शरीर पर गांठे, डायग्नोसिस है जरूरी      Publish Date : 11/10/2023

                                                                 शरीर पर गांठे, डायग्नोसिस है जरूरी

                                                                                                                                              डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                             

मस्तिष्क के डाक्टर्स कहते हैं, कुछ स्थितियों में ट्यमर का उपचार न करना प्री-कैंसर ट्यूमर्स को कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल सकता है। इसलिए इन पर करीबी नजर रखनी जरूरी है। अगर कोई लक्षण या असामान्यता महसूस हो तो डॉक्टर को दिखाए। इसके संबंध में निम्न जांचें भी कराई जा सकती है-

बायोप्सीः यह पता लगाने के लिए कि ट्यूमर कैंसरयुक्त है या कैंसररहित, बायोप्सी की जाती है। इस जांच में ऊतक का एक टुकड़ा लिया जाता है और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से उसकी जांच की जाती है। 

इमेजिंग टेस्टः सीटी स्कैन, एमआरआई या अल्ट्रासाउंड से शरीर के अंदर के भागों की विस्तृत तस्वीरें ली जाती है, जिनमें ट्यूमर भी शामिल होता है।

मैमोग्रामः मैमोग्राम एक विशेष प्रकार का एक्स- रे होता है जिसके माध्यम से स्तन के ऊतकों में असामान्य विकास या परिवर्तन का पता लगाया जता है।

एक्स-रेः शरीर के अंदर के भागों की तस्वीर लेता है, अक्सर हड्डियों के उपचार सम्बन्ध में।

ट्यूमर का प्रबंधन और उपचार

                                                    

अगर कैंसर रहित ट्यूमर का विकास तेजी से नहीं हो रहा या इनके कारण कोई समस्या नहीं हो रही, तो इन्हें निकालने या इनका उपचार करने की जरूरत नहीं पड़ती है, और आप जीवनभर भी इसके साथ रह सकते हैं। लेकिन अगर ट्यमर के कारण दूसरे अंगों पर पड़ रहा है या कुछ विशेष लक्षण दिखाई देते हैं तो इनका प्रबंधन और उपचार जरूरी हो जाता है।

इंतजार करें और देखेंः अगर ट्यूमर का आकार छोटा है, यह कोई लक्षण या समस्या पैदा नहीं कर रहा है, तो आप तुरंत उपचार की बजाए डॉक्टर उस पर नजर रखने के लिए भी कह सकते हैं।

दवाएंः मेडिकेटेड जेल या क्रीम्स कुछ ट्यूमर के आकार को छोटा करने में मदद कर सकती है। स्टेरॉएड के माध्यम से भी कुछ गोठ का आकार छोटा हो जाता है, और आकार छोटा होने से साथ के अंगों पर भी दबाव कम पड़ता है।

सर्जरीः ट्यूमर की सर्जरी अक्सर एंडोस्कोपिक तकनीक से की जाती है। इसमें छोटे सर्जिकल कट लगाए जाते हैं और रिकवरी में भी कम समय लगता है।

रेडिएशनः ट्यूमर के आकार को कम करने या इसके आकार को बढ़ने से रोकने के लिए रेडिएशन थेरेपी का सहारा लिया जाता है। कई सर्जरी के बाद रिकवर होने में अधिक समय लग सकता है। गांठ निकालने के बाद स्पीच थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी या फिजियोथेरपी की जरूरत पड़ सकती है।

                                                                    

रोकथाम के उपाय

डॉक्टर कहते हैं, स्पष्ट कारण की जानकारी नहीं होने के कारण इनकी पूरी तरह से रोकथाम तो संभव नहीं है, लेकिन कुछ उपाय हैं, जिनके द्वारा इनके विकसित होने की आशंका को कम किया जा सकता है-

  • स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
  • नियमित व्यायाम करें।
  • संतुलित भोजन करें।
  • अपना वजन सही रखें।
  • अगर वजन बढ़ गया हो तो उसे कम करने का प्रयास करें।
  • तनाव से बचें।

