अपने फेफड़ों को बनाए रखें स्वस्थ Publish Date : 06/11/2024
अपने फेफड़ों को बनाए रखें स्वस्थ
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर
विश्व निमोनिया दिवस 12 नवंबर पर विशेष
आजकल भागदौड़ से भरी जिंदगी और निरंतर बढ़ रहे प्रदूषण के कारण लोगों के फेफड़े काफी प्रभावित हो रहे हैं। फेफड़ों को संक्रमित होने के कारण उनके सीने में दर्द, बलगम के साथ खांसी और हर सांस के लिए बढ़ता संघर्ष आदि के साथ निमोनिया की आरंभिक चेतावनी भी हो सकती है। इसलिए आपको निमोनिया से बचकर रहना है और इसी कारण के चलते हर वर्ष 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिससे लोग इस बीमारी के प्रति जागरूक रहते हुए सतर्क रहें।
निमोनिया को अगर आसान शब्दों में समझे तो यह फेफड़ों का एक प्रकार का संक्रमण और सूजन है जो आमतौर पर छोटे बच्चों और बुजुर्गों में अधिक देखने में मिलती है। आरंभ में ही इसकी जानकारी होने पर इस बीमारी का इलाज मिलने पर इसका प्रभावी उपचार हो सकता है और जीवन को खतरे में डालने वाली इस जानलेवा बीमारी से आसानी से बचा जा सकता है।
क्या होते हैं प्रमुख लक्षण
वैसे तो निमोनिया के लक्षण उम्र और स्वास्थ्य की दशा पर काफी हद तक निर्भर करते हैं परंतु कुछ लक्षण बहुत आम होते हैं जिनको देखकर इस बीमारी की पहचान आसानी से की जा सकती है।
कफ यह एक बहुत आम और प्रमुख समस्या होती है। कई बार सूखी या फिर बलगम के साथ खांसी की समस्या भी इसके मरीज में देखी जाती है।
निमोनिया की समस्या वाले मरीजों को लगातार बुखार आता रहता है। इसमें सामान्य से अधिक बुखार अर्थात एक से तीन डिग्री फारेनहाइट या उससे अधिक बुखार लगातार बना रहता है।
निमोनिया से पीड़ित लोगों की सांस फूलने की समस्या भी हो सकती है। आमतौर पर जिन लोगों को निमोनिया होता है उनके सांस की गति तेज होती हैं, यहां तक की आराम की मुद्रा में भी उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है।
निमोनिया से पीड़ित मरीजों में सांस लेते समय घबराहट महसूस होती है। सांस लेते समय आवाज आती है तो इसका मतलब यह है कि मरीज के श्वसन मार्ग में कोई रुकावट आ रही है।
निमोनिया से पीड़ित लोगों में सीने में दर्द की समस्या हो सकती है। ऐसे में यदि मरीज सीने में दर्द की शिकायत कर रहा है तो यह एक गंभीरता वाला लक्षण होता है। ऐसे में तुरंत अस्पताल जाने की जरूरत होती है।
निमोनिया से पीड़ित बच्चों के इलाज में सतर्कता बरतें
कोई ऐसा बच्चा जिसका जन्म के समय सामान्य से कम वजन है या फिर उसका जन्म निश्चित समय से पहले हो गया है तो आगे चलकर उसे निमोनिया की समस्या हो सकती है। इसके अलावा जिन्हें पहले से सांस की कोई समस्या जैसे अस्थमा या फाइब्रोसिस सिस्टिक है या इम्यून सिस्टिक कमजोर है या बहुत अधिक प्रदूषति वातावरण में रह रहा है तो उसे भी निमोनिया का जोखिम अधिक रहता है।
लक्षण दिखते ही कराये जांच
निमोनिया के उपचार के लिए शुरूआत में जैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं उनको देखकर तुरंत ही जांच कर लेनी चाहिए। इसके साथ ही अन्य रिस्क फैक्टर, मेडिकल हिस्ट्री आदि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। बीमारी को जांचने के लिए सीने का एक्सरे और ब्लड टेस्ट महत्वपूर्ण होते हैं। बच्चों की बात करें तो उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं होता और उनकी श्वास नली भी छोटी होती है, इसलिए बच्चों में निमोनिया को लेकर अधिक सतर्क होने की जरूरत होती है।
