शीतऋतु में सेहत की सुरक्षा करने के उपाय Publish Date : 10/12/2024
शीतऋतु में सेहत की सुरक्षा करने के उपाय
डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा
वर्षा ऋतु के बाद शीतऋतु का आगमन होता है। इस मौसम में सूर्य की किरणें तेज हो जाती हैं, जिसके कारण वषार्काल में संचित हुए पित्त का प्रकोप बढ़ने लगता है। उल्टी एवं पित्तदोष से उत्पन्न वायरल फीवर, मलेरिया आदि का प्रकोप भी इन दिनों काफी अधिक बना रहता है। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शीत ऋतु में अपनी सेहत का ख्याल कैसे रखा जाए, इसका ध्यान रखना परम आवश्यक होता है।
वर्षा ऋतु के समाप्त होते ही सप्ताह में एक दिन का उपवास रखकर केवल फलों के जूस, सूप एवं नींबू पानी का ही प्रयोग करना चाहिए। अगर भोजन के बिना नहीं रह पाते हैं तो थोड़ी- सी मूंग-चावल की खिचड़ी खाई जा सकती है। रात को सोने से पहले गर्म पानी के साथ दो चम्मच पंचसकार चूर्ण का सेवन कर लें। इस प्रयोग से उदर की शुद्धि हो जाएगी और शरीर में जमा पित्त भी बाहर निकल जाएगा।
पित्त का शमन करने के लिए नींबू और आंवले का सेवन भी किया जा सकता है अथवा आंवले के चूर्ण के साथ मिश्री को मिलाकर भी सेवन किया जा सकता है अथवा दो चम्मच गुलकन्द को रात में खाकर ऊपर से गर्म और मीठा दूध भी पीया जा सकता है। इसका प्रयोग दो-तीन रात तक लगातार करना चाहिए। चूंकि आने वाली ऋतु शक्ति-संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, अतः आप इन उपायों को अपनाकर अपने शरीर में शक्ति संचय की क्षमता अर्जित कर सकते हैं।
शीत ऋतु में जठराग्नि के प्रबल रहने से पौष्टिक आहार- विहार का सेवन करना उचित रहता है। इस ऋतु में घी, दूध, मलाई, बादाम, काजू सहित अन्य सूखे मेवे, केले, सेब, खजूर, गुड़, गजक, मूंगफली, उड़द और शहद आदि का यथेष्ट मात्र में सेवन करते रहना चाहिए। हालांकि, इस बात का ध्यान रखना भी आवश्यक है कि पौष्टिक चीजों के सेवन की प्रक्रिया को आप धीरे-धीरे ही बढ़ाएं। ऐसे में जो कुछ भी खाएं ठीक तरह से पच जाए और कब्ज न होने पाए, इसका भी ध्यान रखना आवश्यक है। आहार के साथ ही विहार का भी शीतऋऋतु में ध्यान देना आवश्यक है। चूंकि शीत ऋतु में पौष्टिक आहार-विहार का सेवन करना लाभकारी रहता है, अतः इन्हें पचाने के लिए प्रातः कालीन भ्रमण तथा व्यायाम करना जरूरी है। इन उपायों से पाचन अग्नि बढ़ती है, तो वहीं शरीर पुष्ट भी होता है।
प्रातः भ्रमण, योगासन, सूर्यनमस्कार, दण्ड-बैठक आदि को करते. रहना चाहिए। प्रातः धूप में बैठकर तेल-मालिश करना शीतऋतु में लाभदायक माना जाता है। इससे मांस-पेशियों में ताकत आती है तथा शरीर की त्वचा शुष्क (रूखी) होने से बचती है। अगर सप्ताह में एक दिन उबटन कर लिया जाए तो अधिक उत्तम है। शीत ऋतु में दिन में सोना हानिकारक माना जाता है। इन दिनों दिन में सोने से कफ का प्रकोप होने लगता है। इससे आलस्य, अरूचि एवं सिरदर्द भी पैदा हो जाता है।
शीतऋतु में स्नान करना कई लोगों को पसन्द नहीं होता। खास करके वृद्ध, बालक एवं रोगी व्यक्ति स्नान से कतराते हैं। ऐसे लोग को गुनगुने पानी से धूप में बैठकर स्नान करना चाहिए। शेष व्यक्तियों को ताजे जल से नित्य स्नान करना चाहिए क्योंकि इससे आपका स्नायुमण्डल सशक्त बनता है।
ठंड के मौसम में गाजर का सेवन अति लाभदायक माना जाता है। गाजर का हलुआ वीर्य को बढ़ाता है, खून को साफ करता है, मस्तिष्क को ताकत देता है तथा शरीर को कामोपयोगी बनाता है। पीलिया, बवासीर एवं क्षय रोगियों को छोडकर शेष सभी गाजर का गथेष्ट प्रयोग कर सकते हैं। विवाहित व्यक्तियों को गाजर का हलुआ, खजूर, सफेद तिल के व्यंजनों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए।
शीतऋतु में मौसम के प्रभाव से त्वचा की चिकनाई कम हो जाती है और वह सूखने लगती है। खुश्की पैदा हो जाने से त्वचा रूखी-सूखी और बेजान-सी दिखने लगती है। गाल, होंठ एवं दोनों हाथ पैरों की त्वचा आमतौर पर फटने लग जाती है। इन समस्याओं से छुटकारा के लिए उबटन लगाना लाभकारी होता है। सप्ताह में कम से कम एक दिन पूरे शरीर पर उबटन लगाना चाहिए। साबुन का प्रयोग इस जैऋतु में बहुत ही कम करना चाहिए। रात को सोने से पहले या प्रातः नहाने से पहले हाथ-पैर पर दूध की मलाई लगा लेनी चाहिए, इससे आपकी त्वचा में चिकनाई का स्तर बना रहता है।
लेखकः डॉ0 सुशील शर्मा, जिला मेरठ के कंकर खेड़ा क्षेत्र में पिछले तीस वर्षों से अधिक समय से एक सफल आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में प्रक्टिस कर रहे हैं।