कंजक्टिवाइटिस / आई फ्लू आँखों की एक ज्वलंत समस्या Publish Date : 08/08/2023
कंजक्टिवाइटिस / आई फ्लू
आँखों की एक ज्वलंत समस्या
डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
आजकल आँखें में दर्द, खुजली, आँखें लाल होना और धुंधलेपन की शिकायतें लगातार आ रही हैं। आई फ्लू की यह समस्या आज देश के बहुत हिस्सों में बढ़ रही है। हमारे डॉक्टर साहब बता रहें हैं इस समस्या के लक्षण एवं इससे बचाव के तरीके-
मानसून की नमी एवं तापमान में निरंतर होने परिवर्तनों के कारण बैक्टीरिया, वायरस आदि के संक्रमण और एलर्जी की समस्या का बढ़ जाना आम बात होती है। वर्तमान समय में कंजक्टिवाइटिस / आई फ्लू के विस्तार का यह एक बड़ा कारण यह भी है, जिसके कारण इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। हालांकि लोग इसके बारें में पहले से ही जागरूक नही होते हैं, यदि किसी की एक आँख में कंजक्टिवाइटिस है तो वे उस आँख को छूते हैं और फिर उसी हाथ से दूसरी आँख को भी छू लेते हैं जिससे दूसरी आँख में यह संक्रमण हो सकता है। अतः इससे बचाव करने वाले उचित तरीकों की जानकारी होना बहुत अहम है।
क्या है कंजक्टिवाइटिसः- आँखों में होने वाले इस संक्रमण के कारण आँख की कंजक्टिवा में सूजन आ जाती है। हमारी आँख के सफेद भाग और पलकों की आंतरिक भाग तक कंजक्टिवा होती है। जब कंजक्टिवा की सूक्ष्म रक्त नलिकाओं में सूजन आ जाती है, तो इसके कारण हमारी आँखों का सफेद भाग लाल या गुलाबी रंग का दिखने लगता है। इसी कारण से इस रोग को पिंक आई भी कहते हैं।
वर्तमान समय में वायरल कंजक्टिवाइटिस का प्रकोप जारी है, लेकिन इसके साथ ही जब इसमें बैक्टीरियल इंफेक्शन भी हो जाता है, तो यह अधिक गम्भीर रूप धारण कर लेता है।
ना करें गुलाब जल का प्रयोगः- आमतौर पर जब भी लोग आँखों की किसी समस्या के कारण परेशान होते है, तो अक्सर वे गुलाब जल का प्रयोग करते हैं अथवा इसके लिए कुछ अन्य घरेलू नुस्खों को आजमाना आरम्भ कर देते हैं।
ऐसे में यह आवश्यक नही है कि ऐसे उपयों को आजमाने से उनकी आँखें ठीक हो जाएं अपितु ऐसा करने से यह संक्रमण अधिक बढ़ भी सकता है। अस्वच्छ और लम्बे समय से खुले रखें गुलाब जल और गन्दे कपड़ें आदि के प्रयोग से अधिकतर आँखों में होने वाली परेशानी और अधिक बढ़ ही जाती है।
स्टेरॉयड युक्त आईड्राप जोखिम को बढ़ाता हैः- किसी भी प्रकार का संक्रमण हो, उससे लड़नें की क्षमता पहले से ही हमारे शरीर में उपलब्ध रहती है और कंजक्टिवाइटिस के अन्तर्गत प्रयोग किये जाने वाली आई ड्रॉप हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर सकता है। वायरल कंजक्टिवाइटिस मामूली उपचार के माध्यम से ही कुछ समय के बाद ठीक हो जाता है, परन्तु कोई भी आई ड्रॉप विशेषरूप से स्टेरॉयड युक्त आई ड्रॉप्स हमारी परेशानी को बढ़ा सकता है।
हालांकि इसका प्रयोग करने के बाद कुछ समय के लिए तो राहत प्राप्त हो सकती है, लेकिन यह बैक्टीरियल संक्रमण से जुड़कर इस समस्या को बढ़ा भी सकता है।
