वजन को कम करें और अपने घुटनों को बचाएं Publish Date : 02/01/2025
वजन को कम करें और अपने घुटनों को बचाएं
डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मा
आधुनिक युग में मोटापे की समस्या के चलते न केवल मधुमेह, उच्चरक्तचॉप और हृदय रोग के जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही है, बल्कि इससे घुटने तथा अनय जोड़ों से सम्बन्धित परेशानियां भी बढ़ती जा रही हैं। मोटापे के कारण घुटनों के अंदर की कार्टिलेज इन पर पड़ने वाले दबाव के कारण या तो घिस जाती है अथवा फट जाती हैं। इससे मरीज को असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है तो कई बार इस समस्या की परिणति विकलांगता का भी कारण बनती है। हालांकि, घुटनों के बदलने वाले ऑपेरशन से मरीज को इस समस्या से स्थाई तौर पर मुक्ति भी दिलाई जा सकती है और इसकी सहयता मरीज एक सक्रिय और सामान्य जीवन जी सकता है।
घुटनों के कार्टिलेज पर पड़ता है अतिरिक्त दबाव
मोटापा हमारे शरीर के लिए किसी बीमारी के पिटारे से कम नही होता है, इसके साथ ही यह हमारे शरीर के मजबूत जोड़ यानी कि घुटनों के जोड़ को भी पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त कर देता है। भारी से भारी वेट को सहन करने की क्षमता रखने वाले हमारे घुटने के जोड़ हमारे बढ़े हुए वेट से इमना अधिक प्रभावित हो सकते हैं कि हमें घुटनों को बदलवाने तक की स्थिति का समाना करना पड़ सकता है। कार्टिलेज के घिस जाने के कारण मरीज को असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है इसके अलावा कई स्थितियों में मरीज को बैड पर जीवन गुजारने के लिए भी विवश होना पड़ सकता है।
हालांकि, इसकी प्रारम्भिक अवस्था में दवाओं और फिजियोथेरेपी के माध्यम से मरीज को थोड़ी राहत मिल सकती है, परन्तु गलत खानपान और व्यायाम से दूरी के चलते मरीज को मोटापा बढ़ता ही जाता है। मोटापे से घुटनों के कार्टिलेज पर पड़ने वाले दबाव कारण यह फट जाती हैं और उसकी हड्डियां आपस में टकराने लगती है जिससे मरीज भयंकर दर्द का सामना करना पड़ता है।
1 कि.ग्रा. वेट का प्रभाव 10 कि.ग्रा. के जितना
मरीज का वेट जब 1 कि.ग्रा. बढ़ता है तो मरीज के घुटनों पर 10 कि.ग्रा. के बराबर वेट पड़ता है। इस प्रकार से शारीरिक वेट के 4.5 कि.ग्रा बढ़ने से उसके प्रत्येक कदम पर प्रत्येक घुटने पर 15 से 30 कि.ग्रा. तक का दबाव पड़ता है। उदाहरण के लिए यह केवल एक अनुमान ही है कि चलते समय किसी व्यक्ति के शारीरिक वेट का लगभग तीन से छह गुना तक भार उसे घुटनों पर पड़ता है।
मोटी महिला यानी घुटनों को अधिक खतरा
मोटी महिलाओं में घुटनों के कार्टिलेज घिसने की आशंका अधिक रहती है। इसका कारण यह होता है कि ऐसी महिलाओं को घुठने की ऑस्टियो आर्थाराइटिस के होने का खतरा सामान्य महिलाओं से चार गुना अधिक तो मोटे पुरूषों में सामान्य पुरूषों से यह खतरा पांच गुना अधिक होता है। अतः आपको मोटापे से बचने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए क्योंकि व्यायामक करने से एक तो आपके घुटनों की मांसपेशियां मजबूत होती है और इसके साथ वजन के बढ़ने पर भी अंकुश लग जाता है।
