बच्चों के लिए जीवन रक्षक है रूटीन टीकाकरण      Publish Date : 14/04/2025

        बच्चों के लिए जीवन रक्षक है रूटीन टीकाकरण

                                                                                                               डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

विभिन्न प्रकार के टीके, बच्चों के जीवन का ऐसा सुरक्षा चक्र है, जिसे लगाने से बच्चे टीबी, पोलियो, हेपेटाइटिस बी, डिप्थीरिया, खसरा सहित कई घातक बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं। कोरोनाकाल में टीकाकरण कुछ प्रभावित जरूर हुआ था, लेकिन अगर देर हो गई है तो भी बच्चे का टीकाकरण अवश्य करवाएं।

दो बूंद जिंदगी की, चार शब्दों के इस नारे ने भारतीय जनमानस को इस तरह झकझोरा कि पोलियो जैसी घातक बीमारी देश में जड़ से खत्म हो गई। टीका चिकित्सा विज्ञान का ऐसा चमत्कार है, जिससे संक्रामक बीमारियों को न सिर्फ काबू में किया जा सकता है, बल्कि उन्हें मिटाया भी जा सकता है। कोरोना के दौर में बच्चों का रूटीन टीकाकरण अभियान कुछ प्रभावित जरूर हुआ था, लेकिन इसे रुकने नहीं दिया गया, बल्कि इसे पहले की तरह ही प्रभावी ढंग से जारी रखा गया। टीका बच्चों के जीवन का ऐसा सुरक्षा चक्र है, जिसे लगाने से बच्चे टीबी, पोलियो, हैपेटाइटिस ची, डिप्थीरिया, खसरा सहित कई घातक बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं। इसलिए टीका जिंदगी बचाने के लिए विज्ञान की सबसे बड़ी खोज में से एक है।

लगभग एक दर्जन बीमारियों के टीके लगाए जा रहे हैं:

                                                   

देश में टीकाकरण का अभियान का इतिहास बहुत पुराना है। पहले छह बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को टीके लगाए जाते थे। इसके तहत टीबी से बचाव के लिए बीसीजी का टीका, डिप्थीरिया, काली खांसी व टिटनेस से बचाव के लिए डीपीटी का टीका लगता था। बाद में इस अभियान में पोलियो, हेपेटाइटिस बी, टाइफोइड, हीमोफिलस इंफ्लुएंजा टाइप बी, रूबेला, डायरिया इत्यादि के टीके भी शामिल होते चले गए। मौजूद समय में मिशन इंद्रधनुष अभियान के तहत करीब एक दर्जन बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को टीके कोरोना संक्रमण शुरू होने के बाद लॉकडाउन संलगन पर अस्पतालों में ओपीडी बंद हो गई थी, सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं संचालित हो रही थी।

संक्रमण से बचाव के लिए लोग भी घर से ज्यादा बाहर नहीं निकल रहे थे। बच्चों को अस्पताल लेकर जाने में भी लोग घबरा रहे थे। यातायात प्रभावित होने से दूर दराज के लोगों को अस्पताल पहुंचने में भी परेशानी हो रही थी। इन सभी कारणों से जीवनरक्षक टीका लगाने का अभियान कुछ हद तक जरूर प्रभावित हुआ था।

                                         

कोरोना की दूसरी लहर में भी देश के ज्यादातर हिस्सों में लॉकडाउन ही जारी रहा। इस दौरान भी बच्चों के रूटीन टीकाकरण अभियान पर असर पड़ा, लेकिन दूसरी लहर में एम्स में बच्चों रूटीन टीकाकरण जारी रखा गया और ओपीडी पंजीकरण की बाध्यता भी खत्म कर दी गई और यह व्यवस्था की गई कि मातापिता बच्चे को लेकर सीधे टीकाकरण कमरे में पहुंच सकते थे। जहां नर्स द्वारा बच्चे के स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग के बाद तुरंत टीका लगा दिया जाता है।