ध्यान रहे कॉर्निया प्रभावित न होः- यदि कंजक्टिवाइटिस का उचित उपचार नही किया जाता है तो इसका प्रभाव हमारी आँखें के कॉर्निया पर भी पड़ सकता र्है। कॉर्निया आँखों के काले भाग की ऊपर की पारदर्शी झिल्ली को कहते हैं। कंजक्टिवाइटिस के चलते कॉर्निया में जख्म भी हो सकता है और इसके बाद जख्म वाले स्थान पर सफेदी उतर आती है जिसके कारण हमें स्पष्ट दिखने में परेशानी होती है जिससे आँखों की रोशनी मंद भी हो सकती है।
यदि कंजक्टिवाइटिस के दौरान आँखों में अधिक दर्द महसूस होता है, धुंधला दिखने लगता है और द्रव का स्राव बढ़ अधिक होता है तो किसी योग्य चिकित्सक से सर्म्पक करने में विलम्ब नही करना चाहिए।
यदि रोगी कॉन्टैक्ट लैंस का प्रयोग करता होः- सर्वप्रथम तो रोगी को कॉन्टैक्ट लैंस के स्थान पर चश्में का ही प्रयोग करना चाहिए, लेकिन यदि कॉन्टैक्ट लैंस आवश्यक है तो उसे लगाने या हटाने से पूर्व अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें और लैंस को भी अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
ऐसा नही करना चाहिए-
- किसी संक्रमित व्यक्ति के निजी समान जैसे तौलिया, रूमाल, तकिया और चश्में आदि का उपयोग स्वस्थ व्यक्ति न करें।
- संक्रमित व्यक्ति अपनी आँखें को रगड़ने से बचे।
- एक परिवार के सभी सदस्य एक ही ड्रॉपर से आँखों में दवाई न डालें
- संक्रमित व्यक्ति को भीड़-भाड़ वाले स्थान पर जाने।
- प्रभावित व्यक्ति को अपनी आँखों पर किसी भी प्रकार की पट्टी या कपड़ा नहीं बांधना चाहिए।
एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस
- प्रभावित आँखों में सूजन आ जाती है।
- प्रभावित व्यक्ति की एक अथवा दोनेां ही आँखें लाल हो जाती हैं और इसके साथ ही उसकी आँखों में जलन एवं खुजली भी रहती है।
- प्रभावित व्यक्ति की आँखों में किरकिरापन अनुभव करता है।
- संक्रमित व्यक्ति की आँखों से सामान्य से अधिक गाढ़ा द्रव निकलता है।
कब ले डॉक्टर से परामर्श
- संक्रमित व्यक्ति की आँखें जब अत्याधिक लाल हो जाती हैं।
- जब आँखों तेज दर्द और चुभन होती है।
- सम्बन्धित व्यक्ति को तेज रोशनी में देखने पर परेशानी होती है।
- आँखों का धुंधलापन बढ़ने लगे।
आयुर्वेद कहिन
बरसात के मौसम में हवा में नमी होने के कारण बैक्टीरिया और फफंूद आदि का प्रसार अधिक होता है, जिसके कारण फफंूद का संक्रमण अर्थात फंगल इंफेक्शन की समस्या का होना भी स्वाभाविक है। गीले कपडा़े में उपलब्ध नमी के चलते त्वचा में संक्रमण हो जाता है। चूँकि इन दिनों कपड़ों को पर्याप्त धूंप नही मिलती है और इसके साथ ही सिंथेटिक कपड़ों के कारण भी त्वचा सम्बन्धी परेशानियाँ होती है।
कुछ औषधीय तेल और मलहम आदि भी फंगल इंफेक्शन को को समाप्त करने में सहायक होते हैं। वैसे तो हल्के संक्रमण में बाहर प्रयोग किये जाने वाली औषधियाँ ही पर्याप्त होती है, परन्तु ऐसे लोग जिन्हें लम्बे समय से संक्रमण रहता है और वह मानसून के दौरान यह गम्भीर रूप् धारण कर लेता है।
