सीपीआर तकनीक के माध्यम से मृत्यु के बाद भी जीवन दिया जाना सम्भव Publish Date : 05/09/2023
सीपीआर तकनीक के माध्यम से मृत्यु के बाद भी जीवन दिया जाना सम्भव
डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
सीपीआर तकनीक के प्रति जागरूक करने के लिए सीपीआर जागरूकता रथयात्रा का आयोजन
‘‘कार्डियक अरेस्ट की स्थिति में लोागें का जीवन बवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है सीआरपी तकनीक’’
उपरोक्त कथन एकबारगी चौंकाने वाला अवश्य है, परन्तु यह अपने आप में सत्य है, कि आपात स्थिति में किसी व्यक्ति की मृत्यु के हो जाने के बाद भी उसे जीवन प्रदान किया जा सकता है, यदि सम्बन्धित व्यक्ति को उसकी मृत्यु के हो जाने के बाद तुरन्त ही सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) दे दी जाए, और उस व्यक्ति की सीपीआर घर से अस्पताल ले जाने तक रूकनी नही चाहिए।
भारत में प्रतिवर्ष कार्डियक अरेस्ट से 30 से 40 हजार व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है, जबकि सीपीआर तकनीक के माध्यम से उनके जीवन को बचाया भी जा सकता है।
सीपीआर तकनीक के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए हरियाणा राज्य में सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) प्रशिक्षण जागरूकता अभियान का संचालन किया जा रहा है, जिसका संचालन आगामी 09 सितम्बर तक किया जाना है। भारतीय रेड क्रॉस समिति हरियाणा राज्य शाखा चण्ड़ीगढ़ के तत्वाधान से गुस्ग्राम से सीपीआर जागरण रथ को एडीसी हितेश कुमार मीणा के द्वारा झण्ड़ी दिखाकर रवाना किया गया।
इस जागरूकता अभियान के दौरान लागों को सीपीआर तकनीक के प्रति जानकारी प्रदान कर उन्हें बताया जाएगा कि यह एक जीवन रक्षक तकनीक है, और आवश्यकता होने पर देश के प्रत्येक व्यक्ति को इसका उपयोग करना चाहिए। इस रथ यात्रा के माध्यम से स्कूल एवं कॉलेजों के छात्र-छात्राओं को भी सीपीआर तकनीक के सम्बन्ध जानकारी प्रदान की जा रही है।
व्यक्ति की मौत तुरंत ही नही होतीः डॉ0 विपिन अरोड़ा
रेड क्रॉस सोसायटी से लेक्चरर डॉ0 विपिन आरोड़ा कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति की तबयित अचानक से ही खाराब हो जाने पर उसे सीपीआर का दिया जाना बहुत आवश्यक होता है। ऐसी हालत में कई बार तो मरीज की बॉडी कोई भी रिस्पाँस नही दे पाती है, तो ऐसी थिति में ही उसे सीपीआर दी जानी चाहिए, क्योंकि व्यक्ति की मौत एकदम से ही नही हो जाती है।
ऐसे में प्रभावित व्यक्ति के शरीर का ब्लड सर्कुलेशन थम जाता है और यदि प्रभावित व्यक्ति को इसी समय सीपीआर सही तरीके से दी जाए तो काफी हद तक उसकी साँसों को वापस लाया जा सकता है। जैसे ही प्रभावित व्यक्ति को सीपीआर सही तरीके से दी जाती है, ठीक वैसे ही उसके मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति बढ जाती है और वह व्यक्ति सचेत हो जाता है।
वैसे यदि देखा जाए तो सीपीआर को देना भी कोई कठिन कार्य नही है, हालांकि, इसके लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना निःतांत अनिवार्य है, क्योंकि इस तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति ही इसे सही तरीके से दे पाने में सक्षम होता है। इसके सम्बन्ध में डॉ0 अरोड़ा ने बताया कि एक मिनट में सीपीआर को 120 बार देना होता है। इसके दौरान मरीज की छाती पर दो से ढाई इंच तक दबाव डाला जाता है।
डॉ0 अरोड़ा ने बताया कि देश में 30 से 40 हजार व्यक्ति प्रत्येक वर्ष केवल इसी के कारण मृत घोषित कर दिए जाते हैं, जबकि उन्हें सीपीआर तकनीक के माध्यम से बचाया भी जा सकता है। जब हम अपने किसी परिचित को कार्डियक अरेस्ट के चलते अस्पताल के लिए लेकर चल देते हैं तो फिर उसे किसी प्रकार के बचाव उपाय के अलावा सीपीआर भी नही दी जाती है।
जब हम ऐसे मरीज को घर से अस्ताल तक बिना किसी जीवन रक्षक उपाय के अपनाएं लेकर जाते हैं तो अस्पताल तक पहुँचनें में सम्बन्धित व्यक्ति का जीवन खतरे में पड़ चुका होता है और इस प्रकार विभिन्न लोगों की तो जान भी चली जाती है। इस प्रकार हमें समझना चाहिए कि कार्डियक अरेस्ट या फिर किसी अन्य प्रकार की दुर्घटना के चलते अचेत हुआ व्यक्ति जीवित होता है, जबकि हम उसे मृत समझ लेते हैं।
ऐसे में यदि उस व्यक्ति को सीअपीआर उसी समय देना आरम्भ कर देते हैं तो उसे काफी हद तक जीवित बचया जान भी सम्भव होता है।
जेनेरिक दवाएं
जेनेरिक दवाओं के सन्दर्भ में भारत का घरेलू बाजार 25 बिलियान डॉली का एक विशालकाय बाजार है, जो कि 400 बिलियन डॉलर के वैशिवक बाजार में पर्याप्त भागीदरी के साथ ही एक वैश्विक आपूर्तिकर्ता के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका को निभा रहा है।
वर्ष 2008 में भारत सरकार के द्वारा गुणवत्ता से परिपूर्ण दवाएं सम्पूर्ण देश में उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जन-औषधि नामक योजना को आरम्भ किया था। वर्ष 2016 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया ने सुझाव दिया थ कि सभी चिकित्सक जेनेरिक दवाएं ही पर्चे पर लिखें जो कि आमतौर पर उनके ब्राँड-नेम समकक्ष की अपेक्षा 30 से लेकर 80 प्रतिशत तक सस्ती हो सकती हैं।
जेनेरिक दवाओं को आमतौर पर ब्राँडेड दवाओं का एक सुरक्षित एवं प्रभावी विकल्प माना जाता है। हालाँकि कुछ स्थितियाँ ऐसी भी होती है कि जहाँ ब्राँडेड दवाओं के साथ स्विच करने से बचने की सलाह भी दी जा सकती है।
इस परिप्रेक्ष्य यह ध्यान रखना भी अपने आप में महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य सेवा-प्रदाता अपने मरीज के रोग नैदानिक निर्णय और रोगी विशिष्ट कारकों के आधार पर ही कोई व्यक्तिगत निर्णय ले पाने में सक्षम हो पाते हैं।
अतः जेनेरिक दवाओं पर स्विच करने के औचित्य का निर्धारण करने में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और रोगियों के मध्य खुले संवाद का होना भी अपने आप एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण होता है। ऐसे में यह माना जाना भी उचित ही है कि जेनेरिक दवाएं वर्तमान में एक गेम चेंजर की भूमिका में हैं।
लेखक: डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर, प्यारे लाल शर्मा जिला अस्पताल, मेरठ में मेडिकल ऑफिसर के रूप में कार्यरत हैं।