दैनिक जीवन पर दिख सकता है असर, इसलिए कराना जांच बेहद जरूरी है-

मस्तिष्क की गांठ

मस्तिष्क में होने वाली ज्यादातर गांठे, कैंसर रहित होती है। ऐसे में इस प्रकार के लक्षण आपको देखने को मिल सकते हैं।

  1. सिरदर्द नजर धुंधली होना,
  2. याददाश्त कमजोर हो जाना
  3. चक्कर आना।

हानिरहित होने के बावजूद ये गांठें स्पाइन कॉर्ड व दूसरे अंगों पर दबाव भी डाल सकती है। इससे आपको रोज के काम करने में दिक्कत आ सकती है। जबकि कुछ स्थिति में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है।

सीने में गांठ

                                                                

स्तन में होने वाली अधिकतर गांठें भी कैंसर रहित ही होती हैं। स्तनपान कराने वाली बहुत सी महिलाओं को गैलेक्टोसेले यानी दूध की गांठें हो जाती हैं, जो हानिरहित होती है। महिलाओं में छाती में होने वाली कई गांठे बड़े आकार की भी हो सकती है, जो छूने पर भी महसूस होती हैं। इसके कारण जो लक्षण दिखाई दे सकते हैं उनमें निम्नलिखित है-

त्वचा के नीचे या ऊपर उभरी हुई गांठ होना

इनका आकार इतना बड़ा होना कि हाथ से छूकर उसे महसूस किया जा सके-

  • दबाने पर कड़ी या मुलायम महसूस होना।
  • गांठ को दबाने पर उसका इधर-उधर होना। हालांकि किसी महिला की उम्र 40 साल से अधिक है तो स्तन में होने वाली गांठ के कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। सर्जरी और कई तरह की जांच जरूरी होती है।

बोन ट्यूमर

बोन ट्यूमर्स जैसे ऑस्टियोमास या ऑस्टियोको होमास आमतौर पर दर्द रहित होते हैं, परन्तु गांठों के आकार में बड़ा होने के कारण कुछ इनमें लक्षण दिखाई दे सकते हैं-

  • दर्द, विशेषकर जोड़ों और मांसपेशियों में
  • हड्डियों और तंत्रिकाओं पर दबाव पड़ना
  • जोड़ों को हिलाने-डुलाने में दर्द होना और
  • एक पैर का दूसरे पैर से छोटा हो जाना।

                                                                      

न्यूरोफाइब्रोमेटोसिस

यह एक नई टिश्यू डिसऑर्डर है। इसमें नई टिश्यूज पर बन जाती है परन्तु यह बीमारी कैंसर नहीं है। ये ट्यूमर रात्रिका तंत्र में कहीं भी विकसित हो सकते हैं, जिनमें मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्ड और संत्रिकाएं शामिल हैं। अकसर इसमें मामूली लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि जटिलताओं के कारण सुनने की क्षमता समाप्त होना, बच्चों में सीखने की क्षमता प्रभावित होना, हृदय और रक्त नलिकाओं (कार्डियोवॉस्क्युलर) से संबंधित समस्याएं, नजर खराब होना और तेज दर्द होना जैसी समस्याएं हो सकती है।

फायब्रॉइड्स

फायब्रॉइड्स या फाइब्रोमास हानि रहित ट्यूमर होते हैं, जो किसी भी अंग के संयोजी ऊतको पर विकसित हो सकते हैं। ये कठोर या मुलायम हो सकते हैं। फॉइब्रोमा कई तरह के होते हैं, एंजियोफ्रब्रोमास, चेहरे पर छोटे-छोटे लाल उभारों के रूप में विकसित हो सकते हैं और इमेटोफाइब्रोमास, जो त्वचा पर विकसित होते हैं, अक्सर पैरों के निचले भाग पर।

कुछ फाइब्रोमास की स्थिति में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। बहुत ही कम ये कैंसर में बदल सकते है।

लेखकः डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल मेरठ में मेडिकल ऑफिसर हैं।

डिस्कलेमर: उक्त लेख में प्रकट किए गए विचार लेखक के अपने मौलिक विचार हैं।