
खांसी-बुखार दे सकता है टीबी की टेंशन Publish Date : 16/04/2025
खांसी-बुखार दे सकता है टीबी की टेंशन
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) की यदि समय रहते पहचान और उपचार न हो, तो यह जानलेवा बन सकती है। बच्चों या स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए टीबी का संक्रमण कहीं अधिक गंभीर हो सकता है। कैसे होती है टीबी की पहचान और बचाव से जुड़े क्या है जरूरी उपाय,
सांस लेते या खांसते समय सीने में दर्द महसूस हो
अगर हफ्तों तक लगातार खांसी बनी रहे और सांस की समस्या भी हो तो यह बेहद संक्रामक बीमारी ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इसकी गंभीरता को समझे तो प्रतिवर्ष दुनियाभर में लगभग एक करोड़ से अधिक लोग टीबी से संक्रमित होते हैं, जिनमें से 28 लाख टीबी संक्रमण के मामले अकेले भारत में ही सामने आते हैं, यानी भारत दुनिया का सबसे अधिक टीबी से प्रभावित होने देश है। चूंकि, टीबी का संक्रमण धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण करता है, ऐसे में इसकी सही समय पर पहचान और इसका समुचित उपचार होना आवश्यक है, अन्यथा यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है।
वैसे तो वर्षों से टीबी की रोकथाम के लिए देशभर में बड़े पैमाने पर अनेक कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है, फिर भी जागरुकता और बचाव उपायों को लेकर हमें निरंतर प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। इस वर्ष विश्व टीबी दिवस की थीम है ‘‘हम टीबी को खत्म कर सकते हैं, प्रतिवद्ध हों, निवेश करें और परिणाम दें।’’
समझें टीबी की गंभीरता कोः टीबी की बीमारी वर्षों से एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। राबर्ट कोच ने 24 मार्च, 1882 को टीबी के जीवाणु की खोज की थी और यह खोज टीबी को समझने और इलाज में एक मील का पत्थर साबित हुई। हर वर्ष 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है। टीबी का संक्रमण शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। फेफड़े की टीबी को पल्मोनरी टीबी और शरीर के अन्य हिस्से की टीबी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। भारत में टीबी के मरीजों में करीब 80 प्रतिशत मामले पल्मोनरी टीबी से और 20 फीसदी में एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी से संबंधित होते हैं।
मरीजों के लिए मुफ्त जांच और सुविधाएं भारत सरकार टीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिसमें मरीजों को मुफ्त जांच और इलाज की सुविधा दी जाती है।
मुफ्त टीबी परीक्षणः सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में टीबी की जांचें मुफ्त में उपलब्ध हैं। डाट्स केंद्र इलाज के तहत मुफ्त दवाएं दी जाती हैं।
निःक्षय पोषण योजनाः इस योजना के तहत टीबी मरीजों को पौष्टिक आहार के लिएहर महीने 1000 रुपये की सहायता दी जाती है।
निःक्षय मित्र योजनाः इस योजना के अंतर्गत टीबी के रोगी को किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा गोद लिया जाता है, उसे निःक्षय मित्र कहते हैं। जिसका उद्देश्य रोगी को भावनात्मक तथा सामाजिक संरक्षण देना, पोषण उपलब्ध कराना और संभव हो तो वोकेशनल और रिहेबिलिटेशन सपोर्ट देना है।
मोबाइल हेल्थ वैनः देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में टीबी मरीजों की पहचान करने और उनके इलाज के लिए मोबाइल वैन चलाई जाती है।
टीबी सक्रिय खोज अभियानः घनी बस्तियों, मजदूरों की कालोनी, जेल, मानसिक आश्रय केंद्रों, किशोर/नारी/वृद्धा आश्रमों में टीबी मरीजों की पहचान की जाती है।
निःक्षय पोर्टलः सरकार द्वारा टीबी मरीजों को ट्रैक करने और मदद पहुंचाने के लिए एक आनलाइन पोर्टल बनाया गया है।
सही समय पर पहचान और उपचार
दो हफ्ते से ज्यादा खासी या अन्य कोई टीबी का लक्षण दिखने पर सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर बलगम की जांच और सीने का एक्स-रे जरूर कराना चाहिए। बलगम में टीबी के जीवाणु के लिए माइकोस्कोपिक तथा मालिकातर जांच (सी. बी. नेट या टूनाट) की जाती है। यह सभी जांचे सरकारी अस्पतालों तथा स्वास्थ्य केंद्रों पर निं:शुल्क की जाती है।
क्या है टीबी का निदान
टीबी पूरी तरह से ठीक होने योग्य बीमारी है, बशर्ते कि इसका सही समय पर और पूरी तरह इलाज किया जाए। इसका उपचार छह से नौ महीने तक चलने वाली दवाओं के माध्यम से किया जाता है।
टीबी की दवाओं के प्रति सतर्कता
टीबी की दवाओं का पूरा कोर्स लेना बहुत जरूरी होता है, अन्यथा बैक्टीरिया दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं और मल्टी-इग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है, जिसका इलाज और भी कठिन हो जाता है।
कैसे करें टीबी की रोकथाम
- यदि किसी व्यक्तिको टीबी है. तो उसके संपर्क में आने से बचना चाहिए। खासकर बंद स्थानों पर संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है।
- सतुलित आहार और नियमित व्यायाम से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास करना बाहिए।
- व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें और खासते या धींकते समय रुमाल या टिश्यू का प्रयोग करें।
- संक्रमित व्यक्ति को मास्क पहनना चाहिए, ताकि बैक्टीरिया अन्य लोगों तक नहीं पहुंच पाए।
- जन्म के समय बच्चों को बीसीजी टीका लगवाना चाहिए, ताकि टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से बच्चे को सुरक्षा मिल सके।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।