स्वदेशी सीएआर-टी थेरेपी के माध्यम से कैंसर के बड़े ट्यूमर्स को भी नष्ट किया जा सकेगा Publish Date : 02/01/2024
स्वदेशी सीएआर-टी थेरेपी के माध्यम से कैंसर के बड़े ट्यूमर्स को भी नष्ट किया जा सकेगा
डॉ0 दिव्याँशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
स्वदेशी सीएआर-टी थेरेपी की सहायता से कैंसर के बड़े ट्यूमर्स को भी नष्ट किया जाना अब सम्भव हो सकेगा-
ब्लड कैंसर के बाद शीघ्र ही स्वदेशी तकनीक से कैंसर युक्त बड़े ट्यूमर्स को भी नष्ट किया जा सकेगा। भारतीय शोधकर्ताओं ने चिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर यानी सीएआर-टी सेल थेरेपी पर शोध आरम्भ किया है। इसके अन्तर्गत आईआईटी बॉम्बे और टाटा कैंसर अस्पताल आदि के सहित देश के कई संस्थान मिलकर कार्य कर रहे हैं। इस शोध को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएसओ) की ओर से भी प्रारंभिक अनुमति प्राप्त हो चुकी है।
लिम्फोमा और ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर में सफल इम्यूनो एक्ट के सह संस्थापक शिरीष आर्य ने बताया कि पिछले साल 12 अक्टूबर को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएसओ) ने मुंबई स्थित टाटा कैंसर हॉस्पिटल के क्लीनिकल ट्रायल परिणाम के आधार पर सीएआर-टी सेल थेरेपी को देश के विभ्न्नि अस्पतालों तक पहुंचाने की अनुमति प्रदान कर दी है और अभी तक करीब 15 अस्पतालों में यह सुविधा आरम्भ कर दी गई है।
जबकि उत्तर भारत में मैक्स हेल्थकेयर के साथ करार किया गया है। अभी तक का यह तकनीक केवल लिम्फोमा और ल्यूकेमिया के रोगियों के लिए ही उपलब्ध है, लेकिन आगामी दिनों में इसे कैंसर के अन्य मरीजों के इलाज में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस क्रम में ब्रेन कैंसर से लेकर ठोस ट्यूमर तक सभी शामिल है। अभी इनके इलाज का खर्च लाखों रूपये में आता है, लेकिन धीरे-धीरे यह तकनीक सस्ती भी हो जाएगी।
मैक्स इंस्टिट्यूट ऑफ कैंसर केयर के अध्यक्ष डॉक्टर हरित के. चतुर्वेदी ने बताया कि जब भी कोई नई तकनीक आती है तो उसकी कीमत काफी अधिक होती है लेकिन जैसे-जैसे ही यह तकनीक आम होने लगती है तो उसकी कीमत भी गिरती है। इसी प्रकार से सीएआर-टी थेरेपी के बारे में भी यही है कि इसके अगले कुछ वर्षों में सस्ते होने की उम्मीद की जा सकती हैं। बरहाल मौजूदा समय में इस थेरेपी की कीमत करीब 30 से 35 लख रुपए तक की हो सकती है।
इम्यून सेल्स पर आधारित है यह तकनीक
अभी यह नई तकनीक कैंसर मरीज के इम्यून सेल पर आधारित है, जिसके अन्तर्गत मरीज के सेल्स को कैंसर से लड़ने में सक्षम बनाया जाता हैं। इस प्रक्रिया में टी कोशिका नामक विशिष्ट प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं मदद करती हैं। जब एक बार यह सेल्स कैंसर से लड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं तो उन्हें एकबार फिर से अस्पताल में भर्ती मरीज के अन्दर प्रविष्ठ करा दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के करीब दो से तीन सप्ताह में ही रिकवरी देखने को मिल जाती है। वैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करते हैं कि 80 प्रतिशत से अधिक मरीजों में यह थेरेपी अभी तक सफल रही है और कैंसर से ऐसे मरीजों को मुक्ति भी मिल गई है।
भारत को 5 साल में मिली सफलता
विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि सीएआर-टी थेरेपी को लेकर दुनिया में सबसे पहला प्रयास अमेरिकी वैज्ञानिको ने वर्ष 2009 से 2010 के बीच आरम्भ किया था। हालांकि, इस थेरेपी को सरकार की अनुमति वर्ष 2018 में प्राप्त हुई और इसी दौरान भारतीय शोधकर्ताओं ने भी इस थेरेपी पर अपना अध्ययन प्रारंभ कर दिया था। भारत में मात्र 5 वर्षों के भीतर ही इस तकनीक को अपने अस्पतालों तक उपलब्ध करा दिया है। अमेरिका और भारत के अतिरिक्त यह तकनीक अभी तक केवल स्पेन, जर्मनी और चीन के पास ही उपलब्ध है।
लेखकः डॉ0 दिव्याँशु सेंगर, मेडिकल ऑफिसर, प्यारे लाल शर्मा, जिला अस्पताल मेरठ।