एस्ट्रोजन दूर भगाता है बुढ़ापा      Publish Date : 18/05/2025

                   एस्ट्रोजन दूर भगाता है बुढ़ापा

                                                                                                                                        डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा

आमतौर पर प्रत्येक स्त्री के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब उसका मासिक धर्म रुक जाता है. रजोनिवृत्ति (मेनपॉज) की यह स्थिति लगभग 50 वर्ष की आयु में उत्पन्न होती है, तो कुछ स्त्रियों में रजोनिवृत्ति की यह स्थिति 45-50 वर्ष की आयु में तो कुछ में 50-53 वर्ष की आयु में उत्पन्न होती है। जब रजोनिवृत्ति की स्थिति आती है तो अधिकतर स्त्रियां कुछ मायूस सी हो जाती है, क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है कि बस अब बुढ़ापा आना शुरू हो गया है।

                                                       

स्त्रियों में मासिक धर्म शुरू होने एवं बंद होने का एक मात्र कारण है शरीर में एस्ट्रोजन नामक हॉर्मोन की उपस्थिति होता है। लड़कियां जब 8 वर्ष की हो जाती है तभी से उनमें एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने लगता है, मस्तिष्क के भीतर मौजूद हाइपोथैलमस एस्ट्रोजन उत्पादन में डिंब ग्रंथि को संलग्न कर देती है और 11 या 12 वर्ष की आयु तक एस्ट्रोजन इतना बढ़ जाता है कि लडकियों खूबसूरती में वृद्धि होने लगती है, और उनके शारीरिक अंगों का विकास होने लगता है एवं वह एक औरत का रूप ग्रहण करने लगती हैं। यही कारण कि 12 से 14 वर्ष की आयु में प्रवेश करते करते लड़कियां सेक्स संबंधी विषयों में अधिक रूचि लेने लगती है।

पच्चीस वर्ष की आयु के पश्चात् महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन का उत्पादन कम होने लगता है और 30 की आयु आते-आते यह चक्र उल्टा चलने लगता है और 40 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते परिवर्तन का समय आ जाता है, जिसे ‘परिरजोनिवृत्ति’ की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति के आने पर त्वचा सूखने लगती है, बाल कड़े होने लगते हैं, मासिक रजोधर्म अनियमित रहने लगता है एवं महिला के जननांगों में शिथिलता आने लगती है।

                                                      

इस स्थिति में स्त्री एक अजीब सा तनाव महसूस करने लगती है और चालीस वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते एक तरफ जहां एस्ट्रोजन का उत्पादन बंद होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। वहीं ‘हाइपोथैलमस’ यह कोशिश करता रहता है कि एस्ट्रोजन का उत्पादन बंद न हो इसके लिए वह डिंबग्रंथि को हार्माेन के उत्पादन का संकेत देता रहता है। फलतः डिबग्रथि में विचित्र हरकते होने लगती है, जिनके चलते एस्ट्रोजन का स्तर दिन प्रतिदिन घटने-बढ़ने लगता है।

‘हाइपोथैलमस’ स्त्री के शरीर का ताप नियंत्रण करने का भी काम करती है, इसकी सक्रियता में वृद्धि हो जाने के कारण रजोनिवृत्ति से अचानक ही गरमी के झोंके आने लगते हैं, दिल की धड़कन बढ़ जाती है. रात में कभी कभी तेज पसीना छूटने लगता है कि चादर तक भीग जाती है। इसके साथ ही चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, बेचैनी जैसे लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।

उपर्युक्त सारे प्रभावों की सही-सही जानकारी को ज्ञात करने हेतु एक दवा उत्पादक कंपनी द्वारा आठ महिलाओं का एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया एवं रजोनिवृत्ति के दौरान उनके अनुभवों का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से जो निष्कर्ष प्राप्त हुए उसके अनुसार सबके अनुभव विचित्र थे।

किसी को अचानक सिर दर्द होता था तो किसी को रात में गर्मी के झटके आते थे, किसी महिला को जननांग सूख जाने की तकलीफदेह शिकायत थी तो किसी का मासिक चक्र अनियमित हो गया था, जबकि किसी की मासिक धर्म के दौरान होने वाली रक्तस्राव में वृद्धि हो गई थी।