बच्चे के बीमार होने की आशंका होने पर डाक्टर को दिखाना जरूरी है। इसी आधार पर हर जगह रूटीन टीकाकरण को जारी रखना होगा। रूटीन टीकाकरण के लिए दिन भी निर्धारित हैं। यह कोशिश होनी चाहिए कि उस दिन बच्चों के टीकाकरण में कोई बाधा न आने पाए।

रूटीन टीकाकरण कम होने पर बीमारियां दोबारा बढ़ने का खतराः

                            

देश में आज भी पांच साल तक की उम्र के बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण डायरिया है। इस वजह से राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान में रोटा वायरस के टीके को शामिल किया गया है, क्योंकि यह देखा गया है कि देश में बच्चों में डायरिया का सबसे बड़ा कारण रोटा वायरस का संक्रमण है। इसके टीके के जरिए डायरिया के कारण होने वाली बच्चों की मौतों को कम किया जा सकता है।

दो दशक पहले देश में शिशु मृत्यु दर 100 के करीब थी, जो अब घटकर 30 से कम हो गई है। हालांकि, शिशु मृत्यु दर कम होने के कई अन्य कारण भी हैं। इसलिए, इसका 100 फीसद श्रेय सिर्फ टीकाकरण को तो नहीं दिया जा सकता, लेकिन शिशु मृत्यु दर कम करने में रूटीन टीकाकरण ने अहम भूमिका निभाई है। टीके के कारण ही चिकेन पाक्स की बीमारी पूरी तरह से ही खत्म हो गई है।

देश पोलियो मुक्त भी हुआ। खसरा, काली खांसी, डिप्थीरिया व टिटनेस की बीमारी भी काफी कम हो गई है। टीकाकरण यदि कम हुआ तो यह बीमारियां दोबारा बढ़ सकती हैं। कुछ देशों में देखा जा यप है कि काली खांसीकी बीमारी दोबारा वापस आ गई है।

बीत गया हो टीकाकरण का समय तो भी लगवाएं टीकाः

बच्चों के लिए टीके आवश्यक हैं। यदि आपके बच्चे का कोई टीका रह गया हो, जो किसी कारण नहीं लग पाया है तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र, डिस्पेंसरी, अस्पताल या बच्चों के डाक्टर के पास जाकर टीका लगवाएं। इससे बच्चों को कोई नुकसान नहीं होगा। यदि बच्चों को टीका लेने में तीन से नौ माह की देर भी हो गई है तब भी यह न समझें कि अब टीका नहीं लग सकता। रूटीन टीकाकरण नहीं कराने पर बच्चों को बाद में दूसरी तरह की परेशानियां होने लगती हैं। टीकाकरण अभियान के तहत बच्चों को नौ माह, 18 माह व ढाई साल उम्र पर विटामिन ए को खुराक भी दी जाती है।

यह बच्चों के उचित विकास के लिए जरूरी है। इससे बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। इससे शिशु मृत्यु दर में कमी आती है। इसलिए विटामिन ए को खुराक देना भी जरूरी है।

जन्म के छह माह के अंदर आवश्यक हैं टीके लगवाना 

बच्चे के जन्म होने के 24 घंटे के भीतर बीसीजी, पोलियों व हेपेटाइटिस बी के टीके की पहली खुराक दे दी जाती है। इसके बाद छह सप्ताह 10 सप्ताह व 14 सप्ताह पर पोलियो व पेंटावेलेंट टीका दिया जाता है। पेटापैलेट के रूप में पांच बीमारियों डिप्थीरिया, टिटनेस, काली खांसी, हेपेटाइटिस बी व हीमोफिलस इफ्लुएंजा टाइप बी के लिए एक टीका दिया जाता है। जन्म के छह माह के अंदर ये टीके जरूर लगवा देने चाहिए, ताकि इन घातक बीमारियों से बच्चों का बचाव हो सके। अब कई राज्यों में रोटावायरस का भी टीका लगने लगा है और दो साल में टायफाइड का टीका लगाया जाता है।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।