अपना लिपिड़ प्रोफाइल टेस्ट किस प्रकार कराएं जिससे उसकी सही रिपोर्ट आएं      Publish Date : 16/07/2023

                            अपना लिपिड़ प्रोफाइल टेस्ट किस प्रकार कराएं  जिससे उसकी सही रिपोर्ट आएं

अपना लिपिड़ प्रोफाइल टेस्ट किस प्रकार कराएं जिससे उसकी सही रिपोर्ट आएं

                                                              

    शरीर में कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने से रक्त के प्रवाह/ब्लड फ्लो में बाधा आती है, जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति के दिल, दिमाग, किडनी और शरीर के निचले भाग होते हैं कुप्रभावित।

    पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में लोग अपनी सेहत के प्रति अधिक जागरूक हैं। इसी के कारण लोग अब न केवल डॉक्टरी परामर्श को गम्भीरता से ले रहे हैं, जबकि कुछ लोग तो बिना डॉक्टर की सलाह के स्वयं भी अपनीविभिन्न जाँचें कर लेते हैं। परन्तु कई बार वे लोग न केवल गलत और गैर जरूरी जाँचें भी करा लेते हैं और कई बार उन्हें जाँच के लिए सैम्पल देते हैं तो उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी नही होती है कि जाँच के लिए सैम्पल देने से पूर्व किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। इसी प्रकार लिपिड़ प्रोफाइल्स में आजकल अधिक समस्याएं आ रही हैं। यदि हम लिपिड प्रोफाइल के लिए निम्न सावधानियों को बरते तो अनचाही परेशानियों से बच सकते हैं तो आईये जानते हैं इनके बारे में-

लिपिड प्रोफाईल टेस्ट क्या होता है?

                                                     

    लिपिड प्रोफाईल की जाँच हमारे शरीर में मौजूद कोलेस्ट्रॉल के लेवल को चेक करने के लिए की जाने वाली एक जाँच/टेस्ट है। इस जाँच के माध्यम से ज्ञात होता है कि हमारे रक्त में वसा यानि फैट की मात्रा कितनी है।

वसा में मुख्य रूप से कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राईग्लिसराइड्स उपस्थित होते हैं, जो कि हमारी विभिन्न कोशिकाओं की हैल्थ के लिए आवश्यक होते हैं। खराब रक्त हमारे खून की धनियों को ब्लॉक कर देता है और यह सूजन का कारण बनता है और हमारेदिल के कार्य करने की क्षमता को कम कर देता है। इससे दिल से सम्बन्धित रोगों की आशंका में वृद्वि होती है और लिपिड प्रोफाइल की जाँच से इसकी पहिचान हो जाती है।

लिपिड प्रोफाइल जाँच का क्षेत्र

                                                   

    लिपिड प्रोफाइल जाँच के अन्तर्गत टोटल कोलेस्ट्रॉल, एलडीएल अर्थात बैड कोलेस्ट्रॉल, एचडीएल अर्थात गुड कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स, वीएलडीएल लेवल, नॉन एचडीएल कोलेस्ट्रॉल तथा टोटल कोलेस्ट्रॉल के बीच का अनुपात आदि की जाँच की जाती है।

जाँच के पहले बरती जाने वाली अपेक्षित सावधानियाँ

      लिपिड प्रोफाईल की जाँच से 10-12 घण्टें पूर्व कुछ न खाएं, कहने का मतलब है कि बिलकुल खाली पेट ही जाँच के लिए सैम्पल दें और ऐसा सुबह-सुबह ही कराएं। इस विधि से लिपिड प्रोफाईल जाँच की रिपोर्ट सही आती है। खाना खाने के बाद लिपिड प्रोफाईल की जाँच कराने से ट्राईग्लिसराइड्स में गड़बड़ आ सकती है। जाँच कराने से पहली रात को किसी भी प्रकार का नशा अथवा कोई हैवी डाइट न लें और इस टेस्ट से पूर्व चाय-कॉफी आदि का सेवन न करें।

40 वर्ष की आयु के बाद रूटीन टेस्ट

    व्यक्ति में चालीस वर्ष की आयु के बाद नए सेल्स कम संख्या में बनने लगते हैं, जिसके कारण शुगर, ब्लड प्रेशर और हार्ट प्रॉब्लम्स होने की आशंका बढ़ने लगती है। वहीं महिलाओं में भी यह समय मेनोपॉज का समय होता है और इसी के चलते डॉक्टर्स हमें रूटीन टेस्ट की सलाह देते हैं।

लिपिड प्रोफाईल की जाँच का चार्ट

    टोटल कोले.    नॉन-एचडीएल कोले.  एलडीएल  एचडीएल  ट्राईग्लिसराइड्स

नार्मल कोले.    120 से नीचे   130 से नीचे   100 से नीचे   60 से ऊपर    150 से नीचे

रिस्क में - बार्डरलाइन 200-240  130-200  100-159  40-60    150-200

खतरनाक लेवल 240 से अधिक 200 से अधिक 160 से अधिक 40 से नीचे    200-400

रूटीन टेस्ट कराना क्यों आवश्यक है?

