मधुमेह अर्थात डायबिटीज की पहिचान और उसका उपचार      Publish Date : 05/12/2023

                                                        मधुमेह अर्थात डायबिटीज की पहिचान और उसका उपचार

                                                                 

मधुमेह एक बहुत पुराना रोग है। भारत में आयुर्वेद में चरक एवं सुश्रुत के द्वारा मधुमेह का वर्णन किया गया है। पाचन क्रिया के पश्चात्, जब कार्बोहाईड्रेट का रासायनिक विघटन का सन्तुलन बिगड़ जाता है तो व्यक्ति के रक्त में शर्करा का अनुपात बढ़ जाता है और जब इसका उपयोग शरीर में नहीं हो पाता तो शर्करा व्यक्ति के पेशाब में आने लगती है। इस स्थिति को डायबिटीज (मधुमेह) या डायविटीज मैलाईटस कहते हैं।

मनुष्य का शरीर संस्थान, अंग उत्तक एवं कोशिकाओं से मिलकर बना हुआ होता है। जो पल प्रतिपल कार्य करते रहते हैं। इन कार्य को करने के लिए इन्हें ऊर्जा मनुष्य द्वारा किए गए भोजन से प्राप्त होती है। भोजन से प्राप्त ऊर्जा, रक्त और लसिकाओं द्वारा शरीर के सभी भागों में पहुंचती है। रक्त और लसिका में भोजन के तमाम गुण एवं आवश्यक अवयव मौजूद रहते हैं जिनको शरीर का प्रत्येक अंग अपनी आवश्यकता एवं प्रकृति के अनुसार ग्रहण करता है।

खून और लसिका भी भोजन से प्राप्त ऊर्जा द्वारा ही निर्मित होते हैं और अपनी-अपनी सीमाओं में भ्रमण करते रहते हैं। इससे शरीर में प्रत्येक द्रव्य का एक निश्चित औसत बना रहता है। मनुष्य के रक्त में ग्लूकोज की सन्तुलित मात्रा भोजन करने से पूर्व 100 मिली ग्राम, रुधिर में 80 से 120 मिली. ग्राम तक और खाना खाने के पश्चात् 100 मिली ग्राम तथा रक्त में 180 मिली ग्राम तक होती है।

इससे अधिक होने पर उसका उपयोग शरीर नहीं कर पाता और शरीर में शक्कर के अधिक हो जाने से शरीर मूत्र के साथ शर्करा को निकाल देता है। चिकित्सा विज्ञान में इसी स्थिति को मधुमेह कहा जाता है। खून में अधिक एक शर्करा को हाईपरग्लाइसिमीया और मूत्र में शर्करा आने को ग्लूकोसूरिया कहते हैं।

भोजन की पाचन क्रिया से बनी ग्लूकोज को खून अपने में अवशोषित कर लेता है तथा रक्त जब अग्नाशय में पहुंचता है तो वहां इस ग्लूकोज में अग्नाशय द्वारा स्रवित हॉर्मोन्स इन्सुलिन में मिल जाता है। उसके बाद यह रक्त यकृत पहुंचता है। इन्सुलिन रक्त में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है अर्थात् इंसुलिन हार्मोन का होना अनिवार्य है।

यदि मनुष्य के शरीर में किसी कारणवश अग्नाश्य में कोई दोष या दुर्बलता कोई विकृति आ जाती है और इन्सुलिन अपनी निश्चित औसत मात्रा से कम हो जाता है, इसके अभाव या दुर्बलता के कारण इसका प्रभाव कम हो जाने पर खून में ग्लूकोज की मात्रा व स्तर नियंत्रित नहीं रह पाता तो यकृत में पहुंचने वाले रक्त में ग्लूकोज की मात्रा व स्तर अधिक हो जाता है। यकृत में ही शर्करा अपनी निर्धारित मात्रा से अधिक हो जाने के कारण जमा नहीं हो पाती, इसी कारण यह शर्करा रक्त में ही रह जाती है।

