बच्चों के सुनने की क्षमता Publish Date : 06/02/2024
बच्चों के सुनने की क्षमता
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर
मोबाइल व वीडियो गेम का शोर बच्चों के सुनने की क्षमता को छीन रहा
दुनियाभर में वीडियो गेम खेलने वालों का आंकड़ा 300 करोड़ से अधिक
लंबे समय तक बेहद तेज शोर के सम्पर्क में रहने के कारण वीडियो गेमर्स के सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। यह शोर उनके सुनने की क्षमता को इस कदर नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे उबर पाना मुमकिन नहीं है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2022 के दौरान दुनियाभर में इन गेमर्स का आंकड़ा 300 करोड़ से ज्यादा था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार, वीडियो गेमर्स खासतौर से बच्चे और नौजवान रोडरैश, नीड फॉर स्पीड के जैसे कंप्यूटर गेम्स हों या मोबाइल पर चलने वाले एंग्री बर्ड्स, कैंडी क्रश, पब्जी, कॉल ऑफ ड्यूटी जैसे गेम के दीवाने बन चुके हैं। इन खेलों का जूनून कुछ ऐसा है कि वे घंटों कंप्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य गेमिंग उपकरणों से चिपके रहते हैं। जो अभिभावक ध्यान नहीं दे रहे हैं उनके बच्चे इसकी लत का शिकार हो चुके हैं। यह न केवल उनके शारीरिक, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
हेडफोन बढ़ा रहे परेशानियां
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, वीडियो गेमर्स अक्सर कई घंटों तक तेज आवाज में इन वीडियो गेम को खेलते हैं और उनके हेडफोन इस परेशानी बढ़ा देते हैं। इस दौरान अक्सर ध्वनि का स्तर कानों के लिए निर्धारित सुरक्षित सीमा के या तो करीब या उससे अधिक होता है।
टिनिटस की समस्या, सुनाई देने लगती हैं आवाजें:
शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के नौ देशों में प्रकाशित 14 अध्ययनों की समीक्षा की है, जिनमें 53,833 लोगों को शामिल किया गया। इस अध्ययन में सामने आया कि इन वीडियो गेमर्स में टिनिटस की समस्या भी देखी गई है। इस बीमारी से पीड़ितों को अक्सर कान में रह रहकर घंटी, सीटी और सनसनाहट आदि के जैसी आवाजें सुनाई पड़ती हैं। यह समस्या रात में सोते वक्त और गंभीर हो सकती है।
80 डेसिबल का शोर सुरक्षित नहीं
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एक वयस्क यदि सप्ताह में 40 घंटे तक 80 डीबी से ज्यादा शोर में रहता है तो वह उसके लिए सुरक्षित नहीं है। यह शोर करीब-करीब एक दरवाजे की घंटी से होने वाली आवाज् के बराबर है। यदि शोर का स्तर इससे अधिक बढ़ता है तो इससे सुरक्षित रहने की समय सीमा बड़ी तेजी से कम होने लगती है। इस शोर में हर तीन डेसिबल की वृद्धि होने पर सुरक्षित समय सीमा घटकर आधी रह जाती है। यदि कोई सप्ताह में 20 घंटे से ज्यादा समय 83 डीबी शोर में रहता है। तो वह स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है।
इसी तरह सप्ताह में किसी वयस्क को 86 डीबी शोर में केवल 10 घंटे, 90 में चार घंटे, 92 में ढाई घंटे, 95 में एक घंटा और 98 डीबी में 38 मिनट से ज्यादा नहीं रहना चाहिए। यदि वह इससे ज्यादा समय इस शोर में रहता है तो वह उसके स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित नहीं है। यह शोर बच्चों के लिए कहीं ज्यादा हानिकारक होता है।
बच्चों के लिए जो मानक तय किए गए हैं उनके तहत कोई बच्चा सप्ताह में केवल 40 घंटे तक 75 डेसिबल के शोर में सुरक्षित रह सकता है। इसके बाद बच्चे 83 डीबी में करीब साढ़े छह घंटे, 86 में 3.25 घंटे, 92 में 45 मिनट तक और 98 डीबी शोर को प्रति सप्ताह केवल 12 मिनट तक सुरक्षित रूप से सुन सकते हैं।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ के मेडिकल ऑफिसर हैं।