शरीर में होने वाली प्रत्येक गांठ कैंसर का संकेत नहीं      Publish Date : 12/12/2023

                शरीर में होने वाली प्रत्येक गांठ कैंसर का संकेत नहीं

                                                                                                                                                                    डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                                      

‘‘शरीर के किसी हिस्से में गांठ का नाम सुनते ही एक डर दिमाग पर हावी हो जाता है। यहां तक कि इस डर के चलते कई बार लोग डॉक्टर के पास जाने से भी कतराते हैं। जबकि विशेषज्ञों के अनुसार दिमाग और सीने में होने वाली अधिकतर गांठें कैंसरकारी नहीं होतीं। इसके साथ ही शुरुआत में इस प्रकार की गांठ का उपचार करके स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सकता है।’’

सरिता गुप्ता (उम्र 28 साल) की शादी दो महीने बाद ही होने वाली है। वहीं कुछ दिनों से उसके कंधों और गले पर छोटी-छोटी गांठे दिखाई देने लगी थीं। उसके पूरे परिवार वालों को अपनी युवा बेटी को कैंसर होने की चिंता और इसके कारण बेटी का रिश्ता टूटने का भय सताने लगा। परिजनों ने उसे डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कुछ जांच कराने की सलाह दी और जांच रिपोर्ट से पता चला कि ये छोटे-छोटे ट्यूमर बिनाइन यानी गैर कैसरकारी और हानिरहित है।

जबकि आमतौर पर इन गांठ के लिए किसी प्रकार का उपचार कराने की भी जरूरत नहीं होती, परन्तु उसकी शादी पास ही थी, इसलिए डॉक्टर ने ट्यूमर्स को सिकोड़ने और बढ़ने से रोकने के लिए कुछ स्टेरॉएड उसे दे दिए। उपरोक्त केस स्टडी बताती है कि शरीर के किसी हिस्से में गांठ हो जाए तो हमें तुरंत ही यह नहीं समझ लेना चाहिए कि आपको कैंसर हो गया। खुद से इंटरनेट पर जानकारी जुटाने की बजाए डॉक्टर के पास जाएं और उचित उपचार करवाना ही बेहतर होता है।

                                                          

फरीदाबाद में स्थित मेरिगो एशिया हॉस्पिटल के आकोलॉजी विभाग के हेड डॉ. सनी जैन कहते हैं, ‘स्वस्थ शरीर में कोशिकाएं विकसित होती रहती है, वे विभाजित होती है और नष्ट हो जाती हैं। जब कभी यह प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है तो कोशिकाएं इकट्ठा होकर एक गांठ बना लेती हैं। जबकि ट्यूमर ऊतकों का एक गुच्छा होता है जो उस समय निर्मित होता है, जब कुछ असामान्य कोशिकाएं एकत्र होकर एक गुच्छ बना लेती है।

यदि शरीर में कहीं ट्यूमर है भी तो घबराने की जरूरत नहीं है, यह हानिरहित गांठे भी हो सकती है। इसलिए इनके उपचार में देरी न करें। हालांकि ट्यूमर हड्डी, त्वचा,ग्रंथि या फिर शरीर का कोई अंग, यह कहीं भी हो सकता है। ट्यूमर तीन तरह के होते हैं-

1. मैलिग्नंट या कैसरयुक्तः कैसरकारी ट्यूमर घातक भी हो सकते हैं और वे शरीर के जिस भाग में भी विकसित होते हैं, केवल वहीं तक सीमित नहीं रहते, बल्कि यह आसपास के ऊतकों और अंगों तक भी फैल सकते हैं। कई बार यह उपचार कराने के बाद भी यह दोबारा भी विकसित हो सकते हैं।

                                                                       

2. बिनाइनः आमतौर पर यह ट्यूमर कैंसर रहित होते हैं और हानिकारक नहीं होते। अतः बहुत ही कम मामलों में यह जीवन के लिए घातक होते हैं। यह शरीर में जहां भी निर्मित होते हैं वही तक सीमित रहते हैं और शरीर के दूसरे भागों में नहीं फैलते हैं।

ऐसे में इन्हें जब एक बार निकाल दिया जाता है तो आमतौर पर यह दोबारा नहीं होते। जामा आकोलॉजी के अनुसार, बिनाइन ट्यूमर के 90 प्रतिशत मामले बहुत ही सामान्य होते हैं।

                                                          

3. प्री-कैंसरस ट्यूमरः यह टयूमर होते तो कैंसर रहित ही है, परन्तु इनके उपचार में देरी करने के कारण कैंसर युक्त ट्यूमर में भी बदल सकते हैं।

