डायबिटीज को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है      Publish Date : 04/12/2024

                 डायबिटीज को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है

                                                                                                                                 डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

अगर शरीर में ब्लड शुगर का स्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है और यह अनियंत्रित रहा तो रोगी इसके चलते कोमा में भी जा सकता है।

                                                                      

डायबिटीज के कारण कोमा उस समय होता है, जब ब्लड शुगर का स्तर उच्च यानी हाइपर ग्लाइसीमिया या कम यानी हाइपोग्लाइसीमिया होता है। यह स्थिति आमतौर पर ऐसे डायबिटीज के रोगियों को प्रभावित करता है, जिन लोगों ने अपना ब्लड शुगर को अच्छी तरह नियंत्रित न किया हो। यह दोनों ही स्थितियां बेहद खतरनाक होती है। इसके लिए आपको हर समय सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।

क्यों है जरूरी इसकी जांच

चिकित्सकों के अनुसार खाने से पहले और खाना खाने के 2 घंटे बाद ब्लड शुगर का स्तर क्रमशः 125 मिलीग्राम/डेसीलीटर (एमजी/डीएल) और 200 एमजी/डीएल से कम होना चाहिए। परन्तु अगर यह स्तर 300 से 500 एमजी/डीएल के ऊपर चला जाए तो यह स्थिति बहुत खतरनाक हो सकती है।

डायबिटीज कोमा उस समय हो सकता है जब किसी व्यक्ति के शरीर में रक्त शर्करा का स्तर 600 एमजी/डीएल या इससे अधिक हो जाता है, जिसके कारण रोगी स्वयं को अत्यधिक डिहाइड्रेट महसूस करता है। अगर ब्लड शुगर का स्तर 70 एमजी/डीएल है और रोगी स्वयं को भ्रमित महसूस कर रहा है तो यह स्थिति भी डायबिटीज कोमा का कारण बन सकती है।

कितने प्रकार की होती है डायबिटीज कोमा

                                                             

डायबिटीज कोमा के तीन प्रकार होते हैं। पहला प्रकार डायबिटीज़ कीटोएसिडोसिस कोमा होता है और यह आमतौर पर उन लोगों में होता है जो टाइप वन डायबिटीज से पीड़ित होते है। हालांकि यह टाइप टू डायबिटीज के रोगियों में भी यह हो सकता है। इस प्रकार का कोमा कीटोन जैसा रसायन बनने से ट्रिगर होता है। इसका सबसे मुख्य कारण है इंसुलिन की डोज या दवा का मिस हो जाना या टाइप 1 डायबिटीज के रोगी में संक्रमण का होना।

इसका दूसरा प्रकार है डायबिटिक हाइपरऑस्मोलर कोमा- यह गंभीर डिहाइड्रेशन और उच्च रक्त शर्करा के स्तर के कारण होता है। यह टाइप टू डायबिटीज के ऐसे रोगियों को अधिक होता है जो किसी संक्रमण या अन्य गंभीर बीमारी का शिकार हो अथवा वह तरल पदार्थ कम मात्रा में ग्रहण करते हों। डायबिटीज कोमा का यह रूप कुछ दिनों या हफ्तों में धीरे-धीरे विकसित होता है।

डायबिटीज कोमा का तीसरा प्रकार है डायबिटिक हाइपोग्लाइसेमिक कोमा- हाइपोग्लाइसेमिक अर्थात रक्त शर्करा का इसके निम्न स्तर तक होना। यह स्थिति उस समय होती है जब रोगी दवा या इंसुलिन की अधिक डोज ले लेता है या फिर इंसुलिन लेने के बाद खाना नहीं खा पाता है उस समय इस तरह की कंडीशन हो सकती है।

कैसे पहचाने डायबिटीज कोमा के लक्षण

अगर शरीर में रक्त शर्करा का स्तर अधिक है और रोगी को अधिक प्यास लगना और बार-बार पेशाब आना, कमजोरी, जी मिचलाना, उल्टी, सांस लेने में समस्या होना, पेट दर्द, मुंह का अधिक सूखना और दिल की धड़कन बढ़ना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

वहीं अगर लो ब्लड प्रेशर की समस्या है तो डायबिटीज कोमा विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि ब्लड शुगर कम है तो शरीर में कंपन, घबराहट, चिंता, थकावट, कमजोरी, पसीना अधिक आना, जी मिचलाना, चक्कर आना, बोलने में समस्या होना और बेचैनी जैसे लक्षण भी रोगी में नजर आ सकते हैं।

आहार की बड़ी भूमिका है डायबिटीज के नियंत्रण में

डायबिटीज के रोगियों में ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखकर डायबिटिक कोमा की स्थिति से बचा जा सकता है। इसके लिए संतुलित आहार जैसे कि फल, सब्जियां, साबुत अनाज का सेवन करना चाहिए। अन-हेल्थी आहार और अल्कोहल के सेवन से यथासम्भव बचना चाहिए।

प्रतिदिन वॉक या व्यायाम जरूर करना चाहिए, वजन को नियंत्रित रखा जाना चाहिए, रोजाना 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें और तनाव को दूर करने के लिए योग और मेडिटेशन करें। रक्त शर्करा को नियमित रूप से जांच कराते रहें और डॉक्टर के बताए अनुसार दवाएं और इंसुलिन लेने मधुमेह की दवा या इंसुलिन लेने के बाद खाना जरूर खाएं।

डायबिटीज रोगी इन बातों का रखें ध्यान-

                                                          

अगर आप इन्सुलिन पंप का उपयोग करते हैं तो आपको नियमित रूप से रक्त शर्करा की जांच जरूर करनी चाहिए, क्योंकि पंप में समस्या आने के कारण आप में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर आप बीमार है या आपको चोट लगी है तो शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ सकता है और यह भी डायबिटिक कीटोएसिडोसिस की समस्या का एक कारण बन सकता है।

इसके अलावा कुछ मेडिकल कंडीशंस जैसे कि हार्ट फेल्योर या किडनी के रोग आदि के कारण भी डायबिटिक हाइपरऑस्मोलर सिंड्रोम की समस्या को बढ़ा सकते हैं। अगर आप डायबिटीज को अच्छी तरह नियंत्रित नहीं करेंगे और अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाई या इंसुलिन नहीं लेंगे तो आपको डायबिटिक कोमा का जोखिम बढ़ सकता है।

इसलिए हमेशा सतर्क रहें और नियमित रूप से अपनी जांच कराते रहे, जिससे कि आपके शरीर का ब्लड शुगर का स्तर सामान बना रहे।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।