न्यूयार्क नगर के स्त्री रोग विशेषज्ञ रॉबर्ट विलसन एक दिन महिलाओं की इन्हीं समस्याओं पर विचार कर रहे थे कि उसी दिन उनके चैम्बर में 52 वर्ष की एक महिला ने प्रवेश किया. वह 13 फरवरी, 1963 का दिन था। 52 वर्ष की आयु की होते हुए भी वह महिला बिल्कुल नवयौवना की तरह दिखाई दे रही थी। जब डा. विलसन ने उस महिला से उसकी जवानी का राज पूछा तो उसने बताया कि वह गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती है जिनमें प्रोजेस्ट्रोन एवं एस्ट्रोजन नामक स्त्री हॉर्मोन्स की अधिकता रहती है।

                                                    

डा. विलसन को उक्त महिला की बात सुनकर सुखद अनुभूति हुई, क्योंकि डा. विलसन किसी ऐसे ही किसी फार्मूले की खोज में थे। इसके बाद डा. विलसन ने मान लिया कि रजोनिवृत्ति अनावश्यक है। इस घटना के तीन वर्ष पश्चात् डा. विलसन की एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका नाम था ‘फेमिनीन फार एवर’ इस पुस्तक में डा. विलसन ने यह घोषणा की थी कि ‘इतिहास में पहली बार औरतें आने वाले दिनों में माँ से जीव वैज्ञानिक रूप से बराबरी कर सकेंगी। इसके लिए हॉर्मोन थेरेपी का लाख लाख शुक्रिया डा. विलसन ने इस चिकित्सा का नाम हॉर्मोन प्रतिस्थापन उपचार (एच आर टी) रखा है।

डा. विलसन द्वारा प्रचलित इस उपचार पद्धति के बाद से अमेरिका में डाक्टरी पुर्जे पर सबसे अधिक जिस दवा का नाम लिखा जाने लगा उसका नाम है-‘एस्ट्रोजन, एस्ट्रोजन गोलियां, टुकड़ों एवं क्रीम के रूप में बाजार में बिक रही है और स्त्रियां इसका इस्तेमाल इसीलिए अधिक करती है कि यह रजोनिवृत्ति नहीं होने देता।

अमेरिका में एस्ट्रोजन का सेवन करने वाली 120,000 नर्सों पर किए गए अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि ‘एस्ट्रोजन’ के सेवन करने वाली औरतों को हृदय रोग नहीं होता है, हड्डियां पतली करने वाला रोग ऑस्टीआपोरोसिस नहीं होता। इस रोग के कारण ही वृद्धावस्था में औरतों के लिए हड्डियां टूटने का खतरा बना रहता है. औरतों की स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है तथा वृहदांत्र (कोलन) कैंसर नहीं होने पाता एवं ऐसी औरतों में त्वचा का लचीलापन भी बना रहता है।

एस्ट्रोजन के उपरोक्त लाभों को देखते हुए अमेरिका में तो स्त्रियां एस्ट्रोजन की दीवानी हो गई हैं। और अकेले अमेरिका में ही लगभग एक करोड़ स्त्रियां इसका सेवन कर रही है।

ज्ञातव्य है कि शरीर में दिमाग से लेकर जिगर तक एस्ट्रोजन ग्रहण करने वाले लगभग 300 प्रकार के ऊतक होते हैं। मूत्रजनन नली, खून की नलियां, त्वचा एवं वक्ष की सौंदर्य वृद्धि एवं सुडौलपन तथा लचीलापन के लिए तो एस्ट्रोजन एक आवश्यक हार्माेन का रूप ग्रहण करता जा रहा है। यही कारण है कि विश्व के तमाम देशों की स्त्रियों में एस्ट्रोजन के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है।

किन्तु वैज्ञानिकों द्वारा यह भी चेतावनी दी गई है कि एस्ट्रोजन का सेवन यदि सिर्फ जवानी पाने हेतु किया जाता है तो वह खतरनाक भी हो सकता है। गत वर्ष ‘न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार एस्ट्रोजन चिकित्सा से वक्ष कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है, यही नहीं इसके अधिक सेवन से पथरी भी हो सकती है एवं शरीर के भार में भी वृद्धि हो सकती है। यही कारण है कि अमेरिका में 20 प्रतिशत स्त्रियों ने एस्ट्रोजन का सेवन करना बीच में ही छोड़ दिया।