कुछ समय पहले तक घुटनों की समस्या केवल बुजुर्ग लोगों में ही देखी जाती थी, परन्तु गलत जीवनशैली और खानपान के चलते अब यह समस्या कम आयुवर्ग के लोगों में भी आम होती जा रही है। एकबार घुटनों के बदलवाने के बाद लगभग 90 प्रतिशत मरीजों को 20 वर्षों तक घुटनों में होने वाले दर्द की समस्या का सामना नही करना पड़ता है और वह व्यक्ति सामान्य रूप से अपने काम-काज सकता है।
आजकल घुटने बदलने की तकनीक का दुनियाभर में व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है और इसकी सफलता की दर 90 प्रतिशत तक मानी जाती है। घुटने बदलने वाले ऑपरेशन के तीन दिन के बाद मरीज वॉकर से तथा एक सप्ताह के बाद छड़ी आदि की सहायता से चल-फिर सकता है और छह सप्ताह के बाद मरीज छड़ी को भी त्याग कर समान्य रूप से चलने-फिरने लगता है।
घुटना प्रत्यारोपण से मरीज केवल दर्द की समस्या से ही नही बचता बल्कि यह मरीज को कई अन्य बीमारियों और परेशानियों से भी बचाता है। आमतौर पर देखा गया है कि घुटने की समस्या से परेशान मरीज अधिकतर बेड पर ही रहते हैं जिससे उन्हें ऐसीडिटी, उच्च रक्तचॉप, डायबिटीज के अलावा भी कई और बीमारियां घेर लेती हैं, लेकिन घुटना प््रत्यारोपण के बाद मरीज एक बार फिर से सामान्य रूप से चलने-फिरने और व्यायामक करने लगता है जिससे मरीज इन सभी पेरशानियों से भी बच जाता है।
घुटना प्रत्यारोपण को टोटल रिलेसमेंट (टी. आर. के.) भी कहते हैं
इस प्रक्रिया के अंतर्गत खराब या घिसे हुए घुटनों को निकालकर उनके स्थान पर कृत्रिम घुटने के जोड़ लगा दिए जाते हैं। इस ऑपेरशन की सहायता से घुटनों के अलावा शरीर के किसी भी जोड़ बदला जा सकता है। यह कृत्रिम जोड़ भी प्राकृतिक जोड़ों की तरह से ही टिर्काऊ आैर आरामदायक होते हैं। किसी समय हमारे देश में जोड़ों के कवल आयात ही किया जाता था, जिससे यह बहुत अधिक महंगे होते थे। परन्तु अब लगभग सभी जोड़ों का निर्माण देश में ही किया जाने लगा है जिससे आयात किए जाने वाले जोड़ों की तुलना में यह काफी सस्ते होते है। अब देश में निर्मित कृत्रिम जोड़ लगभग 30 हजार रूपये तो आयातित घुटनों के जोड़ लगभग 70 हजार रूपये के पड़ते हैं।
घुटने के प्रत्यारोपण का ऑपरेशन अत्यंत जटिल होता है अतः यह किसी कुशल एवं प्रशिक्षित सर्जन के द्वारा ही कराया जाना चाहिए। यह कृत्रिम घुटने अपने आसपास के शारीरिक अंगों के लिए किसी भी प्रकार की एलर्जी या अन्य प्रकार के हानिकारक प्रभाव उत्पन्न नही करते हैं। यह विटालियम, टिटैनियम और स्टेनलेस के जैसी अत्यंत मजबूत धातु एवं कम घनत्व वाली पीली इथिलीन, यू.एच.डी.पी.ई. जैसी प्लास्टिक से बने होते हैं। यह कृत्रिम घुटने भारी दबाव भी आसानी के साथ सहन कर सकते हैं।
वर्तमान समय में एक घुटने अथवा दोनों घुटनों का एक साथ ही प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है। इसके अलावा जोड़ के अगले हिस्से को भी बदला जा सकता है। आजकल घुटने की तरह से ही कूल्हे, कंधे और शरीर के अन्य जोड़ों को भी बदला जा सकता है।
लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।