क्यों और कैसे होता है निमोनिया
निमोनिया फैलने के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे नाक या गले में पाए जाने वाला वायरस या बैक्टीरिया यदि किसी कारणवश श्वास नली से फेफड़ों में चला जाए तो वह फेफड़ों को संक्रमित कर सकता है। निमोनिया संक्रमण कफ या छींक के माध्यम से भी हवा में भी फैल सकता है। बच्चों के जन्म के समय या उसके कुछ शुरुआती दिनों में यह रक्त के माध्यम से भी हो सकता है।
प्रदूषण से बचने की होती है जरूरत
वायु प्रदूषण के कारण फेफड़ों की क्षमता कुप्रभावित होती है और सामान्य लोगों को भी सांसों की तकलीफ हो सकती है और जिन लोगों को पहले से ही अस्थमा है वायु प्रदूषण के चलते उनकी समस्या बढ़ जाती है। प्रदूषण के कारण फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है जिसके चलते संक्रमण की आशंका काफी बढ़ जाती है। धूल और प्रदूषण आदि से बचाव के लिए मास्क का प्रयोग करना आवश्यक होता है।
निमोनिया से बचने के लिए टीकाकरण ही सबसे असर कारक उपाय है
निमोनिया से बचाव का सबसे पुख्ता उपाय टीकाकरण ही है। 6 माह से ऊपर आयु के हर किसी व्यक्ति को यह वैक्सीन अवश्य लेनी चाहिए। खासकर जिन्हें किडनी और लीवर की बीमारी या डायबिटीज आदि की समस्या है तो उन्हें यह वैक्सीन जरूर लेनी चाहिए। इसके चलते संक्रमण की आशंका कम रहती है। हालांकि निमका कल नाम की एक वैक्सीन 65 वर्ष से अधिक उम्र के कुछ चुनिंदा मरीजों को भी दी जाती है।
स्वस्थ रहने की आदत बनाए रखें
नियमित व्यायाम और प्राणायाम की आदत हमारे शरीर को स्वस्थ रखती है। इससे फेफड़ों की कार्य प्रणाली भी अच्छी बनी रहती है तथा साथ ही ब्लड सर्कुलेशन भी बढ़ता है। कुल मिलाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर बनी रहती है। ऐसे में निमोनिया होने पर भी उसके गंभीर होने के अशंका कम रहती है। डॉक्टर दिव्यांशु सेंगर ने बताया सतर्क रहकर समय पर जांच कर कर और अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाकर आप निमोनिया से बचे रह सकते हैं।
यदि आपको निमोनिया की समस्या है तो सतर्कता बरते
डॉ दिव्यांशु सेंगर मेडिकल ऑफिसर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ, ने बताया कि निमोनिया किसी भी आयु के व्यक्ति को हो सकता है। इसका कारण बैक्टीरिया वायरस या फंगल संक्रमण हो सकता है। सामान्यतौर पर निमोनिया के सबसे अधिक मामले बैक्टीरिया या वायरस के कारण ही होते हैं। इसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण होते हैं पहला इम्युनिटी के कारण और दूसरा अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान संक्रमण लग जाने के कारण।
जिन लोगों को डायबिटीज, किडनी, लीवर या हार्ट संबंधी कोई समस्या है, उन्हें निमोनिया होने की आशंका अधिक रहती है। हालांकि शुरुआत में सभी मरीजों को भर्ती होने की जरूरत नहीं होती है। इसे दवाओं के माध्यम से ही नियंत्रित कर लिया जाता है। हां बैक्टीरिया जनित निमोनिया में एंटीबायोटिक और वायरल होने पर एंटीवायरस की जरूरत पड़ती है। अगर ऑक्सीजन लेवल कम या रक्तचाप अनियंत्रित है तो अस्पताल में भर्ती करने की भी जरूरत पड़ सकती है।
अस्पताल में भर्ती या वेंटिलेटर पर रखे गए मरीज में बैक्टीरिया या फंगल जनित निमोनिया का जोखिम अधिक रहता है। ऐसे में अधिक प्रभावी एंटीबायोटिक की जरूरत पड़ती है जो कि डॉक्टर की सलाह से ही सेवन करनी चाहिए।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।