यह निष्कर्ष वर्ष 1987 में अमेरिका में किए गए एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ। एक स्त्री ने तो यहां तक कहा कि मैं खुद को प्रयोगशाला की चिडिया जैसी महसूस करने लगी मैं इसका सेवन प्रतिदिन क्यों करू? सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि अनेक स्त्रियां रजोनिवृत्ति की स्थिति को प्रकृति की देन मानती है, फिर रोग मानकर या रोग की तरह इसका इलाज क्यों? ऐसी स्त्रियां एस्ट्रोजन लेने के खिलाफ हैं। ऐसी स्त्रियों का यह भी कहना है कि 60 वर्ष की भी आयु में मासिक रक्तस्राव उन्हें अच्छा नहीं लगता है। ज्ञातव्य है कि प्रोजेस्टरोन के साथ एस्ट्रोजन का सेवन करने से रक्तस्राव की प्रक्रिया जारी रहती है।

ऐसी दलीलों के बावजूद भी स्त्रियों में एस्ट्रोजन का सेवन करने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। ‘एस्ट्रोजन द फैस्ट्स कैन चेंज फार लाइफ’ नामक पुस्तक की सहलेखिका डा. लीला नैक्टगल के अनुसार ‘एस्ट्रोजन के बिना स्त्रियों का सेक्स जीवन समाप्त हो जाता है’। लेकिन ऐसी विचित्रता भी देखने में आई है कि कुछ स्त्रियों में एस्ट्रोजन सेवन करने के पश्चात् भी उनमें सेक्स की इच्छा जाग्रत नहीं होती, ऐसी स्त्रियों को पुरुष हॉर्मोन ‘टेस्टोस्टेरोन’ की खुराक दी जाती है, किन्तु इसका परिणाम यह होता है कि ‘टेस्टोस्टेरोन’ के सेवन से सेवन करने वाली स्त्रियों की आवाज पुरुषों की तरह भारी हो जाती है एवं दाढ़ी भी उग आ सकने की संभावना बढ़ जाती है। अतः इसे निरापद नहीं कहा जा सकता।

                                                  

इन सबके बावजूद अभी तक परिरजोनिवृत्ति लाइलाज ही है। हार्वर्ड के स्त्री रोग विशेषज्ञ ऐलन एल्टेमन का कहना है कि ‘परिरजोनिवृत्ति’ का सबसे उत्तम निदान यही है कि इसको हम पूरी तरह से जाने-समझे इससे बचने के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यायाम किया जाए। बढ़िया भोजन किया जाए एवं धूमपान बिल्कुल न किया जाए, क्योंकि धूमपान करने वाली स्त्रियां औसत से दो वर्ष पूर्व ही रजोनिवृत्ति की स्थिति में आ जाती है।

रजोनिवृत्ति के समय शरीर या दिमाग में होने वाले बदलावों को झेलने के लिए हर तरह से तैयार रहना चाहिए और इसे किसी तरह की खराबी या कभी मानकर कुंठाग्रस्त नहीं होना चाहिए। ‘द मेनपौज बुक अ गाइड टु हेल्थ एंड वेलबीइंग फार वीमेन आफ्टर फोर्टी’ नामक पुस्तक के लेखक डा. रोल्डन एच. शेरी का कहना है कि अगर आपको यह ज्ञात हो जाए कि भविष्य में आपके साथ क्या होने वाला है तो उससे आपका भय स्वतः कम हो जाता है। देखा गया है कि आने बाले खतरों या कमियों के प्रति पहले से मानसिक रूप से तैयार रहने पर गर्भनिरोधक गोलियों की हल्की खुराक लेने पर भी काफी राहत मिल जाती है।

डॉ0 शेरी की उक्त पुस्तक काफी चर्चित हुई है, वर्ष 1991 में प्रकाशित ‘द साइलेंट पैसेज’ नामक पुस्तक की लेखिका गेल शीही का कहना है कि ‘जब उसका एस्ट्रोजन बढ़ जाता एवं प्रोजेस्टिन घट जाता था तो ऐसा महसूस होता था कि आधे माह तक शरीर में जैसे कशमकश युद्ध चल रहा हो। शीही ने आगे लिखा है कि रजोनिवृत्ति के परिवर्तन के सबसे खराब लक्षण आरंभिक अवस्था में ही प्रकट होते हैं’। गेल शीही की एक अन्य पुस्तक अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है. जिसमें उसने लिखा है कि ‘रजोनिवृत्ति से उबरने के पश्चात औरतों को यह महसूस होता है कि वे गहरे से निकल कर चोटी तक पहुंच गई हैं।

