवल दवा-निर्माण प्रक्रिया में काफी मदद मिल सकी है, वरन् जीव तथा कोशिका आधारित चिकित्सा पद्धतियों को भी नूतन आयाम प्राप्त हो सके हैं।
आज किसी पुनर्सयोजित दवा को उसके पेटेंट की समाप्ति के बाद कोई अलग बायोटेक कंपनी उस दवा के बायोसिमिलर का उत्पादन और विपणन कर सकती है। यहां यह तथ्य भी समझ लेना आवश्यक है कि प्रत्येक बायोफार्मास्युटिकल उत्पाद के एक ही प्रकार के उत्पाद भिन्न-भिन्न बैचों में अपने उत्पादन के उपरांत एक निश्चित सीमा तक परिवर्तनशीलता प्रदर्शित करते हैं, जो उसकी अन्तर्निहित परिवर्तनशीलता अथवा विनिर्माण प्रक्रियाओं में मामूली से अन्तर कारण भी हो सकती है।
बायोसिमिलर औषधियों का विनियमन
इन बायोसिमिलर उत्पादों का विश्व के विभिन्न देशों के औषध उद्योगों पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ते हुए देखा जा रहा है, जहाँ इस प्रकार के उत्पादों के त्वरित अनुमोदनों से प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गयी है। इन्हीं उत्पादों की बदौलत आज अनेकों गंभीर मानवीय विकारों हेतु आवश्यक वैकल्पिक दवाएं अपेक्षाकृत कम मूल्यों पर भी उपलब्ध हो रही हैं। दुनिया भर के औषधि नियामक प्राधिकारी वर्गों के पास इस प्रकार के एक से अधिक उत्पादों की परख हेतु अपने अपने मार्गदर्शक तथ्यों की कसौटियां हैं, जो उनके प्रमाणीकरण के लिए अपेक्षित होती हैं। दवा विनियमन के सुपरिचित प्राधिकारी एजेंसियों में संयुक्त राज्य अमरीका के खाद्य एवं औषधिच प्रशासन (Food and Drug Administration-FDA) , यूरोपियन एसोसिएशन के यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ई.एम.ए.), कनाडा के हेल्थ प्रोडक्ट्स एंड फूड ब्रांच ऑफ हेल्थ आदि प्रमुख है, जो बायोसिमिलर उत्पादों के निरापद होने की परख के साथ-साथ उनके गुणकारिता की भी जांच करते हैं।
किसी भी प्रकार के सन्दर्भ उत्पाद अपनी विनिर्माण प्रक्रियाओं में कई तरह के परिवर्तनों का सामना करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं, जैसे कोशिका-संवर्धन माध्यम के अलग-अलग आपूर्तिकर्ताओं से लेकर नए-नए शुद्धिकरण प्रणालियों को अपना लेना अथवा भिन्न-भिन्न विनिर्माण स्थलों का चयन कर लेना आदि। जबकि, (बायोसिमिलर के लिए गैर-नैदानिक व नैदानिक (non-clinical and clinical) दोनों ही परीक्षण किया जाना अनिवार्य होता है। उन्हें प्रभावकारिता, सुरक्षा और प्रतिरक्षाजनत्व (imunogenecity) के सन्दर्भों में नैदानिक मॉडल (clinical model) और फार्माडाइनेमिक्स (PK) और फार्माडाइनेमिक्स (PD) के बीच के अंतर का भी पता लगाने में सक्षम दिखने की अपेक्षा की जाती है। ज्ञातव्य है कि फार्माडाइनेमिक्स (PID) जीव पर किसी दवा का प्रभाव, जबकि फामाकोकाइनेटिक्स (PK) किसी जीव का दवा पर प्रभाव देखे जाने की विधाएँ हैं।
यूरोपीय नियामक अधिकारियों ने बायोसिमिलर्स के बाद के संस्करणों को निर्माण हेतु अधिकृत करने से पूर्व उन्हें मूल उत्पादों की गहन तुलनात्मकता कसौटी पर श्रेष्ठ प्रदर्शन को आधार बनाया है। इसी प्रकार, संयुक्त राज्य अमरीका के खाद्य और औषधि प्रशासन (एफ. डी. ए.) ने भी इस आशय के नए कानूनी प्रावधानों की अपेक्षा की क्योंकि मूलतः लोक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम के तहत ही बायोसिमिलर्स को अनुमोदित किया जाता रहा है। एफ. डी. ए. ने बायोसिमिलर के निर्माण के सन्दर्भों में अनेकानेक सार्वजनिक बैठकें की और उसने अंततः 23 मार्च 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा हस्ताक्षरित रोगी संरक्षण एवं वहन-योग्य देखभाल अधिनियम (Patient Protection - Affordable Care Act) के रूप में बायोसिमिलर्स (प्रतिस्थापन योग्य सन्दर्भ-उत्पादों सहित) को मंजूरी देने का अधिकार प्राप्त किया।
संयुक्त राज्य अमरीका में एफ.डी.ए. ने पहले-पहल मार्च 2015 में ‘जरेक्सियों’ नामक बायोसिमिलर उत्पाद बनाने की मंजूरी दी थी। सैण्डोज कम्पनी का ‘जेरेक्सिओ’ जो एमजेन कम्पनी के ‘नेपीजेन’ का बायोसिमिलर था, इस अधिनियम के तहत बनाया जाने वाला पहला बायोसिमिलर था। नेपोजेन को मूल रूप से वर्ष 1991 में विनिर्माण का लाइसेंस प्राप्त हुआ था। जेरिक फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के कुछ हालिया विश्लेषणात्मक अध्ययनों के अनुसार बाजार में बायोसिमित्तर उत्पादों का बढ़ता प्रवेश आगामी एक दशक के भीतर सी अरच डालर से भी अधिक की बचत कर सकता है।
