बढ़ सकती है आपकी लंबाई      Publish Date : 18/12/2024

                            बढ़ सकती है आपकी लंबाई

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

किसी भी देश में अलग अलग परिवार के लोगों की लंबाई अलग-अलग हो सकती है। यदि किसी के पूर्वज, दादा, पिता लंबे हों, तो ज्यादा संभावना यही होती है कि आगे उनके परिवार के लोग भी लंबे होंगे और यदि किसी के पूर्वज ठिगने हों, तो उनके परिवार में पैदा होने वाले बच्चे भी ठिगने कद के हेगि। हमारे शरीर में अनेक ग्रंथियां हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के हार्मोंस तैयार करके हमारे खून में शामिल करती रहती हैं, हमारे शरीर का समुचित विकास होता है।

                                                           

थायरायड ग्रंथि हमारे शरीर की एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथि है, जिसका संबंध हमारे कद से है। यद्यपि कई अन्य ग्रंथियां भी हमारे शरीर के विकास में प्रमुख भूमिका निभाती हैं, लेकिन उन्हें सहयोगी ग्रंथियां ही कहा जा सकता है।

यदि किसी की थायराइड ग्रॉथ किसी भी कारण से ठीक ढंग से काम नहीं करती, तो उसके शरीर का विकास रुक जाता है और उसका कद ठिगना रह जाता है। इस ग्रंथि के ठीक से काम न करने से हड्डियों में भी विकार उत्पन्न हो जाता है।

हड्डियों की सर्जरी से कद में वृद्धि यह नई तकनीक इलीझारोव विधि कहलाती है। इसके अंतर्गत ऑपरेशन के जरिये हड़ियों की लंबाई को बढ़ाकर कद बढ़ाया जाता है। इससे लंबाई छह-आठ इंच तक बढ़ाई जा सकती है। इसमें भी छह महीने का समय लगता है। इस विधि में टांगों की हड़ी में पेरीओस्टियम में एक छेद किया जाता है। इसके बाद इस छेद के जरिये हड्री में थोड़ा गैप लाने के लिए सर्जन उसे काटते हैं। फिर दोनों कटे हुए भागों में ऊर्ध्वाकार पिन घुसाई जाती है, जो कि पैर के बाहर की ओर निकाली जाती है। पैर के चाहर इन पिनों को स्कू के साथ जोड़ दिया जाता है। इसके बाद प्रतिदिन स्क्रू को घुमाकर हड्डी के दोनों कटे हुए अर्थ भागों के बीच के अंतर को एक मिमी, फैलाया जाता है। धीरे-धीरे हट्टी का बाहरी आवरण फैलने लगता है और इसके फैलने से बने इस गैप में नई हड्डी का विकास होने लगता है।

                                                

इसके साथ ही नसों, रक्त वाहिकाओं व मांसपेशियों में भी वृद्धि होने लगती है। इस नई हड्डी को फिर पिन व स्कू की सहायता से पुरानी हड्डी से जोड़ दिया जाता है। नई हड्डी बोनमैरो का भी विकास होता है। जो कि अपने आप पुराने बोन मैरो से जुड़ जाता है। यह शल्य क्रिया पंद्रह- बीस वर्ष की उम्र के बीच कराई जा सकती है।

इस तकनीक को रिंग फिक्सेटर तकनीक भी कहते हैं। यह सुविधा बड़े शहरों में उपलब्ध हो जाती है। यह सर्जरी गहन प्रशिक्षित व्यक्ति से ही करानी चाहिए अन्यथा पैरेलिसिस हो जाने का भी खतरा रहता है। यह एक कष्टप्रद व महंगी तकनीक है। संपूर्ण क्रिया में लगभग छह माह का समय लगता है।

इसके अलावा कुछ बच्चों में हार्मोन असंतुलन के कारण ठिगनापन होने पर चिकित्सक हार्मोन की गोलियां देते हैं। यह उपचार पूरी तरह चिकित्सकीय देखरेख में होता है। होम्योपैथी में कैल्केरिया कार्य, वैरयटाकार्ब, 'हाइटैक्स' (पेटेंट औषधि) आदि दवाएं लाभप्रद रहती हैं, किंतु योग्य चिकित्सक से परामर्श करके ही दवाएं लें। खान-पान पर पूरा ध्यान रखें। खेल कूद, व्यायाम आदि भी नियमित करें। अवश्य लाभ होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।