एंटीबायोटिक लेना हो सकता है जानलेवा      Publish Date : 30/11/2024

                       एंटीबायोटिक लेना हो सकता है जानलेवा

                                                                                                                                 डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाएं जान बचाने के काम आती हैं, परन्तु इनके अविवेकपूर्ण प्रयोग करने से जान जोखिम में भी पड़ सकती है, क्योंकि ऐसा करने से बैक्टीरिया का दवा के प्रति प्रतिरोध बढ़ जाता है। इससे सामान्य बीमारी में भी यह दवाएं काम नहीं करतीं। रोगाणु रोधी प्रतिरोध दुनिया भर में एक बड़ी चिंता का कारण बनता जा रहा है।

                                                             

यह सही है कि एंटीबायोटिक्स का सेवन संक्रमण से बचाव में सहायक है, परन्तु इन दवाओं की खपत उचित और अनुचित दोनों तरह से बढ़ती जा रही है। अनुचित खपत यानी इनका धड़ल्ले से बिना सोचे-समझे प्रयोग करना। इसे लेकर सावधान होने की जरूरत है। एंटीबायोटिक्स का लापरवाही भरा प्रयोग रोगाणुरोधी प्रतिरोध या एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) का गंभीर खतरा उत्पन्न करता जा रहा है। इस दिशा में डब्ल्यूएचओ एक बड़ा जागरूकता अभियान भी चला रहा है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को भविष्य में सेहत व सतत विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा माना गया है, जिसके कारण आने वाले कुछ सालों में करोड़ों लोग जान गंवा सकते हैं।

क्या है रोगाणुरोधी प्रतिरोधः जब बीमारियों का प्रसार करने वाले सूक्ष्म जीवी जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस और परजीवी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं तो यह बन जाता है रोगाणुरोधी प्रतिरोध। दरअसल, यह सूक्ष्मजीव एंटीबायोटिक्स के निरंतर संपर्क में रहने के कारण अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप स्वयं को ढाल लेते हैं। इससे उनसे बचाव के लिए प्रयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का प्रभाव खत्म होने लगता है, इससे संक्रमण ठीक नहीं हो पाता और एक जानलेवा स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

क्यों है बड़ा जोखिमः अनेक चिकित्सकीय प्रक्रियाएं जैसे अंग प्रत्यारोपण, कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी व बड़ी सर्जरी में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में सर्जरी के बाद संक्रमण से बचाव के लिए एंटीबायोटिक की बहुत जरूरत होती है। यदि शरीर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस बढ़ता गया तो फिर संक्रमण से बचाव कठिन होता चला जाएगा। कई सामान्य बीमारियां भी बड़ी चुनौती बन जाएंगी और एंटीबायोटिक दवाइयां मौत का कारण बनने लगेंगी।

                                                                 

76 प्रतिशत बढ़ी है एंटीबायोटिक की मांग वर्ष 2000 से 2010 के बीच। इसमें 23 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है, जर्नल द लैसेट इन्फेक्शस डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार एएमआर के कारण प्रतिवर्ष 12.7 लाख लोगों की जान जाती है। इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आइएचएमई) की रिपोर्ट में भी इसी प्रकार की चेतावनियाँ दी गई हैं।

काम की कुछ बातें

                                                  

  • कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों, जैसे बुजुर्गों, मरीजों, छोटे बच्चों के लिए अधिक सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
  • गले में संक्रमण आदि में एंटीबायोटिक्स की सलाह उचित नहीं है। यह सामान्य चिकित्सा से भी ठीक हो सकता है।
  • बिना चिकित्सकीय परामर्श खुद से कोई भी दवा नहीं लेनी चाहिए।
  • सर्दी-जुकाम में तुरंत एंटीबायोटिक लेने से बचना चाहिए। मौसमी सर्दी-जुकाम तीन से चार दिन में स्वतः ही ठीक हो सकते हैं।
  • बच्चों को वायरल में एंटीबायोटिक्स नहीं देना चाहिए, चिकित्सकीय सलाह पर ही कोई दवा दें।
  • यदि आप कोई एंटीबायोटिक दवा ले रहे हैं तो आपको इसका कोर्स पूरा करना चाहिए। बीच में इसे न छोड़ें।
  • एंटीबायोटिक्स के भरोसे रहने के स्थान पर अपनी इम्यूनिटी की मजबूती पर अधिक ध्यान दें।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।