                                                                  

तब रक्त में शर्करा की अधिक मात्रा रक्त सहित गुर्दों में पहुंचती है। वृक्क की थ्रसोल्ड शक्ति से अधिक शर्करा हो जाने पर मूत्र में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है और यह अतिरिक्त शर्करा मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकाल दी जाती है। मोटापा, जीवन में श्रम का अभाव, यकृत के रोग, गुर्दे के रोग भी मधुमेह के कारण हो सकते हैं।

मानसिक तनाव अत्यधिक होना भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। माता-पिता या दोनों को यह रोग है तो उनकी संतानों को यह रोग होने की संभावना अधिक रहती है। मदिरा पान करने वालों, मीठा अधिक खाने वालों को भी यह रोग हो सकता है।

डायबिटीज के लक्षण - डायबिटीज के रोगी को मूत्र अधिक मात्रा में आता है, भूख भी खूब लगती है और शनैः शनैः कम हो जाती है। रोगी की त्वचा रूखी-सूखी और स्पर्श करने पर खुरदरी लगती है। शरीर में खुजलाहट, दांतों की जड़ें फूल जाती हैं और उनमें से खून भी निकलता है। रोग के बढ़ जाने पर प्यास अधिक लगती है, कमजोरी अधिक आ जाती है। फलस्वरूप इससे प्रभावित व्यक्ति का वजन गिरना शुरू हो जाता है। चोट लगने पर उसके घाव जल्दी से नहीं भरते, मूत्र अधिक एवं बार -बार आना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण होते हैं।

डायबिटीज का उपचार

यदि पूर्व में बताए गए लक्षणों में से किसी को यह लक्षण लागू हो रहे हैं तो उसे तुरंत ही अपने चिकित्सक से मिलना चाहिए और रक्त शर्करा एवं मूत्र का परीक्षण कराना चाहिए। यदि प्रभावित व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी हो गई है तो वह अपने पथ्य पर ध्यान रखें। मीठी ग्लूकोज युक्त वस्तुओं को त्याग तथा व्यायाम प्रारम्भ करें।

प्रातः एवं संध्या में दूर तक टहलने जाएं। अंकुरित भोजन का नाश्ता करें। मेथी, करेला, नीम इत्यादि सेवन करें तथा अपने चिकित्सक की बताई औषधियों सेवन करें और इस क्रम में अपने आप से किसी भी देवा कर सेवन न करें। अभी तक इस रोग को समूल समाप्त करने की कोई भी दवा बाजार में उपलब्ध नहीं है। किन्तु इसे नियमित/कंट्रोल रखने की कई आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक एवं एलोपैथिक दवाईयां बाजार में उपलब्ध है। यदि विशेष रूप से अपने खान-पान एवं दिनचर्या पर विशेष ध्यान देकर इस रोग को नियंत्रण में रखा जा सकता है।

इस रोग के प्रति कभी भी लापरवाही नही बरतनी चाहिए क्योंकि ऐसी बीमारियां आगे चलकर प्राणघातक भी सिद्ध होती है। अपने खान-पान, तथा नियमित व्यायाम कर भी इस रोग पर काफी नियंत्रण हो जाता है। दवाईयों का सेवन अपने चिकित्सक की देखरेख में ही करना और समय-समय पर शर्करा की मात्रा का परीक्षण कराते रहना चाहिए।

 हल्का एवं सुपाच्य एवं ग्लूकोज रहित भोजन करना चाहिए, शरीर के उपयोग के अनुसार ही शर्करा का सेवन करना चाहिए। इन सब बातों पर ध्यान रखने से मरीज इस रोग पर स्वयं ही नियंत्रण पा सकते हैं। हालांकि इस रोग में अत्याधिक सावधानी सदैव ही बरतनी चाहिए, जबकि थोड़ी सी लापरवाही प्राणघातक भी सिद्ध हो सकती है।