  • गम्भीर और जानलेवा बीमारियों का शीघ्र ही पता चल जाता है।
  • बीमारी के गम्भीर रूप धारण करने का जोखिम बहुत कम हो जाता है।
  • बीमारी का जल्दी पता चल जाने के कारण उसके उपचार में भी मदद मिलती है।
  • मौजूदा स्थितियों की बारीकी से निगरानी करने से जटिलताओं के जोखिमों को सीमित किया जा सकता है।
  • महंगी चिक्तिसा प्रणालियों से बचाव कर स्वास्थ्य की देखभाल की लागत को कम करने में सहायता मिलती है।

किस टेस्ट का अर्थ क्या होता है-

                                              

बैड कालेस्ट्रॉल:- ह्दय रोगों के पीछे की ही भूमिका होती है, क्योंकि यह कोलेस्ट्रॉल रक्त-वाहक धमिनयों को गन्दा कर उनमें ब्लॉकेज उत्पन्न करता है। इस कोलेस्ट्रॉल का कम मात्रा में होना ही हमारी सेहत के लिए अच्छा रहता है।

गुड कोलेस्ट्रॉल:- यह कोलेस्ट्रॉल हमारी सेहत के लिए लाभदायक होते हैं। यह हमारी रक्त-वाहिका धमनियों जमा हुए पदार्थों की सफाई कर उन्हें सुचारू बनाता है। अतः इस कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा में होना हमारी सेहत के लिए अच्छा होता है।

नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल:- गुड कोलेस्ट्रॉल को छोड़कर अन्य जितने प्रकार के भी कोलेस्ट्रॉल होते हैं, उन्हें नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल कहते हैं। टोटल कोलेस्ट्रॉल - एचडीएल = नॉन-एचडीएल कोलेस्ट्रॉल।

  • वीएलडीएल:- यह भी एक प्रकार से बैड कोलेस्ट्रॉल का एक रूप ही होता है, जो फ्लैक बनाता है और ट्राईग्लिसराइड्स को भी साथ ही रखता है। इसके माध्यम से भी ह्नदय रोग होने की आशंकाओं को बल मिलता है।
  • टोटल कोलेस्ट्रॉल:- इसके द्वारा हमारे शरीर में मौजूद कुल कोलेस्ट्रॉल की गणना की जाती है। जैसे एचडीएल/एलडीएल + 20 प्रतिशत ट्राईग्लिसराइड्स।
  • ट्राईग्लिसराइड्स:- हमारे शरीर में इसकी भी कम मात्रा का होना आवश्यक है, क्योंकि इसकी अधिक मात्रा हमारी रक्त-वाहिका धमनियों में कठोरता उत्पन्न करती है। इसके प्रभाव से धमनियों में कड़ापन आ जाने से हार्ट डिजीज की आशंका बढ़ जाती है।

लिपिड प्रोफाइल टेस्ट में हाई रिरस्क ग्रुप्स:-

    पारिवारिक इतिहास, अधिक वजन वाले व्यक्ति, अल्कोहल या स्मोकिंग की लत, बिगड़ी हुई जीवनशैली, ब्लड प्रेशर, शुगर अथवा किडनी आदि से सम्बन्धित किसी परेशानी से जूझ रहें हैं तो लिपिड प्रोफाइल टेस्ट 30 वर्ष से कम आयु में ही कराई जानी चाहिए।

रिपोर्ट को दिखाना क्यों आवश्यक होता है:-

    किसी योग्य चिकित्सक को अपनी रिर्पोट्स दिखाने से न केवल सही जानकारी प्राप्त होती है अपितु आत्मविश्वास में भी बढ़ोत्तरी होती है और इसी से आगे की रणनीतियों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारियाँ हासिल होती हैं।

                                                             मसूड़ों के संक्रमण से बढ़ते हैं अल्जाईमर रोग के खतरें

    मानव के मसूड़ों में होने वाला संक्रमण अल्जाईमर रोग के सम्भावित खतरों में वृद्वि कर सकता है। इस सम्बन्ध में शोधकर्ताओं का कहना है कि मसूड़ों की बीमारियों एवं डिमेशिया से पीड़ितों में बैक्टीरिया के बीच में सम्बन्ध के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

    न्यूरोइंफ्लामेशन नामक जर्नल में प्रकाशित यह शोध मुँह में उपस्थित बैक्टीरिया व्यक्ति के मस्तिष्क तक किस प्रकार पहुँचता है, के सम्बन्ध में अहम जानकारी प्रदान करता है। शोध करने वाली टीम के वरिष्ठ लेखक अमेरिका के फोर्सिथ इन्स्टीट्यूट के अल्पगोडन काँटारसी ने बताया कि हमने अपने अध्ययन में पाया है कि व्यक्ति के मसूड़ों की बीमारियों से जुड़ी सूजन मस्तिष्क में होने वाली प्रतिक्रियाओं को सक्रिय करती है। अतः व्यक्ति के मुँह में पाया जाने वाला बैक्टीरिया मस्तिष्क की कोशिकाओं में होने वाले परिवर्तनों का कारण बन सकते हैं।

    शोधकर्ताओं के द्वारा चूहे पर किए गए अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला कि जिन माइक्रोग्लियल केाशिकाओं के अध्ययन में पाया कि वह एक प्रकार की श्वेत रक्त कणिकाएं होती हैं, जो मसूड़ों के प्लॉक के लिए उत्तरदायी होती हैं।

    शोधकर्ताओं ने पाया कि मुँह के बैक्टीरिया के सर्म्पक में आने पर माइक्रोग्लियल कोशिकाओं को अत्याधिक उत्तेजित करता है। शोध टीम के सदस्यों ने फिर मस्तिष्क की माइक्रोग्लियल कोशिकाओं को अलग किया और इसके बाद उन्हें यह मुँह के बैक्टीरिया के सम्पर्क में लाया।