ड्यूक विश्वविद्यालय चिकित्सा केन्द्र के अध्यक्ष एस्ट्रोजन की हिमायत करते हुए लिखते हैं कि ‘इस सदी के प्रारम्भ में यह स्थिति थी कि जिंबाशय के काम बंद करने के कुछ वर्ष के अन्दर ही स्त्रियों की मृत्यु हो जाती थी, किन्तु अब ऐसा नहीं होता। अब महिलाएं हृदय रोग, आस्टीओपोरोसिस एवं हड्डी टूटने जैसी बीमारियों से उत्पन्न समस्याओं से घबराती नहीं है एवं दुखी नहीं होती हैं। कारण कि अब उनके पास एस्ट्रोजन नामक साथी है हालाकि इसकी खुराक 10 वर्षों तक लेनी पड़ती है।

एस्ट्रोजन का सेवन करने के पश्चात स्त्रियों का स्वास्थ्य इसलिए भी अच्छा रहता है कि उनको लगातार डाक्टर के सम्पर्क में रहना पड़ता है। जिससे शरीर के अन्य विकारों का भी उन्हें पता चलता रहता है, जिनका निदान करती रहती हैं। इस संबंध में डा. सूजन लव का कहना है कि ‘इसके चलते ऐसी स्त्रियों को जानलेवा रोग का भी बहुत कम सामना करना पड़ता है’।

हार्माेन प्रतिस्थापन उपचार (एच.आर.टी) से लाभ एवं हानि की वास्तविक जानकारी वैसे वर्ष 2005 तक ही प्राप्त हो सकेगी, क्योंकि 62 करोड़ 80 लाख डालर से स्थापित नारी स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 27,500 स्त्रियों पर इसके प्रभावों का अध्ययन अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने प्रारम्भ कर दिया है। यह अध्ययन आठ वर्षों तक जारी रहेगा और इस अध्ययन से प्राप्त निष्कर्षों के बाद ही एच.आर.टी. के बारे में सही तौर से कुछ कहना उचित होगा।

                                                 

वैसे अनेक वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों की राय है कि रजोनिवृत्ति से बचने, हृदय रोग एवं ऑस्टीओपोरोसिस से बचाव का प्राकृतिक तरीका भी कारगर होगा और प्राकृतिक रूप से प्रोजेस्ट्रोन एवं एस्ट्रोजन प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि उचित व्यायाम किया जाए, धूम्रपान से बचा जाए, कम चर्बी एवं कैल्सियम युक्त भोजन लिया जाए और फलों एवं सब्जियों का विशेष सेवन किया जाए अर्थात प्राकृतिक जीवन व्यतीत किया जाए। उल्लेखनीय है कि जापानी स्त्रियों में रजोनिवृत्ति बहुत कम पाई जाती है, कारण कि वहां की स्त्रियां सोया पनीर ‘तोफू’ का सेवन अधिक करती है।

अपने देश में भी जो स्त्रियां प्रकृक्ति के सम्पर्क में रहती है एवं शुद्ध शाकाहारी पौष्टिक भोजन करती है तथा अपने जीवन को एवं शरीर को गतिशील बनाए रखती है, उनमें भी रजोनिवृति की स्थिति देर से आती है।

अतः यही उचित प्रतीत होता है कि प्राकृतिक रूप से ही प्रोजेस्ट्रोन एवं एस्ट्रोजन की प्राप्ति कर स्त्रियां अपने यौवन को बरकरार रखें, उसी में आनन्द की प्राप्ति होगी एवं उन्हें अन्य शारीरिक विकारों का भी सामना नहीं करना पडेगा। जो महिलाएं अपने जीवन को एवं शरीर को गतिशील बनाए रखती है, उनमें भी रजोनिवृति की स्थिति देर से आती है।

अतः यही उचित प्रतीत होता है कि प्राकृतिक रूप से ही प्रोजेस्ट्रोन एवं एस्ट्रोजन की प्राप्ति कर स्त्रियां अपने यौवन को बरकरार रखें, उसी में आनन्द की प्राप्ति होगी एवं उन्हें अन्य शारीरिक विकारों का भी सामना नहीं करना पडेगा।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।