ऐसे लोगों को बाह्य प्रयोग किए जाने वाली औषधियों के साथ ही कुछ विशेष प्रकार के काढ़े आदि देने की आवश्यकता होती है। एसे लोगों को रक्त को शुद्व करने वाली औषधियों के साथ ही फंगल रोधी दवाईयाँ भी दी जाती हैं। जिससे की उनका संक्रमण समल समाप्त हो सके।
बीमारियों की आशंकाः- मानसून के दौरान जल की अशुद्वियों के कारण अनेक रोग हो जाते हैं। ऐसे में आयुर्वेद कहता है कि चूँकि इस मौसम में शरीर में विद्यमान द्रव की अधिक मात्रा हो जाती है, जिसके चलते रक्त का दूषित होना, त्वचा सम्बन्धी एवं श्वसन से सम्बन्धित परेशानियों के सहित पेट में होने वाले संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
अपने आहार एवं जल की शुद्वता पर दें ध्यानः- इन दिनों में शुद्व, ताजा और गरम भोजन तथा स्वच्छ जल के उपयोग को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके साथ ही भोजन में तेल एवं वसा की मात्रा का संतुलन बनाना भी प्रभावी रहता है।
खदिर (खैर), धनिया, जीरा और सौंठ आदि को जल में मिश्रित कर इसे उबाल कर सेवन का लाभदायक रहता है। ऐसा करने से संक्रमण से बचाव होने के साथ ही पेट सम्बन्धी सम्बन्धी परेशानिया दूर होकर हमारी पाचन क्रिया भी ठीक रहती है।
पंचकर्म क्रिया भी लाभकारीः- पंचकर्म से शरीर का शुद्विकरण होता है। शरीर में पानी का अंश बढ़ जाने अथवा दूषित जल के प्रभाव को समाप्त करने के लिए पंचकर्म में विभिन्न चिकित्सा विधियां उपलब्ध है। पंचकर्म के अन्तर्गत विरेचन कराया जाता है जिससको करने से शरीर में उत्पन्न हुए दोष समाप्त हो जाते हैं।
आंतरिक सुदृढ़ता भी उतनी ही आवश्यकः- मानसून के दिनों में दक्षिण भारत में भोजन के साथ विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियाँ सेवन करने की परम्परा है। चूँकि शरीर में जल की मात्रा के बढ़ने से पाचन क्रिया दुष्प्रभावित होती है। ऐसे में औषधीय खिचड़ी का उपयोग करना प्रभावकारी होता है।
जबकि कुछ औषधियों के साथ नारियल का दूध डालकर इसे तैयार किया जाता है।
फंगल इंफेक्शन का बाह्य उपचारः-
- यदि नमी के कारण फंगल इंफेक्शन हुआ है तो इसके आरम्भिक चरण में नारियल के तेल का उपयोग करना लाभदायक सिद्व होता है।
- यदि इससे लाभ प्राप्त नही हो रहा है तो इसका प्रयोग बन्द कर तुरन्त ही चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
- किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव के लिए शारीरिक स्वच्छता का विशेश महत्व होता है।
- संक्रमित व्यक्ति के कपड़े अन्य पारिवारिक सदस्यों से अलग ही सुखाने चाहिए। और संक्रमित व्यक्ति अलग साबंन का प्रयोग करें।
यह उपाय अपनाएंः-
- हल्दी युक्त जल से गरारा करना एवं हल्दी मिश्रित दूध का सेवन करना विशेष रूप से लाभकारी सिद्व होता है।
- जल में सोंठ या जीरा डालकर सेवन करने से रोग प्रतिराधक क्षमता बढ़ती है।
- उबले हुए जल का सेवन करने से पाचन क्रिया में सुधार होता है और साथ ही संक्रमण से बचाव होता है।
- सामान्य संक्रमण में उबले हुए पानी का उपयोग करें, उसमें ठण्ड़े पानी को न मिलाएं।
लेखक: डॉ0 दिव्यान्शु सेंगर, प्यारे लाल जिला अस्पताल मेरठ, में मेडिकल ऑफिसर हैं।