सामान्यतः एफ.डी.ए. द्वारा एक बार बाजार में दवा विनिर्मुक्त किये जाने के उपरांत उस दवा को प्रथम दो वर्षों तक प्रत्येक छः महीने पर तथा तीसरे वर्ष से सालाना तौर पर पुनर्मूल्यांकन की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
बायोसिमिलर उत्पादों को अपने सन्दर्भ उत्पादों की ही तरह औषध-निगरानी (pharma-covigilance) की प्रक्रियाओं से भी रूबरू होना पड़ता है। यूरोपियन मेडिकल एजेंसी (ई.एम.ए.) द्वारा अनुमोदित बायोसिमिलर्स के विनिर्माताओं के लिए बायोसिमिलर के बाजार में आने के बाद, उसका न केवल जोखिम प्रबंध योजना जमा करना अपरिहार्य कर दिया गया है, वरन् उन्हें नियमित रूप से उसके सुरक्षित होने के विषय में अद्यतन रिपोर्ट भी प्रस्तुत करते रहना होता है।
बायोसिमिलर्स के गैर-मालिकाना नामकरण हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एफ. डी.ए. संयुक्त रूप से कार्य किया तथा अगस्त 2015 में एफ.डी.ए. ने इस आशय का एक दिशा-निर्देश-मसौदा भी प्रकाशित किया है।
बायोसिमिलर की मंजूरी लागत बचाने में खासा मदद कर सकती हैं। जैविक मूल्य प्रतियोगिता और नवाचार अधिनियम 2009 (Biological Price Competition and Innovation-BPCI Act 2009) के अंतर्गत यह प्रावधान रखा गया कि यदि आंकड़ों से यह पता चले कि कोई जैविक उत्पाद पूर्व से अनुमोदित मूल उत्पाद जैसे गुणों का है तो उसे बायोसिमिलर होने का दर्जा तभी दिया जा सकता है, जब वह मूल उत्पाद के ही स्तर का प्रभावकारी और सुरक्षित हो।
संयुक्त राज्य अमरीका में मार्च 2019 वहां के सीनेटर्स के एक समूह ने बायोलॉजिक पेटेंट ट्रांसपेरेंसी एक्ट बनाने हेतु एक बिल भी प्रस्तुत किया है, जिससे पेटेंट पारदर्शिता जाने के साथ-साथ बायोसिमिलर्स के निर्माण की प्रतिस्पर्धा बढ़ने की भी उम्मीद जताई जा रही है और इस प्रकार, उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत कम दामों में दवाइयां मिल सकेंगी।
नीतियों के विचार-मंच (Think-tank) के रूप में कार्य कर रहे रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट कॉपोरेशन (R and Dovelopment Corporation) की एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अकेले संयुक्त राज्य अमरीका में बायोसिमिलर्स के आ जाने से अगले एक दशक में, लगभग 54 बिलियन डालर के खर्च में कमी आएगी।
सन्धिवात गठिया (Rheumatoid Arthritis) और कैंसर जैसे रोगों के उच्च स्तर के इलाज में काम आ सकने वाले हाल के बायोसिमिलर दवाओं द्वारा इन रोगों में होने वाले अनियंत्रित व्यय पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा, किन्तु तकनीकी रूप से इन बायोसिमिलर्स का चिकित्सकीय उपयोग सोच-समझकर किये जाने की जरूरत है। वर्ष 2016 में, यूरोपियनलीग अगेंस्ट रयूमेटिज्म (European League Against Rheumatism) वार्षिक सम्मलेन में प्रस्तुत किये गए एक शोध-अध्ययन के अनुसार इफ्लिक्सिमैथ द्वारा गठिया के जैव-चिकत्सा के दरम्यान रोगी के शरीर में एंटीबाडी पनपते हैं। आगे चलकर यदि इफ्लिक्सिमैव के बायोसिमिलर किसी नयी दवा से उसका इलाज प्रतिस्थापित किया जाता है, तो यह पनप चुके एंटीबाडीज उस दवा के प्रति प्रतिकार करने लगते है तथा बायोसिमिलर के प्रति अनुक्रिया असफल हो जाती है। अतः मूल दवाओं के प्रतिस्याषित बायोसिमिलर्स से की जाने वाली चिकित्सा पा आगे भी शोध होते रहना आवश्यक है, जिससे किसी संभावित नुकसान से बचा जा सके।
वर्ष 2013 में चायोसिमिलर का वैश्विक बाजार 13 बिलियन डालर का था। आगामी एक वर्ष में (2020 तक), दस नामी दवाओं के पेटेंट की समाप्ति के उपरान्त यह बाजार 35 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
स्तन कैंसर के उपचार में काम आने वाली ‘रोशे’ कम्पनी द्वारा निर्मित दवा हरसेप्टिन का भी बायोसिमिलर ‘ट्रास्टुजुमेब’ नाम से तैयार किया गया है। ‘ट्रास्टुजुमेब’, बायोकॉन और मायलान दवा कंपनियों ने संयुक्त रूप से विकसित किया है, इसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से भी भारत में मार्केटिंग करने का अनुमोदन दिया गया है तथा इसने अब तक देश में 2.10 करोड़ डॉलर का कारोबार भी कर लिया है।
आम जनता को सस्ते इलाज के विकल्य मुहैया कराने के लिए स्वास्थ्य देखभाल संस्थाओं की ओर से नयी औषधि के निर्माताओं को प्रोत्साहन (incentives) देकर विनिमांग प्रक्रियाओं को तेज करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं की वहन-क्षमताओं के बीच एक तालमेल बनाए रखने की भी जरूरत है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।