कुछ ऐसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं

दिल्ली स्थित बी.एल.के. हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसीन, डॉ. ए. के. झिंगन कहते हैं, ‘बिनाइन ट्यूमर हानिकारक नहीं होते हैं। हालांकि, इनके कारण दर्द या कुछ अन्य प्रकार की दूसरी समस्याएं हो सकती है, क्योंकि जब इनके कारण तंत्रिकाओं या रक्त नलिकाओं पर दबाव पड़ता है या हार्माेनों का अति स्राव होने लगता है, विशेषतः यदि यह एंडोक्राइन ‘सिस्टम में विकसित हुए हो’।

जबकि कई बिनाइन ट्यूमर में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। पर जब इनका आकार बढ़ जाता है तो यह शरीर की विभिन्न संरचनाओं पर दबाव डालने लगते हैं, तो फिर कुछ लक्षण दिखाई भी देने लगते हैं। यह लक्षण इस पर निर्भर करता हैं कि ट्यूमर शरीर के किस भाग में विकसित हुआ है। जैसे-

  • रक्त स्राव (जैसे गर्भाशय में फायब्रॉइड का होना) सिरदर्द, चक्कर आना या नजर कमजोर होना (जैसे मस्तिष्क में ट्यूमर विकसित होना)।
  • भूख कम लगना या वजन कम होना (आंतों या पेट में ट्यूमर होने पर)।
  • शरीर के किसी भी भाग में दर्द या बैचेनी होना।
  • सिरदर्द, चकर आना या नजरों का कमजोर होना (मस्तिष्क में ट्यूमर का विकसित होना)।

डायग्नोसिस भी है जरूरी

कुछ स्थितियों में ट्यूमर का उपचार नही कराना भी उन्हें प्री-कैंसरस या कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल सकता है। अतः इन पर नजर रखन भी जरूरी होता है। यदि आपको अपने शरीर में कोई लक्षण या असामान्यता महसूस हो तो अपने डॉक्टर को दिखाएं। इसके संबंध में आपकी निम्न जांचें भी कराई जा सकती है।

  • बायोप्सीः यह पता लगाने के लिए कि ट्यूमर कैंसरयुक्त है या कैंसररहित, बायोप्सी की जाती है। इसमें ऊतक का एक टुकड़ा ले लिया जाता है और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से उसकी जांच की जाती है।
  • इमेजिंग टेस्टः सीटी स्कैन, एमआरआई या अल्ट्रासाउंड के माध्यम से शरीर के अंदर के भागों की विस्तृत तस्वीरें ले ली जाती है जिनमें ट्यूमर भी शामिल होते हैं।
  • मेमोग्रामः मैमोग्राम एक विशेष प्रकार का एक्स-रे होता है जो स्तन के ऊतकों में असामान्य विकास या परिवर्तन का पता लगाता है।
  • एक्स-रे में शरीर के अंदर के भागों की तस्वीर ली जाती है, जो कि आमतौर पर हड्डियों में हुई क्षति का पता लगाने के लिए किया जाता है।

प्रबंधन और उपचार

यदि कैंसर रहित ट्यूमर तेजी से विकसित नहीं हो रहे या इनके कारण कोई समस्या उत्पन्न नहीं हो रही है तो इन्हें निकालने या इनका उपचार करने की जरूरत नहीं पड़ती है और आप जीवनभर इसके साथ ही रह सकते हैं। लेकिन यदि इनके कारण शरीर के दूसरे अंगों पर दबाव पड़ रहा है या कोई लक्षण दिखाई देते हैं तो इनका प्रबंधन और उपचार जरूरी हो जाता है।

इंतजार करें और देखेंः अगर ट्यूमर छोटा है, कोई लक्षण या समस्या पैदा नहीं कर रहा है तो तुरंत उपचार की बजाए डॉक्टर उस पर नजर रखने के लिए कह सकते हैं।

दवाएंः मेडिकेटेड जेल या क्रीमा कुछ ट्यूमर के आकार को छोटा करने में मदद करती है। स्टेरॉएड से भी कुछ गांठ का आकार छोटा हो जाता है। आकार छोटा होने से साथ के अंगों पर भी दबाव कम पड़ता है।

सर्जरी: ट्यूमर की सर्जरी अक्सर एंडोस्कोपिक तकनीक से की जाती है। इसमें छोटे सर्जिकल कट लगते हैं और रिकवरी में कम समय लगता है। रु रेडिएशनरू ट्यूमर के आकार को कम करने या इसके आकार को बड़ा होने से रोकने के लिए रेडिएशन थैरेपी का सहारा लिया जाता है। कई सर्जरी के बाद रिकवर होने में अधिक समय लग सकता है। गांठ- निकालने के बाद स्पीच थैरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी या फिजियोथेरपी की जरूरत पड़ सकती है।

लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा, जिला अस्पताल मेरठ के मेडिकल ऑफिसर हैं।